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टीचर्स डे स्पेशल: मिलिए जयपुर की दादी मां से..जो 17 साल से बेसहारा बच्चों को दे रही शिक्षा से सहारा - जयपुर समाचार

प्रदेश में कितने अनाथ बच्चे हैं जो अपनी कहानी बयां नहीं कर पाते. उन्हें मालूम है, भीख मांगने की जगह यदि वे राहगीरों को अपनी कहानी सुनाने लगे तो उनका पेट भरना नामुमकिन हो जाएगा. लेकिन ऐसे ही बच्चों का सहारा बनी राजधानी जयपुर की रहने वाली विमला कुमावत. शिक्षक दिवस पर ईटीवी भारत आपको एक ऐसी महिला शिक्षक से रूबरू कराने जा रहा है. जो गरीब बेसहारा बच्चों का सहारा बनी है. देखिए स्पेशल रिपोर्ट

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Published : Sep 3, 2019, 10:22 PM IST

जयपुर.राजधानी जयपुर के महेश नगर, 80 फीट रोड पर सेवा भारती स्कूल चलाने वाली 63 वर्षीय विमला कुमावत को बच्चे प्यार से दादी मां पुकारते हैं. महिला शिक्षक दादी मां अनाथ और गरीब बच्चों का सहारा बनकर जिंदगी के 17 साल इन बच्चों को समर्पित कर चुकी है. 1 से 8वीं तक स्कूल में यहां बच्चों को पढ़ाती है.

जयपुर की टीचर दादी मां पर टीचर्स डे पर स्पेशल रिपोर्ट

सेवा भाव में दादी मां पर पड़ा संघ का प्रभाव
63 वर्षीय विमला कुमावत ने 17 साल पहले संघ की कार्य प्रणाली शुरू की. संघ प्रचारक धन प्रकाश त्यागी से प्रेरित होकर 26 जनवरी को सड़क किनारे कचरा उठाने वाले 5 बच्चों को पढ़ाने का संकल्प लेकर प्लास्टिक के तिरपाल के नीचे सेवा भारती बाल विद्यालय की शुरुआत की थी. टीचर विमला का कहना है कि तब सोचा भी नहीं था कि उनके द्वारा शुरू किए गए इस काम से आज इतने बच्चों का भविष्य उजागर हो जाएगा.

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स्कूल में पढ़ रहे बच्चों का बन रहा भविष्य
विमला ने बताया कि शुरुआती दौर में सड़क पर कचरा उठाने वाले बच्चों को स्कूल तक लाना सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य था. विमला वाल्मीकि बस्ती में रहने वाले अनाथ गरीब और कचरा उठाने वाले बच्चों के घर जाकर प्रतिदिन लेकर आती थी. कई बच्चों के माता-पिता उन्हें निकलने ही नहीं देते थे. लेकिन विमला ने हार नहीं मानी और 45 वर्ष की उम्र में 5 बच्चों को पढ़ाने का और अपने सादर सेवा भारती में रखने का फैसला.

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400 बच्चों को किया शिक्षित..दिखाया रास्ता
विमला ने अब तक सेवा भारती में 400 बच्चों को आठवीं तक शिक्षा दी है. इसके अलावा आठवीं के बाद सभी बच्चों को निजी या सरकारी स्कूलों में आगे की पढ़ाई के लिए भेजा है. साथ ही उनका जितना भी खर्चा होता है वो खुद वहन करती है.

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कोई नीट की तैयारी कर रहा तो कोई कलेक्टर बनना चाहता है
इस पाठशाला में पढ़ने वाले मासूम बच्चों के सपने बड़े है. इस पाठशाला में पढ़ने वाले कई बच्चें महारानी कॉलेज में बीएड कर रहे है तो कई नीट की तैयारी में लगे है. वहीं कई बच्चों के सपने कलेक्टर बनने के है.

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इन बच्चों के लिए छोड़ा घर-परिवार
विमला कुमावत ने इन बच्चों की जिंदगी सवारने के लिए अपने घर परिवार तक को त्याग दिया और 24 घंटे इन बच्चों के साथ रहती है. इन बच्चों को ही वो अपना परिवार मानती है और उनको शिक्षित करने का काम कर रही है.

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