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SPECIAL: लड़कियों की शादी की क्या हो सही उम्र, सामाजिक समस्या को कानूनी रूप से निपटाना कितना सही?

कोरोना संकट के बीच केंद्र की मोदी सरकार इस मानसून सत्र में लड़कियों की शादी की उम्र में बदलाव का कानून लेकर आ रही है, लेकिन इसके पीछे सरकार की ओर से जो तर्क दिया जा रहा है, उस पर सवाल उठ रहे हैं. पहला-जब पिछले दशकों में मातृ मृत्यु दर में कमी आई तो फिर उम्र क्यों बढ़ाई जा रही है? दूसरा-जब देश कोरोना जैसे संकट से गुजर रहा, तब इसमें इतनी जल्दबाजी क्यों? तीसरा-जिस वर्ग के लिए कानून लाया जा रहा है उस वर्ग से खुल कर चर्चा क्यों नहीं की जा रही है. Etv भारत की खास रिपोर्ट में देखिए सामाजिक समस्या को कानूनी रूप से निपटना कितना सही और कितना गलत?

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सामाजिक समस्या को कानूनी रूप से निपटना कितना सही

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Published : Sep 18, 2020, 11:12 AM IST

Updated : Sep 18, 2020, 1:29 PM IST

जयपुर.केंद्र की मोदी सरकार तीन तलाक कानून के बाद अब शादी की उम्र में बदलाव कर महिलाओं से जुड़ा दूसरा बड़ा निर्णय करने जा रही है. सरकार लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र सीमा में बदलाव करने पर पुनर्विचार कर रही है. सरकार का मानना है कि इस फैसले से मातृ मृत्यु दर में कमी आएगी. केंद्र सरकार इसके पीछे सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश को वजह बता रही है. सरकार के इस फैसले के बाद शादी की न्यूनतम आयु 18 से बढ़कर 21 वर्ष की जा सकती है. इस फैसले से लड़कियों के जीवन में कई बदलाव भी आएंगे. लेकिन जब देश कोरोना जैसे संकट से गुजर रहा, तब इसमें इतनी जल्दबाजी क्यों ? इस विषय पर ETV भारत ने सामाजिक संस्थाओं से जुड़े लोगों से बात की.

सामाजिक समस्या को कानूनी रूप से निपटना कितना सही

इस मसले पर महिला अधिकार और बाल विवाह पर पिछले कई दशकों से सरकार के साथ मिलकर काम कर रही विशाखा संस्था के सेकेट्री भरत बताते हैं कि केंद्र सरकार सामाजिक बुराई से कानूनी रूप से निपटने की कोशिश कर रही है. जो ठीक नहीं है. पिछले आंकड़ों को देखें, तो शिशु मृत्युदर, मातृ मृत्युदर, प्रजनन दर या फिर बालक-बालिका के अनुपात में काफी कमी आई है. ऐसे में इन तर्क के साथ कानून में बदलाव ठीक नहीं है.

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शिशु मृत्युदर :भारत के पिछले दशकों के आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2014-15 में एक हजार बच्चों के जन्म पर 40 से अधिक नवजात बच्चों की मौत हो रही थी. साल 2016-17 में यह आंकड़ा 34 पर पहुंचा. साल 2018-19 में यह मृत्युदर कम होकर 33 तक आ गई. वहीं 2020-21 के आंकड़े आना बाकी है. इसका मतलब साफ है कि हर साल मृत्यु दर में कमी आई है. वहीं अगर बात करें राजस्थान की तो साल 2014-15 में एक हजार बच्चों के जन्म पर 50 से अधिक नवजात बच्चों की मौत हो रही थी. साल 2016-17 में यह आंकड़ा 41 पर पहुंचा. साल 2018-19 में यह मृत्युदर कम होकर 38 तक आ गई. वहीं 2020-21 के आंकड़े आना बाकी है.

मातृ मृत्युदर :आंकड़ों पर नजर डालें, तो एक लाख बच्चों के जन्म पर भारत में 2011 से 2013 के बीच 167 माताओं की मृत्यु हुई है. 2014 से 2016 के बीच 130 माताओं ने दम तोड़ा है. वहीं 2017 से 2019 के बीच 123 माताओं की मौत हुई है. आंकड़ों से साफ है कि मातृ मृत्युदर में भी हर गुजरते साल के साथ कमी आई है. राजस्थान के आंकड़ों पर नजर डालें, तो 2011 से 2013 के बीच 244, 2014 से 2016 के बीच 199 और 2017 से 2019 बीच 130 माताओं ने दम तोड़ा है. मतलब राजस्थान में भी मातृ मृत्युदर में भी हर साल में कमी आई है.

