जयपुर. 14 जुलाई 2020 राजस्थान कांग्रेस (Rajasthan Congress) के लिए एक ऐसी तारीख है, जिसे राजस्थान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सचिन पायलट (Sachin Pilot) और राजस्थान की राजनीति से जुड़े नेता कभी भुला नहीं सकते. दरअसल, 14 जुलाई को ही बगावती तेवर दिखाने पर सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री पद से बर्खास्त किया गया था.
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जिन सचिन पायलट का राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर एक बार में सबसे लंबे कार्यकाल का रिकॉर्ड रहा, उन्हीं सचिन पायलट का 14 जुलाई 2020 को एक ऐसा रिकॉर्ड भी बना जिसे राजस्थान का ही नहीं किसी भी पार्टी का कोई प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाना चाहेगा. 14 जुलाई 2020 को ही बगावत का आरोप झेल रहे सचिन पायलट (Sachin Pilot) को उप मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों पद गंवाने पड़े थे. 14 जुलाई 2020 को अब 1 साल पूरा हो चुका है, लेकिन एक साल बाद भी सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों के हाथ खाली हैं.
एक साल पहले जो सचिन पायलट राजस्थान कांग्रेस (Rajasthan Congress) के अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री जैसे प्रतिष्ठित पदों पर बैठे थे, वहीं सचिन पायलट 14 जुलाई 2020 को राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री पद से हटा दिए गए. जिस बगावत के आरोप में उनके पद गए और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot ) ने जिस बगावत के चलते उन्हें नकारा और निकम्मा कहा, भले ही प्रियंका गांधी से समझौते के बाद सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक पार्टी में वापस आ गए हों और वापसी के बाद प्रदेश प्रभारी अजय माकन ने भले ही सचिन पायलट (Sachin Pilot) को कांग्रेस पार्टी के लिए एक एसेट बता चुके हों, लेकिन हकीकत आज भी यही है कि अपनी पद और प्रतिष्ठा गंवा चुके सचिन पायलट 1 साल बाद भी खाली हाथ हैं.
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1 साल पहले 14 जुलाई को सचिन पायलट बगावत के आरोपों के बाद प्रदेश कांग्रेस (Rajasthan Congress) अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री दोनों पदों से बर्खास्त कर दिए गए थे, लेकिन प्रियंका गांधी से हुए समझौते के बाद सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों की पार्टी में री एंट्री तो हो गई, लेकिन आज भी सचिन पायलट (Sachin Pilot) और उनके कैंप के विधायक अलग-थलग दिखाई देते हैं.
सचिन पायलट भले ही अब अपने लिए किसी पद की डिमांड नहीं कर रहे हों, लेकिन वे अपने समर्थक विधायकों के लिए कैबिनेट और अपने समर्थक नेताओं के लिए राजनीतिक नियुक्तियों में जगह चाहते हैं. लेकिन अब तक न तो उनके किसी समर्थक को कैबिनेट में जगह मिल सकी है और न ही राजनीतिक नियुक्तियों में पायलट कैंप के नेताओं का नाम शामिल हुए हैं.