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राजस्थानी भाषा की मान्यता की मांग ने पकड़ा जोर, नौकरी नहीं संस्कृति के लिए जरूरी मातृभाषा

किसी भी प्रदेश की पहचान के लिए उस स्थान की संस्कृति, खाना-पान और पहनावा अहम समझा जाता है. बात जब सांस्कृतिक धरोहर की हो, तो इन सब तत्वों के लिए मूल रूप से मातृभाषा को अहम (Rajasthan Ki Boliyan Aur Sahitya) समझा जाता है. राजस्थान भी अपनी 'खास' पहचान के लिए काफी समय से लड़ रहा है. मायड़ भाषा की मान्यता की मांग अब जोर पकड़ने लगा है. देखिए जयपुर से ये खास रिपोर्ट और सुनिए क्या कहते हैं जानकार...

Experts Opinion for Rajasthani Language
राजस्थानी भाषा की मान्यता की मांग ने पकड़ा जोर

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Published : Mar 2, 2022, 11:16 AM IST

जयपुर. हाल में 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस (Rajasthani Language Day 2022) पूरे देश में जोर-शोर के साथ मनाया गया था. इस मौके पर राजस्थान में भी मायड़ भाषा के पक्षधर लोगों ने पुरजोर तरीके से अपनी मांग रखी और भाषा की संवैधानिक मान्यता के मसले को रखा. सवाल ये है कि 25 अगस्त 2003 को जब राजस्थान विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित करके केन्द्र सरकार को भिजवा दिया, तो डेढ़ दशक के बाद भी क्यों मायड़ भाषा के हेताळु या कहें कि राजस्थानी भाषा प्रेमी तबका खुद को हाशिये पर देख रहा है.

ऐसे में राजनीतिक मंच पर एक बार फिर से भाषा की मान्यता का ये मसला (Struggle for Recognition of Rajasthani Language) जोर पकड़ते हुए दिख रहा है. जहां एक के बाद एक जनप्रतिनिधियों ने ना सिर्फ राज्य सरकार को पत्र लिखे हैं, बल्कि केन्द्र में लटके पड़े प्रस्ताव पर शीघ्रता से विचार की मांग को भी दोहराया है.

राजस्थानी भाषा की मान्यता की मांग ने पकड़ा जोर

10 करोड़ लोगों की भाषा है राजस्थानी :दुनियाभर में करीब 10 करोड़ लोग राजस्थानी भाषा को बोलते हैं. एक लिहाज से समझा जाए तो हिन्दी, बांग्ला, तेलगू, तमिल और मराठी के बाद राजस्थानी भाषा का ही स्थान है. जानकारों का कहना है कि (Experts Opinion for Rajasthani Language) राजस्थान की भौगोलिक एकता के कारण भाषा का नाम राजस्थान पड़ा, जो भले ही 7 से 8 दशक पुराना हो, लेकिन ये भाषा काफी प्राचीन रही है. जिसे मरु भाषा के नाम से भी जाना जाता रहा है.

नौकरी नहीं संस्कृति के लिए जरूरी मातृभाषा

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दावा किया जाता है कि राजस्थानी भाषा का इतिहास करीब दो हजार साल पुराना है, जो मूल रूप से छह अलग-अलग बोलियों से मिलकर बनी है. इसका शब्द कोष (Discussion on Culture of Rajasthan) साहित्यकार सीताराम लालस ने तैयार किया था, जिसमें राजस्थानी भाषा के 2 लाख 50 हजार से ज्यादा शब्द है.

मंत्री गोविंद राम मेघवाल का पत्र...

इससे जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों को समझने के लिए जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन, जो कि अंग्रेजों के जमाने में 'इंडियन सिविल सर्विस' के कर्मचारी थे. वे बहुभाषाविद् और आधुनिक भारत में भाषाओं का सर्वेक्षण करने वाले पहले भाषावैज्ञानिक भी थे. उनकी किताब लिंग्विस्टिक सर्वे ऑव इंडिया में गुजरात की गुजराती भाषा के साथ ही राजस्थान के लिए राजस्थानी भाषा के नाम का जिक्र किया है.