प्रजनन दर :देश और प्रदेश में प्रजनन दर में भी पिछले दशकों में कमी आई है. प्रजनन दर का औसत देखें तो 1981 में भारत में 4.5, जबकि राजस्थान में 5.2 प्रतिशत, 1991 में भारत मे 3.8 जबकि राजस्थान में 4.6 प्रतिशत, 1999 में भारत में 3.2 जबकि राजस्थान में 4.2 प्रतिशत, 2009 में भारत में 2.7 जबकि राजस्थान में 2.7 प्रतिशत प्रजनन दर रहा है. वहीं लास्ट अपडेट के अनुसार 2017 भारत में यह आंकड़ा 2.2, जबकि राजस्थान में 2.7 प्रतिशत हो गया.

क्या कहते हैं आंकड़े

लड़के और लड़कियों के अनुपात के आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत और राजस्थान में हर साल सेक्स अंतराल में कमी आ रही है. एक वक्त था, जब एक हजार लड़कों पर केवल 888 लड़कियां थी. जबकि हाल ही में यह आंकड़ा बढ़कर 1 हजार लड़कों पर 989 लड़कियों का हो गया है.

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विशाखा संस्था ने केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद आम जनता के बीच पहुंचकर सर्वे किया तो कई बातें सामने आई. विशाखा संस्था की प्रोजेक्ट को-ऑर्डिनेटर रचना शर्मा बताती हैं कि जब इस विषय पर युवाओं से बात की गई तो सामने आया कि उन्हें आपत्ति इस बात से थी जब कानून युवाओं के लिए बन रहा है, तो उनसे खुल कर चर्चा क्यों नहीं की जा रही है? युवाओं का कहना था कि इस कानून को जल्द बाजी में लाया जा रहा है. इसके साथ ही युवाओं ने कहा कि सरकार शादी और सेक्स को एक साथ देख रही है. जो बहुत ही गलत है.

संस्था की रिसोशर्स टीम मेंबर शबनम बताती हैं कि शादी की उम्र बढ़ाने से ज्यादा जरूरी है, लड़कियों की शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर काम किया जाए. अगर महिलाओं या लड़कियों की शिक्षा, स्वस्थ्य और स्किल डेवलपमेंट पर जोर दिया जाए तो खुद ही मातृ मृत्युदर में कमी आएगी.

क्या कहते हैं आंकड़े

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से दिए भाषण में कहा था कि बेटियों की शादी की न्यूनतम आयु पर पुनर्विचार करने के लिए समिति का गठन किया है. समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही हम इस मुद्दे पर निर्णय लेंगे. इससे पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी अपने पिछले बजट भाषण में कहा था कि महिलाओं के मां बनने की सही उम्र में बारे में सलाह देने के लिए एक टास्क फोर्स बनाई गई है.

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार पर छोड़ा था फैसला

दरअसल सरकार के इस निर्णय के पीछे सुप्रीम कोर्ट का अक्टूबर 2017 में आया एक फैसला है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वैवाहिक बलात्कार से बेटियों को बचाने के लिए बाल विवाह पूरी तरह से अवैध माना जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि इस मामले में सरकार को फैसला लेकर लड़कियों की शादी की उम्र में कोई बदलाव चाहिए या नहीं यह निर्णय सरकार करे. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर सरकार ने कवायद शुरू की है.

न्यूनतम आयु क्यों बदलना चाहती है सरकार

लड़कियों की न्यूनतम उम्र सीमा में बदलाव करने की पीछे उद्देश्य मातृ मृत्यु दर में कमी लाना है. जानकारों की मानें तो शादी के लिए लड़के और लड़की की न्यूनतम उम्र एक समान होनी चाहिए. अगर मां बनने के लिए कानूनी उम्र 21 साल देख कर दी जाए, तो महिला के बच्चे पैदा करने की क्षमता वाले सालों की संख्या अपने आप घट जाएगी.

