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अग्निकर्म से स्लिप डिस्क से लेकर साइटिका तक का इलाज, जयपुर में आयुर्वेद चिकित्सक सीखेंगे अग्निकर्म तकनीक - अग्निकर्म तकनीक

जयपुर में शुक्रवार को नेशनल इंस्टीट्यूट आफ आयुर्वेद में दो दिवसीय कार्यशाला का उद्घाटन राज्यपाल कलराज मिश्र ने किया. इस कार्यशाला में देशभर से आए आयुर्वेद चिकित्सक भाग ले रहे हैं. विशेष तौर पर यहां अग्निकर्म तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाएगा. इस आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से विभिन्न वातरोगों में दर्द का तुरंत निवारण होता है.

Training of Agnikarma treatment in Jaipur,  governor inaugurated the two days workshop
अग्निकर्म से स्लिप डिस्क से लेकर साइटिका तक का इलाज, जयपुर में आयुर्वेद चिकित्सक सीखेंगे अग्निकर्म तकनीक

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Published : Aug 26, 2022, 5:24 PM IST

Updated : Sep 3, 2022, 11:58 AM IST

जयपुर.विश्व आयुर्वेद परिषद और राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में 26-27 अगस्त को जयपुर में दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है. जहां 2 दिन अग्निकर्म तकनीकी से इलाज को लेकर चर्चा की जाएगी. यहां देशभर से आए लगभग 400 आयुर्वेद चिकित्सक अग्निकर्म प्रशिक्षण प्राप्त (Training of Agnikarma treatment in Jaipur) करेंगे. जिसमें देश के जाने माने अग्निकर्म विशेषज्ञ अग्निकर्म का लाइव डेमोंस्ट्रेशन करेंगे. शुक्रवार को राज्यपाल कलराज मिश्र ने इस कार्यशाला का उद्घाटन किया.

जयपुर के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ आयुर्वेद में आयोजित हो रही कार्यशाला के उद्घाटन के बाद राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि कोविड काल में आर्युवेद की प्राचीन भारतीय परम्परा का महत्व और उपयोगिता एक बार फिर व्यापक स्तर पर स्वतः सिद्ध हुई है. उन्होंने कहा कि कोरोना के दौर में संक्रमण से बचाव और रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक काढ़े का सफल प्रयोग इस पद्धति पर आमजन के विश्वास का प्रतीक है. उन्होंने कहा कि गैर संक्रामक रोगों में भी आयुर्वेद के अंतर्गत और अधिक प्रमाणीकरण के साथ शोध कार्य किए जाने चाहिए और आयुर्वेद राज्यों की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और वृहद स्तर पर रोजगार सृजन में भी सहायक हो सकता है, दक्षिणी राज्य केरल इसका बड़ा उदाहरण है.

पढ़ें:जयपुर में अग्निकर्म कार्यशाला का होगा आयोजन, राज्यपाल मिश्र करेंगे उद्घाटन

क्या है अग्निकर्म:विश्व आयुर्वेद परिषद के प्रदेश सचिव डॉक्टर बी एल बराला ने बताया कि अग्निकर्म एक पैरासर्जिकल तकनीक है. अग्निकर्म की तुलना थर्मल माइक्रोकोटरी से की जाती है. इसमें लोहा, तांबा, स्वर्ण या पंचधातु की शलाका (प्रोब) द्वारा विशिष्ट मर्म बिन्दुओं पर अग्निदग्ध किया जाता है. इसके लिए धातु की छड़ के तीक्ष्ण बिंदु को अग्नि पर लाल तप्त कर शरीर के दर्द युक्त स्थान पर कुछ सेकण्ड के लिए स्पर्श किया जाता है. इस वैज्ञानिक रूप से स्थापित पद्धति से बिना किसी दुष्प्रभाव के बहुत अच्छे परिणाम मिलते हैं. आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथ सुश्रुत संहिता में अग्निकर्म का विस्तृत उल्लेख मिलता है.

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इन रोगों मे लाभदायी है अग्निकर्म:डॉक्टर बराला ने बताया कि इससे विभिन्न वातरोगों में दर्द का तुरंत निवारण होता है. अग्निकर्म से साइटिका, स्लिप डिस्क, स्पॉन्डीलाइटिस, जोड़ों का दर्द, कील (कॉर्न), मुष (वार्ट्स) और नस दबने से होने वाले सभी रोगों में तत्काल राहत मिलती है. कुछ दिन तक उपचार से बिमारी का समूल नाश हो जाता है. अभी राजस्थान में बहुत कम चिकित्सक अग्निकर्म का प्रयोग करते हैं.

Last Updated : Sep 3, 2022, 11:58 AM IST

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