जयपुर. सुप्रीम कोर्ट ने निजी स्कूलों की फीस वसूली के मामले में सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश मैनेजिंग कमेटी सवाई मानसिंह विद्यालय, गांधी सेवा सदन, सोसायटी ऑफ कैथोलिक एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस सहित फीस नियामक कानून, 2016 को चुनौती देने वाली भारतीय विद्या भवन सोसायटी की एसएलपी पर संयुक्त सुनवाई करते हुए दिए.
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करीब पांच घंटे तक चली सुनवाई में राज्य सरकार, निजी स्कूल और अभिभावकों ने अपनी-अपनी दलीलें रखी. निजी स्कूलों की ओर से सोमवार को शुरू की गई बहस को सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान सहित अधिवक्ता प्रतीक कासलीवाल व अनुरूप सिंघवी ने खत्म किया.
निजी स्कूलों की ओर से कहा गया कि जब अनिवार्य शिक्षा का कानून, 2009 लागू है तो फिर राज्य सरकार को फीस एक्ट लाने की क्या जरूरत थी. ऐसे में केवल आपदा प्रबंधन के तहत राज्य सरकार निजी स्कूलों की फीस को तय नहीं कर सकती. इसके अलावा अदालत को स्कूल प्रबंधन व बच्चों के आधारभूत अधिकारों के बीच में समन्वय बिठाना चाहिए.
राज्य सरकार की ओर से एएजी मनीष सिंघवी व सीनियर एडवोकेट देवदत्त कामथ ने बहस करते हुए कहा कि सरकार ने कोरोनाकाल की परिस्थतियों व आपदा प्रबंधन कानून के तहत हाईकोर्ट के आदेश के पालन में निजी स्कूलों की फीस तय की थी. वहीं राज्य सरकार को ऐसा आदेश पारित करने का अधिकार है. सरकार ने 28 अक्टूबर का फीस तय करने का आदेश हाईकोर्ट की ओर से गठित की गई कमेटी की सिफारिशों के बाद जारी किया है.
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वहीं, अभिभावकों की ओर से एडवोकेट सुनीत समदडिया ने कहा कि कोरोना काल में अधिकतर स्कूल पूरी साल भर नहीं चले हैं. ऐसे में यदि शैक्षणिक सत्र 2019-20 की पूरी शत प्रतिशत फीस वसूली का आदेश दिया जाता है तो यह स्कूलों को लाभ कमाने के हक देने के समान होगा. इसलिए जब स्कूल चले ही नहीं हैं तो फिर अभिभावकों से 100 फीसदी फीस की वसूली क्यों की जाए. राज्य सरकार व सीएम आपदा प्रबंधन के तहत फीस तय कर सकते हैं.
गौरतलब है कि एसएलपी में निजी स्कूल संस्थानों ने राजस्थान हाईकोर्ट के 18 दिसंबर 2020 के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें निजी स्कूल संचालकों को राज्य सरकार के 28 अक्टूबर के आदेश की सिफारिशों के अनुसार फीस वसूल करने की छूट देते हुए राज्य सरकार के फीस तय करने के निर्णय में दखल देने से इंकार कर दिया था.