जयपुर.राजधानी जयपुर में हर दिन कई छोटे-बड़े पशु बीमारी, प्लास्टिक और दुर्घटना का शिकार होकर सड़कों पर ही दम तोड़ देते हैं, लेकिन विडंबना ये है कि स्मार्ट सिटी होने के बावजूद जयपुर शहर में एक भी कारकस प्लांट नहीं है, जहां इन मृत पशुओं के शवों का निस्तारण किया जा सके. हालांकि, बड़े पशु और गौवंश के शवों को तो हिंगोनिया गौशाला में एक स्थान पर दफना दिया जाता है, लेकिन छोटे पशु फिलहाल कचरागाह में खुद ही निस्तारित हो रहे हैं.
दरअसल, जयपुर शहर के नागरिकों के बुनियादी ढांचे को बनाए रखने और संबंधित प्रशासनिक कर्तव्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी जयपुर के दोनों नगर निगमों पर है. इसी निगम प्रशासन के पास आवारा पशुओं की समस्या से शहर को निजात दिलाने और सड़कों पर मृत मिले पशुओं के शव का निस्तारण करने की भी जिम्मेदारी है, लेकिन शायद नागरिकों के प्रति अपने कर्तव्यों की पालना करने में निगम प्रशासन इतना व्यस्त हो गया है कि पशुओं के प्रति अपनी जिम्मेदारी ही भुला बैठा है. मृत पशुओं के शवों के निपटान की जब बात आती है, तो निगम के आला अधिकारी बगले झांकने लगते हैं.
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बता दें, साल 2008 में नगर निगम की ओर से मृत पशुओं को वैज्ञानिक पद्धति से निस्तारण करने के लिए चैनपुरा में कारकस प्लांट स्थापित किया गया था, लेकिन साल 2011-12 में जनाक्रोश के चलते उसको बंद कर दिया गया. उसके बाद से मृत पशुओं के शवों का निस्तारण हिंगोनिया गौशाला में किया जा रहा है. साल 2017 में नगर निगम ने श्री कृष्ण बलराम सेवा ट्रस्ट को हिंगोनिया गौशाला के संचालन की जिम्मेदारी सौंपी थी. MoU में स्पष्ट किया गया था कि 1 साल में कारकस प्लांट स्थापित करना होगा. ये प्लांट अब तक नहीं लगाया गया है.