जयपुर.राजस्थान में स्कूली छात्रों से अध्यापकों की मारपीट के मामलों (Teacher beating Students cases in Rajasthan) में इजाफा देखा गया है, इससे शिक्षा व्यवस्था पर सवाल भी खड़े होने लगे हैं. जालौर के बाद उदयपुर, दौसा, पाली और बाड़मेर की घटनाओं ने यह चर्चा तेज कर दी है कि क्या स्कूली बच्चों के साथ मारपीट सही है? क्या राजस्थान में गुरु जी की बच्चों पर मार उनकी शिक्षा पर बेहतर असर डालेगी या इसके नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं. इसी को लेकर ईटीवी भारत ने मनोचिकित्सक डॉक्टर अनिता गौतम से बात की (Psychiatrist on Physical punishment in School) और जाना कि स्कूलों में बेहतर शिक्षा के लिए अध्यापकों का व्यवहार आखिर कैसा होना चाहिए.
इन घटनाओं ने किया शर्मसार: अगस्त माह की शुरुआत में जालोर के सुराणा गांव में छात्र इंद्र मेघवाल की पिटाई के बाद इलाज के दौरान मौत के बाद प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़े हुए थे. इस दौरान चर्चा तेज हुई कि क्या स्कूल परिसर में अनुशासन और शिक्षा के नाम पर बच्चों के साथ की जाने वाली पिटाई को सही ठहराया जा सकता है. इस घटना के बाद उदयपुर में कक्षा के दौरान किसी अन्य छात्र से पूछे गए सवाल का जवाब देने पर छात्र का सिर पकड़ कर टेबल पर मारने से उसके दांत टूटने की घटना, वल्लभनगर में छात्र के साथ क्लास में चिप्स खाने पर बेरहमी से मारपीट का मामला, दौसा के मेहंदीपुर थाना क्षेत्र में जुलाई माह में नांदरी गांव में छात्र के साथ मारपीट का मामला और बाड़मेर में 24 अगस्त को 13 साल के दलित बच्चे की पिटाई का मामला शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है. इन सभी मामलों में छात्र अनुशासन के नाम पर अध्यापक की पिटाई का शिकार हो गए थे. विशेषज्ञ इस पिटाई को बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज से सही नहीं मानते हैं.
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