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SPECIAL: Online क्लास के जमाने में Offline पढ़ाई भी हो रही मुश्किल, कैसे संवरेगा इन कच्ची बस्ती के बच्चों का भविष्य

कोरोना काल में लैपटॉप और मोबाइल ही क्लास रूम का विकल्प बनते जा रहे हैं. विभिन्न प्राइवेट स्कूलों की ओर से ऑनलाइन क्लासेज देकर बच्चों को नया सिलेबस पढ़ाया जा रहा है. लेकिन ये पढ़ाई उन परिवारों के लिए चुनौती साबित हो रही है, जिनके बच्चों के एडमिशन आरटीई के जरिए प्राइवेट स्कूल में तो हो गए. यही नहीं कुछ दलित, पिछड़े और गरीब वर्ग के परिवार के बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लास तो दूर की बात किताबों का इंतजाम करना भी बड़ी चुनौती साबित होती है.

online class in jaipur, जयपुर में ऑनलाइन क्लास
ऑनलाइन क्लास के जमाने में कैसे पढ़ेंगे ये बच्चे

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Published : Jul 20, 2020, 3:16 PM IST

जयपुर. कोरोना वायरस के रोकथाम के लिए लगे लॉकडाउन की वजह से हर वर्ग आर्थिक और मानसिक रूप से परेशान हुआ, लेकिन मध्यम और गरीब वर्ग के लोगों को ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ा है. वहीं अगर बात करे शिक्षा व्यवस्था की तो वह भी पूरी तरह से चरमरा गई थी, क्योंकि लॉकडाउन की वजह से स्कूल, कॉलेज और कोचिंग कलॉसेज भी बंद पड़े थे.

अनलॉक 2.0 में लोगों को राहत देने के लिए और आर्थिक व्यवस्था सुधारने के लिए कारखानों और कंपनियों को तो सरकार के गाइडलाइन के साथ खोला गया. लेकिन स्कूल कॉलेज और कोचिंग संस्थान अभी भी बंद पड़े है. हालांकि अधिकतर स्कूल ने बच्चों की पढ़ाई सुचारू रूप से चलाने के लिए ऑनलाइन कलॉसेज की शुरुआत की.

मध्यम और गरीब वर्ग के लिए बच्चों के लिए मुश्किल हुई ऑनलाइन पढ़ाई

अगर बात करें प्रदेश की राजधानी जयपुर की यहां सैकड़ों की संख्या में प्राइवेट और सरकारी स्कूल है. प्राइवेट स्कूल ऑनलाइन मोड पर है. सिलेबस पूरा कराने के लिए ऑनलाइन कक्षाएं दी जा रही हैं. कोई छात्रों के साथ वीडियो क्लिप शेयर कर रहा है, तो कोई वर्चुअल क्लास दे रहा है. वहीं सरकारी स्कूलों के छात्रों को स्माइल प्रोजेक्ट के जरिए शिक्षा दी जा रही है. बच्चों की शिक्षा के लिए यूट्यूब, दूरदर्शन और आकाशवाणी का भी इस्तेमाल किया गया. लेकिन ऑनलाइन क्लॉसेज की इस दौड़ और होड़ में कुछ बच्चे अभी भी पढ़ाई से वंचित हैं. ऐसा नहीं है कि ये बच्चे पढ़ाई के काबिल नहीं, और ऐसा भी नहीं है कि इनकी पढ़ाई में रुचि नहीं पर कारण है गरीबी.

बच्चों के पास नहीं है ऑनलाइन क्लास की पर्याप्त सुविधाएं

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ऐसे ही कई बच्चे है जिनके पिता के रोजगार पर कोरोना की मार पड़ी है. काम ना के बराबर है. ऐसे में चाहते हुए भी इन बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में दाखिला नहीं दिलाया जा सका. वहीं सरकारी खेमा अब तक इन लोगों के पास पहुंचा नहीं है. जिसकी वजह से ये बच्चे आज भी शिक्षा के दरवाजे से कोसों दूर खड़े हैं. उधर, कुछ परिवारों में कंगाली में आटा गीले की नौबत आ गई है. जैसे-तैसे कर के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में ABCB सीखने भेजा पर उस पर भी कोरोना और लॉकडाइन की मार ऐसी पड़ी कि सारे क्लॉसेज ऑनलाइन हो गए. ऐसे में जिन अभिभावकों के पास एंड्रॉयड फोन, लैपटाप और इंटरनेट नहीं है, उन्हें घर के बिगड़े बजट की बीच अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए व्यवस्था करनी पड़ी.

ऑफलाइन भी नहीं हो पा रही बच्चों की पढ़ाई

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वहीं जो अभिभावक बिलकुल भी सक्षम नहीं है, उनके बच्चों के लिए ऑनलाइन एजुकेशन एक सपने के समान है. ऑनलाइन क्लासेस उस वर्ग तक सीमित होकर रह गई, जिनके पास मोबाइल, लैपटॉप, इंटरनेट जैसे संसाधन मौजूद हैं. जबकि अकेले राजधानी की बात की जाए तो यहां आज भी 23 फीसदी छात्र ऐसे हैं, जिनके परिवारों में ये सुविधाएं मौजूद नहीं है.

ऑनलाइन क्लास बना चुनौती

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कच्ची बस्तियों में रहने वाले निम्न आय वर्ग परिवारों के 17 फीसदी छात्र ऐसे हैं जिन्हें किताब तक नसीब नहीं है. ऑनलाइन क्लॉसेज तो दूर की कौड़ी है. ईटीवी भारत राजधानी के परकोटा क्षेत्र की उन दलित बस्तियों और कच्ची बस्तियों का नजारा सरकार के उन नुमाइंदों के सामने रखता है, जो प्रदेश के आखिरी बच्चे तक शिक्षा पहुंचने का दावा करते हैं.

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