जयपुर.वैश्विक महामारी कोरोना के बीच हुए लॉकडाउन ने सभी का घरों से निकलना बंद कर दिया था. ऐसे में सरकारी गाइडलाइन के अनुसार मार्च से स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए है. इस विषय में अब तक कोई जानकारी भी नहीं है कि आखिर कब ये शिक्षण संस्थान खुलेंगे, कब ये बच्चे स्कूल जा पाएंगे और कब तक नए सिलेबस की शुरुआत होगी. ऐसे में प्राइवेट स्कूलों की ओर से ऑनलाइन क्लासेस देकर बच्चों को नया सिलेबस पढ़ाना शुरू कर दिया गया है.
ऑनलाइन क्लास स्कूली शिक्षा का सही विकल्प नहीं स्कूल की तरह ही बनाया गया है टाइम टेबल
प्राइवेट स्कूलों की ओर से ऑनलाइन क्लासेस दिए जा रहे है. इसके लिए बच्चों का स्कूल की तरह ही टाइम टेबल बनाया गया है. इस बीच बच्चों की कक्षाएं सुबह 9:00 बजे से शुरू हो जाती हैं और दो से तीन घंटे चलती हैं. वहीं, हर विषय की कक्षा 30 से 35 मिनट तक ही होती है और हर कक्षा के बाद 10 मिनट का ब्रेक भी दिया जाता है. स्कूल प्रशासन की मानें तो अप्रैल और मई में ही छुट्टियों को समर वेकेशन मानते हुए अब जून से ऑनलाइन क्लासेस शुरू कर दी गई है, जिसमें छात्रों का सिलेबस कवर कराया जा रहा है.
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ना चाहते हुए करना पड़ रहा मोबाइल का उपयोग
वैसे तो कहा जाता है कि स्कूली बच्चों को मोबाइल से दूर रखना चाहिए. लेकिन अभी ऐसे हालात है कि मजबूरन बच्चों को पढ़ाई के लिए मोबाइल का इस्तेमाल करना ही पड़ रहा है. इन दिनों माता-पिता भी कुछ ऐसी ही दुविधा से दो-चार हो रहे हैं. लेकिन वे भी क्या करे, बच्चे की पढ़ाई भी जरूरी है. इन सबके बीच बच्चों की सेहत भी अपनी जगह अहम है. साथ ही बच्चा कितना समझ पा रहा है, ये भी देखना काफी जरूरी हो गया है?
बच्चों को ज्यादा समय बिताना पड़ता है गैजेट्स पर मोबाइल या लैपटॉप से वीडियो कॉल के जरिए हो रही ऑनलाइन क्लासेस
प्राइवेट स्कूलों की ओर से शुरू किए गए ऑनलाइन क्लासेस मोबाइल या लैपटॉप पर वीडियो कॉल के जरिए ही दिए जा रहे है, जिससे बच्चों को काफी लंबे समय तक वीडियो कॉल पर रहना पड़ रहा है और लगातार स्क्रीन भी देखनी पड़ रही है. इस बारे में मनोचिकित्सकों की मानें तो बच्चों के लंबे समय तक मोबाइल या लैपटॉप के संपर्क में रहने से मानसिक और शारीरिक तौर पर काफी असर पड़ता है.
इंटरनेट से सिलेबस को करवाया जा रहा पूरा उधर, शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा का कहना है कि ऑनलाइन क्लास स्कूली शिक्षा का विकल्प नहीं हो सकता, ये एक मजबूरी है. यहीं वजह है कि स्माइल प्रोजेक्ट शुरू करने के साथ-साथ यू-ट्यूब, दूरदर्शन और आकाशवाणी का भी इस्तेमाल किया गया. डोटासरा का कहना है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है और भविष्य में यदि जरूरत पड़ी तो तकनीकी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप किया जाएगा. लेकिन स्कूली शिक्षा का एक अलग ही महत्व होता है. इसके साथ ही उन्होंने अब मूक बधिर छात्रों के लिए भी जल्द ई-कंटेंट तैयार करवाए जाने की भी बात कही.
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ऑनलाइन क्लासेस का मौजूदा ढांचा बच्चों पर दबाव
बहरहाल, अब प्रदेश के चार मूक बधिर सहित अन्य स्कूलों में पढ़ाई कर रहे मूक बधिर छात्रों के लिए शिक्षा विभाग अगर सामान्य छात्रों के लिए तैयार कंटेंट को साइन लैंग्वेज के रूप में वीडियो तैयार करवाता है तब भी परेशानी वही रहेगी. छुट्टियों के दौरान पढ़ाई तो जरूरी है, लेकिन ऑनलाइन क्लासेस का मौजूदा ढांचा बच्चों पर दबाव और निजी स्कूलों की होड़ से कम नहीं है.