मंत्री भंवर सिंह भाटी का पत्र...

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माना जाता है कि इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड की किताबों में राजस्थानी भाषा को लेकर काफी कुछ लिखा गया है. माना जाता है कि मध्यप्रदेश के मंदसौर, रतलाम, राजगढ़, उज्जैन, देवास, इन्दौर और धार की मालवी भाषा और हरियाणा के रोहतक, सोनीपत, महेन्द्रगढ़, हिसार, सिरसा, गुड़गांवा और जीन्द की बांगडू भाषा के आधार राजस्थानी ही रही है. मतलब इस भाषा का विस्तार दूसरे प्रदेशों तक रहा है.

सांसाद दीया कुमारी का पत्र...

यूनाइटेड स्टेट्स में राजस्थानी को मान्यता :राजस्थानी भाषा को अमेरिका ने भी मान्यता दे रखी है. वहां हर साल राजस्थानी भाषा में ना सिर्फ मातृभाषा दिवस यानि 21 फरवरी को आयोजन होते हैं, बल्कि प्रदेश से जुड़े त्योहारों पर भी देसी अंदाज के सांस्कृतिक कार्यक्रम धोरों की धरती पर (Voice Raised for Rajasthani Language in America) फैसली सुनहरी रोशनी से विदेशी माटी को भी रोशन कर रहे हैं. सीताराम लालस के तैयार शब्द कोष के ढाई लाख राजस्थानी शब्द अब गूगल प्ले स्टोर पर मौजूद राजस्थानी सबद कोश नाम की एप्लीकेशन में मौजूद है. इस ऐतिहासिक कार्य को आईटी एक्सपर्ट मनोज मीसण ने तैयार किया है.

वसुंधरा राजे का पत्र...

बताया जाता है कि सीताराम लालस ने अपनी जिन्दगी के 45 साल इस काम को दे दिए. जिसके बाद उन्हें वर्ष 1977 में भारत सरकार ने पद्मश्री अलंकरण से सम्मानित किया था. इस शब्द कोष को शिकागो विश्वविद्यालय के साउथ एशिया डिपार्टमेंट ने भी अपने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर साझा किया है. इस एप पर राजस्थान से जुड़े रीत-रिवाज, लोकोक्तियां और मुहावरे भी मौजूद हैं.

अमरीका में उठी मायड़ भाषा को मान्यता की आवाज ...

जनप्रतिनिधियों ने मांगा राजस्थानी को मान्यता के लिए समर्थन :राजस्थानी भाषा को लेकर हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने एक पत्र लिखा. इसके बाद बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया, मंत्री भंवर सिंह भाटी और गोविंद राम मेघवाल के साथ-साथ सांसद दीया कुमारी और विधायक बलवान पूनिया ने भी संवैधानिक मान्यता को लेकर पत्र लिखे. बहरहाल, राजस्थानी भाषा के समर्थकों का तर्क है कि राजनीति और मौजूदा व्यवस्था की खामियों के कारण राजस्थानी भाषा आज हाशिये पर है.

ऐसे में नौकरी की रट को छोड़कर सभी अपनी माटी की संस्कृति का संरक्षण अगली पीढ़ियों के लिए चाहते हैं तो फिर राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलना जरूरी है. ये तो जाहिर है कि 2003 के संकल्प का आज की सरकारी उदासीनता से क्या हश्र हुआ है. लेकिन भाषा से जुड़े लोग अब भी राज्य सरकार से यह मांग कर रहे हैं कि भाषा से जुड़े लोगों की भावना से पहले अगर सरकार अपने संकल्प को ही आधार मान ले तो राजस्थानी को प्रदेश में दूसरी राज्य भाषा का दर्जा दिया जा सकता है. इसमें कोई कानूनी बाधा भी नहीं होगी, क्योकि छत्तीसगढ़ भी पहले ऐसा ही कर चुका है.

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