जयपुर. प्रत्येक प्राचीन वस्तु में एक भाव निहित होता है जिसके कारण एक व्यक्ति जब इन वस्तुओं से जुड़ता है तो उसके भीतर एक जीवन का आभास होता है. यह उनकी आत्मा को जोड़ने का प्रयास करता है और सात्विकता, पवित्रता, सार और निर्माण में किए गए प्रयत्नों की अनकही कहानियों को सुनाता है, जिसने 'पेपर मैन' के रूप में अपनी अनोखी पहचान बनाई है.
खास है जयपुर का पेपर मैन... बचपन की स्मृति में अपने अतीत की धरोहर को कला का माध्यम बना लेना एक उपलब्धि है. चाहे आड़ी तिरछी रेखाएं, लिपि, तख्ती से निकलकर डाकपत्र, सरकारी दस्तावेज, जन्मकुंडली या कोई भी रूप में हो सकता है, जो अपने अतीत की बराबर याद दिलाता हो कि कभी मैं भी उतना ही आधुनिकता रहा जितना कि वर्तमान की आधुनिक डिजिटल दुनिया है. इसी आधुनिक दुनिया में दस्तावेज के सुनहरे अतीत का लेकर निकले हैं जयपुर के विनय शर्मा, जिनको पूरी दुनिया आज 'पेपर मैन' से जानती है.
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ऐसे करते हैं ड्रेस तैयार...
वो पेपर मैन जो अपनी प्रत्येक नियमित यादों को बचपन की पगडंडी से लेकर जयपुर, वड़ोदरा से जर्मनी, पोलैंड, इजिप्ट और मलेशिया होते हुए वर्तमान तक की यात्रा का कलात्मक संग्रह कर कहानियों और स्मृतियों को आधुनिक कला के रूप में संजोता आ रहा है. पेपर मैन विनय शर्मा 250 साल पुराने बही-पेपर, वसलि-पेपर या हाथ से बने पुराने पेपर के ऊपर की लिखावट या सादे पुराने कागज पर आज के जमाने की लिखावट का सामंजस्य पेपर पर उकेर कर फिर उसको किसी कपड़े पर चिपकाकर उसकी ड्रेस तैयार करते हैं और उसको पहनकर देश-विदेश की यात्राएं करते हैं.
पेपर मैन एक विचार और सिद्धांत है...
विनय शर्मा बताते हैं कि पेपर मैन कोई आदमी नहीं, बल्कि एक विचार और सिद्धांत है, जो सबके सामने चल रहा है और दौड़ रहा है. उसी विचार और सिद्धांतों को धारण कर वो सब जगह जाते हैं और लोगों को दिखाते हैं कि यह था हमारा इतिहास. उन्होंने कहा कि जो हमारी पुरानी जीवन शैली थी, लिखने-पढ़ने की उन सभी में बदलाव आ रहा है और ये सारा बदलाव हमारी मानसिकता को भी बदल रहा है. इसी को देखते हुए वो खुद पेपर मैन बनकर पूरे विश्व में यह संदेश दे रहे हैं कि भारतीय परंपरा-आध्यात्म और लेखन-लेखनी इतनी सुदृढ़ थी जिसका कोई जवाब नहीं था. लेकिन वर्तमान में उन सब चीजों को हम भूलते जा रहे हैं. ऐसे में पेपर मैन का रूप धारण कर वो हमारे अतीत से आम लोगों को अवगत करवा रहे हैं.
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पेपर मैन अब तक पुराने पेपर से कई पुतले, नाव और कलाकृतियां बनाकर अलग-अलग देशों में भाईचारे की अनूठी मिसाल को भारतीय संस्कृति में पिरो चुके हैं. लेकिन फिर भी पेपर मैन दुखी है और कहते हैं कि हमारा अतीत इतना सुनहरा-सुंदर और हमारी लेखनी में कितनी रिधम थी उन सब चीजों को हम भूलते जा रहे हैं. यही वजह है कि वर्तमान में हाथ से हमारे लेखनी छिटक रही है और लिखना बिल्कुल ज्ञान ही नहीं रहा. यही वजह है कि डिजिटल युग मे आज हम सीधा टाइप कर मैसेज कर देते हैं, जबकि वर्तमान में लेखनी के माध्यम से कोई पत्र या संदेश नहीं. ऐसे में जब तक हम सही ढंग से लिखेंगे नहीं तो हमारे विचार परिपक्व नहीं होंगे. यही कारण है कि हम सब उदास होते जा रहे हैं.
विनय शर्मा पेपर मैन बनकर पूरे विश्व में घूम रहे हैं...
ऐसे में उसी परंपरा को पुनः जीवित करने के उद्देश्य से 'आओ लेखनी को पकड़ो-लिखो और अपनी रिदम बनाओ' का संदेश देने के लिए विनय शर्मा पेपर मैन बनकर पूरे विश्व में घूम रहे हैं. ताकि भारतीय परंपरा और भारतीय आध्यात्म को पूरे विश्व तक कैसे पहुंचाया जा सके. इसके लिए उन्होंने 'पेपर मैन' बनने की ठानी और इसी माध्यम से वो देश-दुनिया के लोगों को हमारी संस्कृति से रूबरू करवा रहे हैं.