जयपुर.पोलो का नाम सुनते ही, घोड़े और घोड़ों पर बैठे हाथ में स्टीक लिए लोगों की तस्वीरें हमारे जहन में आ जाती हैं. लेकिन ये बहुत कम लोग जानते हैं कि एक वक्त पोलो साइकिल पर खेला जाता था, पर अब बदलते वक्त और आधुनिकता ने साइकिल के महत्व को कम कर दिया है.
राजस्थान से हुई थी भारत में साइकिल पोलो की शुरूआत आज हम विश्व साइकिल दिवस मना रहे है. विश्व साइकिल दिवस मनाए जाने के लिए अमेरिका के मोंटगोमेरी कॉलेज के प्रोफेसर लेस्जेक सिबिल्सकी और उनकी सोशियोलॉजी की कक्षा ने याचिका दी थी. जिसके बाद प्रोफेसर सिबिल्सकी और उनकी कक्षा ने सोशल मीडिया के जरिए इसका काफी प्रचार किया था. फलस्वरूप 3 जून को विश्व साइकिल दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया.
साइकिल पर अनुशासन और धैर्य का अनूठा उदाहरण साइकिल पोलो इस निर्णय को तुर्कमेनिस्तान समेत 56 देशों का सहयोग प्राप्त हुआ. लेकिन हम आपको बता दें कि राजस्थान में लुप्त होती साइकिल को बचाने की कवायद पहले ही शुरू हो चुकी थी. प्रदेश की नूपुर संस्था और अन्य फेडरेशन के जरिए राज्य में वर्षों से साइकिल पोलो का आयोजन किया जा रहा है.
कैसे खेली जाती है साइकिल पोलो
इस खेल के लिए गेंद के आलावा सिर्फ सामान्य साइकिल और पोलो स्टिक की जरूरत है जिसकी कीमत कम होती है. इस खेल में साइकिल चलाते हुए गेंद को उसके लक्ष्य तक पहुंचाना होता है.
गर्मी से बचने और बेहतर स्वास्थ के लिए शुरू हुआ साइकिल पोलो आयरलैंड से हुई थी शुरूआत
साइकिल पोलो पहले राजाओं महाराजाओं के वक्त खेला जाता था. जयपुर के महाराजा तो साइकिल पोलो में ट्रॉफी तक जीत कर आते थे. साइकिल पोलो खेल 1891 में आयरलैंड में शुरू हुआ और इसकी पहली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता आयरलैंड और इंग्लैंड के बीच 1908 में हुई थी.
भारत में साइकिल पोलो का इतिहास
भारत में साइकिल पोलो का शुभारंभ पोलो से हुआ. जयपुर, जोधपुर, बारिया, कपूरथला, कूचबिहार, पटियाला जैसे राजघरानों और डिफेंस के हॉर्स पोलो खिलाड़ियों ने गर्मी के मौसम में अपने आप को शारीरिक और मानसिक रूप से फिट रखने के लिए साइकिल पोलो खेलना शुरू किया. क्योंकि अप्रैल से जुलाई के महीनों में हॉर्स पोलो का अभ्यास संभव नहीं है. कहा जाता है कि यहां आज भी गर्मी के मौसम में भारतीय सेना के हॉर्स पोलो खिलाड़ी साइकिल पोलो का अभ्यास करते हैं.
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नुपूर संस्था के अध्यक्ष मनोज भरद्वाज बताते हैं कि साइकिल पोलो फेडरेशन ऑफ इंडिया की स्थापना 1966 में हुई. लेकिन वक्त के साथ साइकिल पोलो के प्रति लोगों का रुझान भी कम होता चला गया और साइकिल का चलन मौजूदा आधुनिक संसाधनों के आने से खत्म होने लगा. इसलिए 5 से 6 साल पहले लुप्त होती साइकिल हैरिटेज को बचाने के लिए पोलो साइकिल और साइकिल मैराथन शुरू किया था. जो निरंतर जारी है. इससे ना केवल साइकिल के खेलों को जीवंत किया गया, बल्कि इसे इतिहास से भी जोड़ कर रखा है.
साइकिल से बढ़ेगी इम्यूनिटी
वॉलीबॉल नेशनल प्लेयर और प्रदेश सरकार में स्पोर्ट्स ऑफिसर के पद काम करने वाली मालती चौहान बताती हैं कि मौजूद वातावरण में और कोरोना के इस वक्त में इम्यूनिटी बढ़ाने की बात कही जा रही है. ऐसे में अगर साइकिल के उपयोग को अनिवार्य कर दिया जाए और खेलों में साइकिल को बढ़ावा दिया जाए तो लोगों के स्वास्थ्य में काफी सुधार देखने को मिलेगा.
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मालती चौहान के मुताबिक साइकिल परिवहन का स्वच्छ और सस्ता माध्यम है. इससे किसी भी किस्म का पर्यावरण प्रदूषण नहीं होता है और यह फिटनेस की दृष्टि से भी उपयोगी है. इससे देशों को कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में सहायता मिलती है. बाहरी देशों के कई राज्यों में साइकिल का उपयोग अनिवार्य है. ऐसे ही भारत में भी इसके अधिक से अधिक इस्तेमाल पर जोर देना चाहिए.
नीदरलैंड में 40% लोग उपयोग करते हैं साइकिल
एक रोचक तथ्य के अनुसार एम्स्टर्डम नीदरलैंड की राजधानी में 40% लोग काम पर जाने के लिए साइकिल का उपयोग करते हैं. यह संख्या विश्व में सर्वाधिक है.
नीदरलैंड में 40 प्रतिशत लोग चलाते हैं साइकिल परिवहन मंत्री ने की नई पहल
वहीं, बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण को देखते हुए प्रदेश सरकार के परिवहन मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास ने सप्ताह में एक दिन साइकिल पर ऑफिस आने का नियम भी बनाया. उन्होंने खुद एक सप्ताह तक साइकिल चलाई और अपने कर्मचारी अधिकारियों को भी इसका उपयोग करने के निर्देश दिए थे.
प्रतापसिंह खाचरियावास ने की नई पहल जरूरत इस बात की है कि साइकिल दिवस के अवसर पर देश के लोग भी इस बात का प्रण करें कि दैनिक जीवन में वे साइकिल के उपयोग को बढ़ावा देंगे, ताकि पर्यावरण प्रदूषण को कम किया जा सके. साथ ही इंसानों की इम्यूनिटी भी मजबूत हो सके. इससे कोरोना को हराने में भी मदद मिलेगी.