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स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी टाइप 1 से ग्रस्त एक और बच्चे का इलाज JK लोन हॉस्पिटल में शुरु - बच्चे का इलाज

जयपुर के जेके लोन अस्पताल में स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी टाइप 1 से ग्रस्त एक बच्चे का उपचार शुरू किया गया. यह दवा इस बच्चे को अनुकंपा उपयोग कार्यक्रम के माध्यम से उपलब्ध कराई गई हैं. चिकित्सकों ने बताया कि रिस्डिप्लाम एक स्मॉल मोलिक्यूल ओरल ड्रग है, जिसे बच्चे को घर पर ही दिया जा सकता है.

दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त बच्चे का इलाज शरू, Treatment of a child suffering from rare disease starts
दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त बच्चे का इलाज शरू

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Published : Oct 3, 2020, 6:49 PM IST

जयपुर.जेके लोन अस्पताल जयपुर के दुर्लभ बीमारी केंद्र में एक स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी टाइप 1 से ग्रस्त एक और बच्चे का उपचार शुरू किया गया. यह जेके लोन हॉस्पिटल का दूसरा बच्चा है, जिसको रिस्डिप्लाम (एवरेसडी) नामक दवा निशुल्क शुरू की गई है. इस दवा की पूरी डोज की कीमत मार्केट में 4 करोड़ रुपये प्रति वर्ष है और इसे आजीवन देने की आवश्यकता होती है. यह दवा इस बच्चे को अनुकंपा उपयोग कार्यक्रम के माध्यम से उपलब्ध कराई गई है. चिकित्सकों ने बताया कि रिस्डिप्लाम एक स्मॉल मोलेक्यूल ओरल ड्रग है जिसे बच्चे को घर पर ही दिया जा सकता है.

दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त बच्चे का इलाज शरू

यह बच्चा उत्तर प्रदेश के लखनऊ नामक शहर से इस विशेष उपचार के लिए जे के लोन हॉस्पिटल जयपुर लाया गया. इस बच्चे की बीमारी के बारे में बच्चे की मां को सबसे पहले पांच महीने की उम्र पर अंदेशा हुआ, क्योंकि बच्चे के पैरो के हरकत कम थी और ढीलापन था. इस बच्चे का डेवलपमेंट अन्य बच्चों की तुलना में पीछे था.

परिजनों ने बताया कि बच्चे ने खड़ा होने 15 महीने की उम्र में शुरु किया और चलना लगभग 16 महीने में शुरु किया. लगभग 19 महीने पर बच्चे का चलना फिर से बंद हो गया. पैरेंट्स को लगा कि बच्चे की मांसपेशियों में कमजोरी ज्यादा बढ़ गई. जिसकी वजह से उन्होंने डॉक्टर को कंसल्ट किया. कई डॉक्टर्स को दिखाने के बाद भी जब उन्हें बच्चे की बीमारी का पता नहीं चला, तब पैरेंट्स ने जब जेके लोन हॉस्पिटल की रेयर डिजीज टीम को कंसल्ट किया और जेनेटिक टेस्टिंग कराई तब उन्हें बीमारी का पता चला.

इस बीमारी के इलाज में उपयोग होने वाली दवा की कीमत बहुत ज्यादा होने की वजह से पैरेंट्स खरीदने में असमर्थ थे. बच्चे के पिताजी एक प्राइवेट स्कूल में टीचर है और मां हाउसवाइफ हैं. रेयर डिजीज टीम ने पेशेंट को यह दवा अनुकंपा उपयोग प्रोग्राम के अंतर्गत मुफ्त में उपलब्ध करा कर बच्चे का इलाज शुरू कराया.

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जल्दी होती है मौत

चिकित्सकों ने बताया कि इलाज के अभाव में एसएमए टाइप 1 के बच्चे ज्यादा नहीं जी पाते और बचपन में ही इनकी मृत्यु हो जाती है. जितनी जल्दी इस बीमारी का पता लगा कर इलाज शुरू कर दिया जाता है, परिणाम उतने ही अच्छे देखे जाते हैं. यह दावा बच्चों में एसएमए के सुडो जीन को एक्टिवेट करके एसएमएन प्रोटीन को पुनः बनाने की क्षमता रखता है. इसलिए यह उम्मीद है कि इस उपचार के बाद यह बच्चे नॉर्मल जिंदगी जी पाएंगे.

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