जयपुर. प्रदेश के मदरसा पैराटीचर्स लंबे समय से नियमित होने को लेकर संघर्ष कर रहे हैं. ये कई बार धरना प्रदर्शन कर चुके हैं और मुख्यमंत्री तक अपनी बात पहुंचा चुके हैं. इसके बावजूद इनकी मांग नहीं मानी जा रही. 2013 में 6,000 मदरसा शिक्षा सहायकों की भर्ती भी की गई थी, जिसका अभी तक परिणाम जारी नहीं किया गया है. देखिये जयपुर से ये खास रिपोर्ट...
पूरे प्रदेश की बात की जाए तो प्रदेश में 3,500 मदरसे हैं. जिसमें 1 लाख 80 हजार बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. इन बच्चों का भविष्य संवारने की जिम्मेदारी 5,694 मदरसा पैराटीचर्स पर है. मदरसा पैराटीचर्स का कहना है कि उन्हें बहुत कम मानदेय दिया जा रहा है. जिससे घर खर्च भी चलाना मुश्किल है. सैकड़ों ऐसे मदरसा पैराटीचर्स हैं जो अपने गृह जिले से बाहर अन्य जिलों में रहकर नौकरी कर रहे हैं. जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान तो हो ही रहा है, साथ ही कई तरह की परेशानियों का भी सामना करना पड़ रहा है. सबसे अधिक परेशानी महिला मदरसा पैराटीचर्स की है. महिला मदरसा पैराटीचर्स कई बार समायोजन की मांग भी उठा चुकी हैं, लेकिन अभी तक सभी मदरसा पैराटीचर्स का समायोजन नहीं हो पाया है. मदरसा पैराटीचर्स को 8,742 से लेकर 10,896 रुपये तक का मानदेय दिया जा रहा है.
वादाखिलाफी का आरोप...
राजस्थान उर्दू शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अमीन कायमखानी कहते हैं कि गहलोत सरकार ने मदरसा पैराटीचरों के साथ वादाखिलाफी की है. जन घोषणा पत्र में किए गए वादे के मुताबिक पैराटीचरों को नियमित नहीं किया है. जिससे अल्पसंख्यक समुदाय में आक्रोश व्याप्त है. शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा के विधानसभा में दिए गए बयान के बाद अल्पसंख्यक समुदाय खासा नाराज नजर आ रहा है. डोटासरा ने विधानसभा में कहा था कि फिलहाल मदरसा पैराटीचर्स और पंचायत सहायकों को नियमित करने का कोई प्रस्ताव सरकार के पास नहीं है. डोटासरा के इस बयान के बाद उनके खिलाफ कई जगहों पर विरोध-प्रदर्शन भी किए गए थे. कायमखानी ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि मदरसा पैराटीचर्स को न्यूनतम मजदूरी से भी कम मानदेय दिया जा रहा है. बता दें कि शिक्षा विभाग की अनुदान मांगों पर विधानसभा में 15 मार्च को चर्चा भी हुई और अल्पसंख्यक मामलात मंत्री सालेह मोहम्मद ने सदन में जवाब दिया.