जयपुर. जयपुर की ऐतिहासिक धरोहर में शामिल तालकटोरा इन दिनों बदहाली की मार झेल रहा है. कभी खूबसूरती का पर्याय कहे जाने वाला ये तालकटोरा पानी होने के बावजूद भी 'प्यासा' है. इसके जीर्णोद्धार की जिम्मेदारी आरटीडीसी और स्मार्ट सिटी के कंधे पर है. लेकिन फिलहाल ये कंधे तालकटोरा का भार उठा नहीं रहे। यही वजह है कि गुलाबी नगरी की ये शान फिलहाल गंदे पानी और जलकुंभी के ढेर में तब्दील हो चुकी है. देखिये यह विशेष रिपोर्ट...
ताल कटोरा का इतिहास
तालकटोरा का स्वरूप ऐतिहासिक और जयपुर बसने से पहले का है. पहले यहां जंगल और एक बड़ा तालाब हुआ करता था. जिसके किनारे बादल महल बना हुआ था. जो राजा महाराजाओं के आखेट की स्थली थी. जब तालाब सूखा और जयपुर बसा तब तालाब के अंदर तालाब की संकल्पना थी. बड़ा तालाब तो राजामल का तालाब (जय सागर) बना, जिस पर आज कंवर नगर क्षेत्र बसा हुआ है. उसी पर थोड़ी ऊंचाई पर तालकटोरा बनाया गया था.
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इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि बरसात में जब राजामल के तालाब और तालकटोरा में पानी भर जाता था. उस वक्त ये तालाब के अंदर तैरते हुए कटोरे की भांति नजर आता था. फिलहाल यहां तीज-गणगौर की सवारी का समापन होता है. यहां बोट और फव्वारे चला करते थे.
यही नहीं कुछ समय के लिए इसे जयपुर की जलदाय व्यवस्था के लिए भी काम में लिया गया था. लेकिन अक्सर ये तीज त्यौहारों के लिए ज्यादा काम में आता था. उन्होंने कहा कि फिलहाल इसकी दुर्दशा हो रही है. यहां जंगली झाड़ियां, जलकुंभी मौजूद है. प्रशासन की तरफ से रखरखाव की कोई व्यवस्था नहीं की गई है.
बिगड़ रही ताल कटोरा की सूरत
शहर के बीच स्थित तालकटोरा झील इन दिनों गंदगी, सीवरेज के पानी और जलकुंभियों से अटी पड़ी है. रखरखाव के अभाव में तालकटोरा झील स्थानीय लोगों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है. स्थानीय लोगों ने बताया कि जलकुंभी की वजह से गंदगी और मच्छरों का आलम है. अधिकतर घरों में इसकी वजह से बीमारी पसरी हुई है. सैकड़ों बार शिकायत करने के बावजूद हर बार आश्वासन मिलता है.