जयपुर. राजस्थान में कोरोना महामारी ने कितना नुकसान प्रदेश को पहुंचाया है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इतिहास में पहली बार राजस्थान में 6 महीने में 5 विधयकों के निधन के उपचुनाव होंगे और 5 नए विधायक उपचुनावों के जरिए 6 महीने में राजस्थान को मिलेंगे. जहां इसी साल मई महीने में सुजानगढ़, सहाड़ा और राजसमंद में विधायकों के निधन के चलते हुए उपचुनाव के बाद नए विधायक चुने जा चुके हैं तो बाकी बची 2 विधानसभा सीटों वल्लभनगर और धरियावद में 30 अक्टूबर को उप चुनाव होंगे, जिनके लिए कांग्रेस पार्टी ने आज अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है. 2 नवंबर को यह सामने आ जाएगा कि उपचुनाव में किस पार्टी ने बाजी मारी है.
आपको बता दें कि राजस्थान में अब तक विधायकों या सामान्य चुनाव में ही किसी विधायक प्रत्याशी के निधन के चलते 23 बार उपचुनाव हुए हैं. इनमें से 11 उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी ने चुनाव जीता है, 9 बार भारतीय जनता पार्टी ने उपचुनाव में जीत दर्ज की है तो दो बार जनता पार्टी और एक बार एनसीजे पार्टी के विधायक बने हैं. लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि इन 23 उपचुनाव में जिन विधायकों का निधन हुआ तो उनकी जगह जब उनके परिजनों को टिकट दिया गया, इस साल हुए 3 उपचुनावों को छोड़कर 20 उपचुनावों में जनता ने उन्हें नकारा है.
1965 में राजाखेड़ा विधायक प्रताप सिंह के निधन के बाद उनके बेटे एम. सिंह ने चुनाव लड़ा, लेकिन वह हार गए. इसके बाद 1978 में रूपवास विधायक ताराचंद के निधन के बाद उनके बेटे ने चुनाव लड़ा, वह भी चुनाव हार गए. इसके बाद 1988 में खेतड़ी विधायक मालाराम के निधन के बाद उनके बेटे एच. लाल को टिकट दिया गया, लेकिन वह भी चुनाव हार गए.
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इसी तरीके से साल 1995 में बयाना विधानसभा से विधायक बृजराज सिंह के निधन के बाद उनके बेटे शिव चरण सिंह को टिकट दिया गया, लेकिन वह भी चुनाव हार गए. यहां तक कि साल 1995 में बांसवाड़ा विधानसभा के विधायक पूर्व मुख्यमंत्री हरदेव जोशी के निधन के बाद जब उनके बेटे दिनेश जोशी को पार्टी ने टिकट दिया तो वह भी चुनाव नहीं जीत सके. यही हाल साल 2000 में हुआ, जब लूणकरणसर विधायक भीमसेन के निधन के बाद उनके बेटे वीरेंद्र को टिकट दिया गया, लेकिन वह चुनाव हार गए तो वहीं साल 2002 में सागवाड़ा विधायक भीखाभाई के निधन के बाद उनके बेटे सुरेंद्र कुमार को टिकट दिया गया, लेकिन वह भी चुनाव हार गए. साल 2005 में लूणी विधायक रामसिंह विश्नोई के निधन के बाद उनके बेटे मलखान विश्नोई को टिकट दिया गया, लेकिन वह भी चुनाव हार गए.
इस साल हुए 3 उपचुनावों में जनता ने दिया सहानुभूति के नाम पर वोट...
इतिहास में भले ही उपचुनाव में जनता ने उन प्रत्याशियों को नकारा हो जिन्होंने अपने परिजन के निधन होने पर चुनाव लड़ा, लेकिन साल 2021 में हुए सुजानगढ़, सहाड़ा और राजसमंद विधानसभा उपचुनाव में जनता ने इस बार केवल सहानुभूति के आधार पर ही वोट दिया. यही कारण था कि चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, तीनों ही उन प्रत्याशियों को जीत मिली जिनके परिजनों का निधन हुआ था.
जहां सुजानगढ़ से दिवंगत विधायक मास्टर भंवरलाल मेघवाल की जगह उनके बेटे मनोज मेघवाल ने चुनाव जीता तो सहाड़ा से दिवंगत विधायक कैलाश त्रिवेदी की पत्नी गायत्री त्रिवेदी ने चुनाव जीता. इसी तरह से राजसमंद विधानसभा सीट से भाजपा की दिवंगत विधायक किरण माहेश्वरी की बेटी दीप्ति माहेश्वरी को जनता ने अपनी सहानुभूति दिखाते हुए विधायक बनाया.
कांग्रेस ने फिर खेला सहानुभूति कार्ड, लेकिन भाजपा ने परिवारवाद से बनाई दूरी...
राजस्थान में अब 2 विधानसभा सीट वल्लभनगर और धरियावद में उपचुनाव होने हैं ऐसे में कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर सहानुभूति कार्ड खेलते हुए दिवंगत विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत की पत्नी प्रीति शक्तावत को कांग्रेस प्रत्याशी बनाया है तो वहीं भाजपा ने परिवारवाद से दूरी बनाते हुए विधायक गौतम लाल के परिजनों को टिकट नहीं दिया है. अब जीत में सहानुभूति एक बार फिर अभी होती है या फिर नहीं यह 2 नवंबर को ही साफ होगा.
यह रहे विधायकों के निधन पर हुए उपचुनाव के नतीजे, सबसे ज्यादा उपचुनाव इस बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कार्यकाल में...
1965 - कांग्रेस की सरकार थी मोहनलाल सुखाड़िया मुख्यमंत्री थे :विधायक प्रताप सिंह के निधन के चलते हुए उपचुनाव में कांग्रेस के दामोदर व्यास राजाखेड़ा से उपचुनाव जीते.
1970 - सरकार कांग्रेस की थी मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया थे : नसीराबाद विधानसभा के विधायक वी. सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में एनसीजे पार्टी के एस. सिंह उपचुनाव जीते.