जयपुर.विश्व संस्कृत दिवस (Vishwa sanskrit Diwas ) हर साल सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है. विश्व संस्कृत दिवस को विश्वसंस्कृतदिनम के नाम से भी जाना जाता है. संस्कृत दिवस का इतिहास 53 वर्ष पुराना है.1968 में एक प्रस्ताव बना कि केंद्र और राज्य सरकारें हर साल ‘संस्कृत दिवस’ मनाएं. तत्कालीन शिक्षा मंत्री डॉ. वीकेआर वरदराज राव ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण काम किया (Vishwa sanskrit Diwas). इसका नतीजा 1969 में आया, जब संस्कृत दिवस मनाने का सरकारी परिपत्र जारी हुआ. डॉ. राव उच्च कोटि के शिक्षाविद और सांस्कृतिक परंपराओं के गहरे जानकार थे इसलिए उन्होंने संस्कृत दिवस के लिए श्रावण मास की पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन का दिन चुना.
संस्कृत दिवस के लिए रक्षाबंधन का दिन चुनने के पीछे जो रहस्य है, वो शाश्वत परंपरा से जुड़ा है. मनुस्मृति में ‘श्रावण्यां प्रौष्ठपद्यां वा उपाकृत्य यथाविधि’ यानी ये दिन सदियों से गुरुकुलों में वेदों की शाखाएं दोहराने का है. यही दिन पुरोहितों की ओर से तीर्थों में ‘उपाकर्म’ करने का है, जिसे ‘श्रावणी’ कहा जाता है. उपाकर्म यानी शास्त्र पढ़ने की शुरूआत का है. मान्यता है कि गुरुकुलों में श्रावणी पूर्णिमा से शैक्षणिक सत्र शुरू होता था. गुरुकुलों में ये दिन अध्ययन और अध्यापन के हिसाब से सबसे महत्त्व का रहा है. इसी दिन रक्षाबंधन का त्योहार भी मनाया जाता है. यही कारण था कि डॉ. राव ने इस दिन को ‘संस्कृत दिवस’ के रूप में चुना, जिससे इस दिन की पारंपरिक महत्ता जीवित रखी जा सके.
प्राचीन काल में गुरुकुल के आचार्यों और अंतेवासी (शिष्यों) ने आत्मकेंद्रित होकर भिक्षाटन से जीवन चलाकर विशाल साहित्य का लेखन और संरक्षण किया. आयुर्वेद, गणितीय प्रणाली, संगीत, शिल्प शास्त्र, वास्तु शास्त्र, कृषि शास्त्र, अर्थशास्त्र तथा खगोल विज्ञान को समृद्ध करने में अनुपम अनुसंधान किए. संस्कृत की खासियत है कि उसमें बहुरंगी विचारों का समावेश है. उसके दर्शन शास्त्र में आस्तिक और नास्तिक का मेल है. अहिंसा, सत्य, चोरी न करना और सामाजिक समानता जैसे आध्यात्मिक और नैतिक आदर्श स्थापित हैं.