भारत में बीते 5 सालों में हुई इतनी शादियां

एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में बीते 5 सालों में 3 करोड़ 76 लाख लड़कियों की शादी हुई है. इनमें से 2 करोड़ 55 लाख ग्रामीण क्षेत्र और 1 करोड़ 21 लाख लड़कियां शहरी क्षेत्र की रहने वाली हैं. इनमें से 1 करोड़ 37 लाख लड़कियों की उम्र 18 से 19 बीच रही. खास बात इनमें भी 1 करोड़ 6 लाख और 31 लाख शहरी लड़कियों की शादी हुई. जिनकी उम्र 18 से 19 वर्ष रही.

भारत में शादी की उम्र बढ़ाने पर हो रहा विचार

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वहीं 75 लाख लड़कियों ने 20 से 21 वर्ष की उम्र में शादी की है. इनमें भी ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं की बात करें तो 49 लाख ग्रामीण और 26 लाख शहरी क्षेत्र में लड़कियों की शादी हुई. मतलब साफ है कि ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली लड़कियों की शादी की उम्र पिछले 5 सालों में देखे तो 61% ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली लड़कियों 18 से 21 उम्र में हुई है.

यहां शादी की कोई न्यूनतम उम्र नहीं है

सऊदी अरब, यमन और जिबूती में लड़कियों की शादी की कोई न्यूनतम उम्र तय नहीं है

15 साल या उससे कम है शादी की न्यूनतम आयु

ईरान में 13 साल, लेबनान में 9 साल और सूडान में युवावस्था की शुरुआत लड़कियों की शादी न्यूनतम उम्र है. वहीं चाड और कुवैत में 15 साल की उम्र पार करने के बाद लड़कियों की शादी की जा सकती है. अफगानिस्तान, बहरीन, पाकिस्तान, कतर और यूके समेत दुनिया के 7 देशों में लड़कियों की शादी की उम्र न्यूनतम 16 साल है. वहीं नॉर्थ कोरिया, सीरिया और उज्बेकिस्तान में शादी की न्यूनतम आयु 17 वर्ष है.

143 देशों में शादी की न्यूनतम आयु 18 वर्ष -

अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, इटली, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, नार्वे, स्वीडन, नीदरलैंड, ब्राजील, रूस ,साउथ अफ्रीका, सिंगापुर, श्रीलंका और यूएसए सहित दुनिया के कुल 143 देशों में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल तय की गई है. इन देशों में भारत भी शामिल है.

अल्जीरिया, साउथ कोरिया और समोआ में लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु 19 साल तय की गई है. वहीं चीन, जापान, नेपाल और थाईलैंड समेत कुल 6 देशों में लड़कियों को शादी के लिए कम से कम 20 साल का होना अनिवार्य है.

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20 देशों में शादी की न्यूनतम आयु 21 वर्ष है -

इंडोनेशिया, मलेशिया, नाइजीरिया और फिलीपिंस समेत दुनिया के कुल 20 देशों में लड़कियों को शादी के लिए कम से कम 21 साल का होना अनिवार्य है.

यह भी जानें

  • विश्व के ज्यादातर देशों में लड़के और लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 ही है.
  • भारत में 1929 के शारदा कानून के तहत शादी की न्‍यूनतम उम्र लड़कों के लिए 18 और लड़कियों के लिए 14 साल तय की गई थी.
  • 1978 में संशोधन के बाद लड़कों के लिए ये सीमा 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल हो गई.
  • वर्ष 2006 में बाल विवाह रोकथाम कानून ने इन्हीं सीमाओं को अपनाते हुए और कुछ बेहतर प्रावधान शामिल कर, इस कानून की जगह ली.
  • 18 से कम उम्र में विवाह के सबसे ज्यादा मामले उप-सहारा अफ़्रीका (35%) और फिर दक्षिण एशिया (30%) में हैं.
  • यूनिसेफ के मुताबिक 18 साल से कम उम्र में शादी मानवाधिकारों का उल्लंघन है.
  • इससे लड़कियों की पढ़ाई छूटने, घरेलू हिंसा का शिकार होने और प्रसव के दौरान मृत्यु होने का खतरा बढ़ जाता है.
  • इसी परिवेश में सरकार के टास्क फोर्स को लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने पर फैसला उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के हित को ध्यान में रखते हुए करना है.
Last Updated : Sep 18, 2020, 1:29 PM IST

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