जयपुर.
मत करो मुझे बर्बाद, इतना तो तुम रखो ख्याल
प्यासे तुम रह जाओगे, मेरे बिना ना जी पाओगे
कब तक बर्बादी का मेरे तुम तमाशा देखोगे
संकट आएगा जब तुम पर तब मेरे बारे में सोचोगे
रवि श्रीवास्तव की पानी पर लिखी एक कविता की ये चंद पंक्तियां हैं, जो हमें पानी के महत्व के बारे में समझाती है. हमारी प्राचीन पद्धतियां ऐसी रही हैं जो जल संरक्षण के बेहतरीन नमूने हैं.
विश्व रेगिस्तान और सूखा दिवस पर विशेष 'विश्व रेगिस्तान और सूखा दिवस' पर आज जयपुर के ऐतिहासिक नाहरगढ़, आमेर और जयगढ़ किले के अंदर जल संवर्धन को लेकर बनाये गए कुओं, बावड़ी, टांकों के बारे में बताएंगे, जो पारंपरिक और प्राचीन तकनीक के बेहतर नमूने हैं. ये वो वाटर सिस्टम है जो सूखे और गर्मी तक में भी फेल नहीं होते. करीब सौ साल पहले राजाओं की ओर से बनाई गई ये तकनीक आज भी कारगर है, लेकिन अब संरक्षण के अभाव में पारंपरिक जल स्रोत भी दम तोड़ने लगे हैं.
जयगढ़ किले में आज भी मौजूद हैं पारंपरिक टांके जयगढ़ किले में बने टांके...
जयपुर में अरावली पर्वतमाला के चील का टीला नाम की पहाड़ी पर आमेर दुर्ग और मावठा झील के ऊपर बने जयगढ़ किले की पहचान एशिया की सबसे बड़ी तोप को लेकर भी होती है. यहां पर एशिया की सबसे बड़ी पहियों पर चलने वाली तोप जयबाण रखी गई है, लेकिन यहां के टांके यानी वाटर स्टोरेज प्लांट भी अनोखा है. जिसे कई साल पहले राजाओं ने पानी की भारी किल्लत को महसूस करते हुए एक अनोखी तकनीक के जरिए बनवाया था. इसमें ना केवल पानी का संग्रहण किया गया, बल्कि एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी तक पानी पहुंचाने के लिए 6 किलोमीटर तक की नहर भी बनाई गई. बता दें कि बारिश के पानी से इसमें जल संरक्षण किया गया.
आमेर के मावठा की एक तस्वीर लाइफ लाइन हैं यहां के टांके...
इतिहासकार राघवेंद्र मनोहर बताते हैं कि राजस्थान में हमेशा से भीषण गर्मी के साथ पानी की भारी किल्लत रही है. यह दिक्कत ज्यादा बढ़ जाती थी जब राजा महाराजाओं के रहने का स्थान पहाड़ी के ऊपर बना करता था. ऐसे में किस तरीके से पानी का संरक्षण किया जाए, यह एक बड़ी चुनौती थी. इसी के चलते महाराजा मानसिंह प्रथम ने 16 शताब्दी में जयगढ़ में जल संरक्षण की नई तकनीक ईजाद की. उन्होंने बताया कि यहां छोटे-बड़े 7 टांके हैं, जो एक तरह से लाइफ लाइन कहे जा सकते हैं. इन टांकों में आज भी पानी का स्टोरेज है और जयगढ़ में रहने और यहां आने वाले ट्यूरिस्ट के लिए इन्हीं टांकों के पानी का उपयोग किया जाता है. इन टांकों में चार से पांच साल तक का पर्याप्त जल संग्रहण किया जा सकता है.
