जयपुर.भाजपा प्रदेशाध्यक्ष ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में इस अहम पद तक पहुचने से लेकर आगामी चुनौतियों, आगमी चुनावों से जुड़े कई सवालों का बेबाकी से जवाब दिया. उन्होंने कहा कि प्रदेश अध्यक्ष का पद निश्चित तौर पर किसी भी कार्यकर्ता के लिए एक सपना होता है, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता के रूप में जो कुछ सीखा उसी की परिणीति के रूप में आज वह इस पद पर काबिज हुए हैं.
पूनिया ने कहा...मैंने कई अवसरों पर कहा है कि भारतीय जनता पार्टी में सम्मान पाना बहुत बड़ी बात है. लेकिन दूसरे दलों की बजाय भाजपा में ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे जिसमें जमीनी लोगों को काम के आधार पर जिम्मेदारी मिली है. मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी, कि इतनी बड़ी जिम्मेदारी मुझे मिलेगी. क्योंकि साधारण कार्यकर्ता होने के बावजूद मुख्यधारा की राजनीति में इतने बड़े राज्य में इस पद तक पहुंचना ये निश्चित ही सपने जैसा होता है. लेकिन ऐसा केवल भारतीय जनता पार्टी में ही संभव हो सकता है.
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राजनीति विविधताओं से भरी है...कई सारे मतभेद और विरोधाभास होते हैं लेकिन ये सियासत के ये मुख्य कारक भी हैं. भारतीय जनता पार्टी में संगठन सबसे बड़ा है, व्यक्ति नहीं. और संगठन में इतनी ताकत है कि वो कई सारी चीजों को डील कर सकता है. साथ ही जो अनुशासनहीनता अन्य पार्टियों में दिखाई देती है, वो भाजपा में नहीं है. हमारे पास कई जगह मनमुटाव की खबरें अक्सर आती हैं. लेकिन वो समस्याएं इतनी बड़ी नहीं है कि संगठन को चुनौती दे सकें.
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क्या आपको नहीं लगता कि किसी ध्रुव को संतुलित करने के लिए सतीश पूनिया को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया
राजनीति में ट्रांसफॉर्मेशन एक सामान्य प्रक्रिया है. मैं आज हूं लेकिन 20 साल बाद कोई और होगा. इसमें किसी की उपेक्षा या किसी का दुराव जैसी कोई बात होती नहीं है. मुझे जो जिम्मेदारी मिली है, वो मेरे काम को देखते हुए मिली है. स्वभाविक तौर पर कार्यकर्ताओं की ताकत की वजह से ही मैं पार्टी में यहां तक पहुंचा हूं.
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मैं संघ का स्वयंसेवक हूं. संघ से बहुत कुछ सीखने को मिला. मैंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत अखिल विद्यार्थी परिषद से की..फिर संघ के संपर्क में आया..इसलिए हमारे जो पैतृक संगठन हैं, उनकी सीख से ही यहां तक पहुंचा हूं...इसलिए मैं कहता हूं कि कोई व्यक्ति बड़ा नहीं, संगठन बड़ा है.
भाजपा मुख्यालय के बाहर एक पोस्टर चर्चा का विषय है, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के साथ आपकी तस्वीर है. क्या यह नेतृत्व को संतुलित करने की कोशिश है.
नेतृत्व का संतुलन तो जरूरी है. एक जमाना था जब लोग कहते थे कि बीजेपी के पास चेहरे नहीं है...नेता नहीं हैं...कार्यकर्ता नहीं है...लेकिन जनसंघ के समय से लंबा संघर्ष किया और भाजपा पहले कैडर की पार्टी बनी और अब अच्छी सोशल इंजीनियरिंग के साथ मास की पार्टी बनी है. हमारे पास आज अच्छी लीडरशिप है. स्वभाविक रुप से पार्टी में कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिनका जनता के बीच अच्छा प्रभाव दिखता है. तो ऐसे चेहरों को दिखते रहना चाहिए.
क्या अब नंबर वन की रेस है, राजस्थान भाजपा में
नंबर वन की कोई रेस नहीं है...क्योंकि संगठन जिसकी जैसी भूमिका तय करता है, उसे वही निभानी होती है. सब नेताओं का यहां सम्मान है. जिस लीडर की जैसी उपयोगिता है उसी के हिसाब से पार्टी उसका सम्मान भी करती है.
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क्या टिकटों के बंटवारे में खींवसर सीट पर वंशवाद नहीं लगता
भाजपा राष्ट्रवाद के विचारों का समुंद्र है जिसमें सब लोग समाहित होते हैं. हमनें विभिन्न दलों को स्वीकार किया है. देश के लोकतंत्र की मजबूती के लिए जो सही होता है वो किया जाता है. खींवसर सीट पर केन्द्र के निर्देश पर आरएलपी से समझौता हुआ. हमने एक सीट छोड़ गठबंधन का धर्म निभाया है. महाराष्ट्र में शिवसेना और पंजाब में अकाली दल के साथ भी गठबंधन निभाया है. अब वहां वंशवाद हो या कुछ और, सहयोगी पार्टी में हम दखल नहीं देंगे.
शराबबंदी पर गुजरात के मुख्यमंत्री के बयान का समर्थन क्यों
राजस्थान सरकार को राज्य में बढ़ते अपराध पर अंकुश लगाने की ओर ध्यान देना चाहिए ना कि पड़ोसी राज्य के मसलों पर ज्ञान देकर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ना चाहिए.