जयपुर.कर्नाटक को पछाड़कर देशभर में सौर ऊर्जा में नंबर1 बने राजस्थान में बिजली संकट गहराया हुआ है. शहरी और ग्रामीण इलाकों में 3 से 4 घंटे बिजली कटौती करनी पड़ रही है. राज्य सरकार का कहना है कि केंद्र से पर्याप्त मात्रा में कोयला नहीं मिलने के कारण बिजली संकट पैदा हो गया है. बिजली संकट को लेकर राज्य में सियासत का पारा चढ़ा हुआ है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने राज्य में बिजली संकट के लिए गहलोत सरकार के कुप्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया है. ऊर्जा के विभिन्न माध्यमों में सौर ऊर्जा उत्पादन सबसे सस्ता होता है लेकिन राजस्थान को मिली इस उपलब्धि के बाद भी प्रदेश में बार-बार बिजली का संकट मंडराता रहता है. बिजली संकट पर राजनीति तो खूब होती है लेकिन इसके समाधान के सार्थक प्रयास नहीं हुए.
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राजस्थान 7 हजार 738 मेगावाट सौर ऊर्जा क्षमता उत्पन्न करके देश में प्रथम स्थान पर है. इससे लगने लगा कि राजस्थान में बिजली की कोई कमी नहीं रहेगी. लेकिन बिजली उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली नहीं मिल रही है. निर्बाध बिजली कीआपूर्ति भी नहीं हो पा रही है.
इस वजह से बिजली संकट के हालात बने
सरकारी स्तर पर सौर ऊर्जा उत्पादन की इकाइयां कम और बाहरी निवेशकों को प्रोत्साहन अधिक है. जिन निवेशकों को राजस्थान में सौर ऊर्जा के निवेश के लिए छूट दी गई उनसे सस्ती बिजली लेने की दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए. कोयले से बनने वाली बिजली काफी महंगी होती है और इस पर लागत भी ज्यादा आती है. बावजूद इसके राजस्थान में अधिकतर बिजली उत्पादन की इकाइयां थर्मल पर ही आधारित है. कोयले की कमी के कारण बार-बार उत्पादन का काम प्रभावित होता है और केंद्र से हस्तक्षेप की गुहार लगाना पड़ती है. लगातार बिजली संकट बनने पर 15 से 20 रुपए प्रति यूनिट तक बिजली की खरीद की जा रही है. जिसका सीधा भार आम उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है.