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मनोहर बताते हैं कि पूर्व के महाराजाओं के युद्ध जैसे हालातों में रहने का स्थान पहाड़ी के ऊपर बने किले हुआ करते थे. इन हालातों में लंबे समय तक सैनिक और लोगों को किलो के अंदर रहना पड़ता था. ऐसे वक्त में पानी की समस्या सबसे अधिक थी. उस समय सैनिक और घोड़ों के लिए किस तरह से पानी को रखा जाए, पानी व्यर्थ नहीं बहे और पानी की एक-एक बूंद संग्रहित की जाए इसको लेकर पूर्व महाराजाओं द्वारा किले के निर्माण के साथ ही पानी के संग्रहण की योजना बनाई जाती थी. जिसे आज के आधुनिकता के दौर में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम कहा जाता है.
आमेर के मावठा का इतिहास...
आमेर का मावठा, मावठा यानी महावट. जहां बड़े-बड़े वटवृक्ष हुआ करते थे, लेकिन अब ना वट वृक्ष बचे हैं ना ही मावठों में पानी बचा है. जयपुर के आमेर महल के तल पर स्थित मावठा की इस कृत्रिम झील को महल की सुरक्षा और सुंदरता को बढ़ाने के लिए बनाया गया था. यही झील आमेर के लोगों और जानवरों की प्यास बुझाती थी. इतिहासकार राघवेंद्र सिंह मनोहर बताते हैं कि मावठा का निर्माण कच्छावा राजा जय सिंह के समय महल की सुरक्षा और सुंदरता बढ़ाने के लिए किया गया था. वर्षा ऋतु में भारी मात्रा में पानी भर जाने पर यहां की सुंदरता देखने लायक हो जाती है, लेकिन पिछले कुछ समय से मावठा के ऊपर वाले हिस्से में अतिक्रमण के किया गया है. जिससे बारिश का पानी यहां तक नहीं पहुंच पा रहा है. इसकी वजह से मावठा में पानी कम होता जा रहा है.
रामगढ़ के बांध भी बुझाता है लाखों की प्यास...
रामगढ़ बांध एक जमाने में पूरे जयपुर की प्यास बुझाता था. इतना ही नहीं 1984 के ओलंपिक गेम्स में इसी रामगढ़ बांध के अंदर नौकायन प्रतियोगिता हुई थी, लेकिन इस बांध में भी लगातार हुए अवैध अतिक्रमण ने पानी की आवक को रोक दिया है. जल संरक्षण पर काम करने वाले संजय राज बताते हैं कि जिस तरीके से पूर्व में महाराजाओं ने जल संरक्षण का कार्य किया और पानी की एक-एक बूंद बचाने के लिए एक से बढ़कर एक तकनीक का इस्तेमाल किया. आज के मौजूदा वक्त में इस तकनीक को सहेज कर नहीं रखा जा रहा है. यही वजह है कि रामगढ़ बांध हो या फिर आमेर में बनी बावड़िया हो, सभी संरक्षण के अभाव में सूख गई हैं.
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जल संरक्षण विशेष संजय राज और इतिहासकार अगुनर सिंह मनोहर कहते हैं कि अगर जल संरक्षण को लेकर किसी नीति के साथ काम नहीं किया गया, तो वह दिन दूर नहीं जब पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसना पड़ेगा. जरूरत है कि जो स्थाई जल स्रोत पूर्व में बनाए गए थे उन्हें संरक्षित किया जाए, ताकि सूखे पड़े बांधों में, बावड़ियों में पानी की आवक हो सके.
गौरतलब है कि आज जयपुर में लगातार भूजल स्तर में गिरावट आ रही है. जिसके चलते पानी की किल्लत लगातार बढ़ती जा रही है. नलों में पानी नहीं आ रहा है. लोगों को पानी के लिए टैंकरों के सामने भीड़ लगानी पड़ रही है. ठेकेदार इन टैंकरों के जरिए मनमानी पैसा वसूल रहे हैं. पानी की एक-एक बूंद को तरसते लोगों को अगर बचाना है तो एक बार फिर सरकार को अच्छी नीति के साथ जल संरक्षण पर कार्य करना होगा.