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ये कैसी गोरक्षाः भाजपा की सरकार और नगर निगम में बोर्ड भी .... फिर भी 5 महीने तक चारे का नहीं हुआ भुगतान

हिंगोनिया गोशाला में चारे की कमी के कारण पिछले दिनों में बड़ी संख्या में गायों की मौत होने का मामला सामने आया है. इन मौतों को लेकर भाजपा के शासनकाल में बरती गई लापरवाही और गैर जिम्मेदार रवैये चलते भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं....

हिंगोनिया गोशाला।

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Published : Feb 28, 2019, 3:17 PM IST

जयपुर . प्रदेश में पूर्ववर्ती भाजपा सरकार गोरक्षा को लेकर पूरे कार्यकाल के दौरान झंडा बुलंद किए रही. सरकार के स्तर पर गोरक्षा के लिए कानून भी बनाया गया. लेकिन, विडंबना देखिये की राज्य में भाजपा की सरकार और नगर निगम में भाजपा का बोर्ड होने के बाद भी राज्य की सबसे बड़ी हिंगोनियां गोशाला में गायों को तय समय पर चारा नहीं मिल सका. चारे के भुगतान में लापरवाही और देरी के चलते गायों का चारा दिन-प्रतिदिन घटता चला गया. करीब पांच महीने से अधिक समय तक बनी रही इस स्थिति का परिणाम गायों की मौत के रूप में सामने आया. गोशाला में बड़ी संख्या में गायों की मौत भले ही जनवरी में हुई, लेकिन, इसकी लापरवाही के पीछे पूर्ववर्ती नगर निगम में भाजपा की बोर्ड ही जिम्मेदार रही है.

इस संबंध में ईटीवी भारत की ओर से पड़ताल शुरू की गई तो एक-एक करके लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना रवैये की परतें दर परतें उधड़ती चली गई. ईटीवी की पड़ताल में सामने आया है कि पूर्व महापौर जो कि अब सांगानेर विधायक बन चुके हैं अशोक लाहोती के कार्यकाल के दौरान हिंगोनिया गोशाला में रह रही गायों के चारे का भुगतान ही समय पर नहीं किया गया. आलम यह रहा कि मार्च 2018 का भुगतान चारा उपलब्ध कराने वाली संस्था को अगस्त 2018 में हो पाया था. लगातार हो रही इस लेट लतीफी और लापरवाही को लेकर ना तो कभी लाहोटी सजग हुए और ना ही भाजपा कभी जागी. पड़ताल में सामने आए दस्तावेज से पता चलता है कि मार्च 2018 के चारे का भुगतान अगस्त 2018 में किया गया है. मतलब 5 महीने तक गोशाला को चारे का भुगतान नहीं मिला. बजट के अभाव में गोशाला में चारा उपलब्ध कराने वाली संस्था ने कई बार बजट का भुगतान शीघ्र और समय करने की मांग की. लेकिन, इसका असर जमीनी तौर पर देखने को नहीं मिला. हालात यह हो गए कि वक्त के साथ जहां चारे की कमी लगातार होती चली गई, वहीं भूख से बेबस गायें मौत के मुंह में समाने लगी.

हिंगोनिया गोशाला।

इस सिलसिले में शुरूआत से ही लापरवाही सामने आती है. गौर किया जाए तो चारे को लेकर जारी होने वाली राशि की फाइल बाकी जगहों पर जहां वक्त के साथ आगे बढ़ती है. वहीं नगर निगम में अफसरशाही से लेकर मेयर की मेज तक आते-आते फाइल का दम फूल जाता है. वक्त पर पैसा ना मिलने के कारण चारे की सप्लाई करने वाले ठेकेदार अपना हाथ खींच लेते हैं. इस सिलसिले में मौजूदा महापौर विष्णु लाटा ने भी ये माना है कि मार्च से लेकर सितंबर 2018 तक चारे की मद में भुगतान को लेकर देरी हुई है. अक्टूबर से लेकर जनवरी माह तक तो भुगतान ही नहीं किया गया. नगर निगम की ओर से चारे के भुगतान में की गई देरी के चलते कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं. सबसे बड़ा सवाल यही है कि चारे के भुगतान में आखिरकार देरी क्यों हुई. क्या यहां किसी कमीशन का इंतजार था या फिर कुछ ओर ही कारण थे. ये सवाल उठे तो भारतीय जनता पार्टी की तरफ से निगम में पार्षदों की नुमाइंदगी करने वाले उपमहापौर मनोज भारद्वाज पार्टी के बचाव में दलीलें पेश करने लगे. लेकिन, गायों की मौत का सवाल यहां भी आकर बड़ा बना रहा.

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