जयपुर. प्रदेश की गहलोत सरकार ने उम्मीद के बावजूद इस बजट सत्र में भी 'सामाजिक जवाबदेही कानून' को अभी तक पेश नहीं किया. जिसके बाद सामाजिक संगठनों सहित उन सभी को निराशा हाथ लगी है जो इसकी उम्मीद लगाए बैठे थे कि सरकार इसी सत्र में जवाबदेही कानून लागू करेगी. क्या है जवाबदेही कानून (What is accountability law) और किसकी होगी इस कानून के आने से जवाबदेही तय, देखिए इस रिपोर्ट में.
आम आदमी को एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर का चक्कर नहीं कटना पड़े और कमर्चारी व अधिकारियों की जवाबदेही तय हो, इसको लेकर जवाबदेही कानून लाने की परिकल्पना सामाजिक संगठनों के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने की. चुनावी घोषणा पत्र में भी इस कानून को लाने का दावा किया गया. वर्ष 2019-20 के बजट भाषण में सीएम अशोक गहलोत ने सदन से इस जवाबदेही कानून को लागू करने की बात कही. इस बार 2022-2023 के बजट में सीएम गहलोत ने फिर से इस कानून को लागू करने की बात की. लेकिन अब सामाजिक संगठन घोषणा नहीं चाहते हैं, वो चाहते हैं कि कानून सदन में पेश किया जाए.
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कानूनों का कानून है:सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे का कहना कि यह कानूनों का कानून है. यही कानून कर्मचारियों और अधिकारियों की जवाबदेही तय करेगा. इसलिए बार-बार बजट भाषण में बोलना की हम अकाउंटेबिलिटी तय करेंगे, लेकिन अब घोषणा नहीं चाहिए सरकार कानून लेकर आए. निखिल कहते हैं कि प्रदेश में 80 लोग मनरेगा में रोजगार करते हैं, 80 लाख पेंशनर्स हैं और एक करोड़ 24 लाख राशन धारक हैं, ऐसे अनेकों सामाजिक सुरक्षा है, जो लोगों से जुड़े हुए है. इनमें से 10 हजार 880 को पेंशन नहीं मिल रही है. हजारों नरेगा मजदूरों की मजदूरी दूसरे खाते में चली गई. सैकड़ों सिलिकोसिस पीड़ित परिवारों को लाभ नहीं मिल रहा. डे का कहना है कि इनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा है, इसी जवाबदेही को तय करने के लिए जवाबदेही कानून की जरूरत है.