जयपुर.लॉकडाउन में फंसे हुए मजदूरों के घर लौटने की तस्वीरें आम हो गई हैं. शहरों में काम करने वाले यह मजदूर अपने घरों को लौट रहे हैं. कई मजदूरों के लंबा सफर तय करने से पांवों पर छाले तक पड़ गए हैं. लेकिन ये सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है.
पैदल ही अपने घरों की ओर निकल पड़े मजदूर (पार्ट-1) जयपुर का आगरा रोड हाईवे हो, दिल्ली हाईवे हो या. हर जगह यही हालात हैं. कहीं प्रवासी श्रमिक साइकिलों पर सवार होकर जा रहे हैं, तो कहीं अपना सामान लादकर पैदल चल रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ के पास ट्रेन के लिए पंजीकरण कराने के लिए आवश्यक दस्तावेज नहीं हैं. कुछ और देर तक इंतजार नहीं कर सकते हैं. अन्य मामलों में कुछ राज्यों ने अभी प्रवासी मजदूरों के लिए ट्रेन संचालित करने की अनुमति नहीं दी है. मजदूरों के पास मौजूद पैसे खत्म हो गए हैं.
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50 लोगों का दल कर रहा पैदल सफर
कुछ ऐसी ही स्थिति जयपुर से सीतापुर जा रहे प्रवासियों की है. बेरोजगारी के बोझ तले इस तरह दब चुके हैं कि पैदल ही ये घरों के लिए निकल पड़े हैं. इस दल में कुल 50 लोग हैं. जो रोजगार छूट जाने के बाद बेघर हो चुके हैं. इसलिए इनके पास घर जाना ही एकमात्र रास्ता बचा है.
7 माह की गर्भवती भी कर रही पैदल यात्रा
इन प्रवासियों में एक 7 महीने की गर्भवती महिला भी है. जो अपने पति के साथ पैदल ही अपने घर के लिए निकल पड़ी है. इसके साथ ही दल में कई छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल हैं. जो अपने माता-पिता के साथ पैदल ही चल रहे हैं. छोटे बच्चे और महिलाएं साथ होने के कारण यह प्रवासी ज्यादा तेज नहीं चल सकते हैं. इसलिए रुक-रुक कर अपना रास्ता तय कर रहे हैं.
पैदल चलने वालों में 7 माह की गर्भवती भी शामिल प्रवासियों से ईटीवी भारत ने जब बातचीत की तो इन्होंने बताया कि एक तो इन लोगों को सरकार की ओर से कोई वाहन उपलब्ध नहीं करवाया जा रहा है. दूसरी ओर दिक्कत यह है कि अगर किसी अन्य वाहन में यह बैठते हैं, तो पुलिस इन्हें नीचे उतरवा देती है. साथ ही इन्हें ले जाने वाले वाहन का चालान भी काट लेती है. जिससे वाहन के ड्राइवर भी अब इन्हें बैठाने से भी कतरा रहे हैं. ऐसे में पैदल चलना ही एकमात्र विकल्प है.
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पैसे ही नहीं बचे को कैसे करते गुजारा
गर्भवती महिला ने बताया कि पैदल चलने के अलावा उनके पास रास्ता भी क्या है. जिस फैक्ट्री में काम यह करते थे. उसमें काम बंद हो गया है. जिससे उन्हें पैसा मिलना बंद हो गया है और उनके पास खाने को राशन की भी कमी आ गई है. उसके ऊपर से मकान मालिक किराया मांग रहा है. इतनी मुसीबत एक साथ आ गई है कि अब घर जाने के सिवा कोई चारा नहीं बचा है.
इन मजदूरों के लिए राहत की बात यह है कि रास्ते में कुछ भामाशाहों द्वारा इन्हें खाने-पीने की सामग्री नसीब हो जाती है. जिससे इनका सफर आसानी से कट जाता है. इन मजदूरों की ये स्थिति यह साफ करती है कि सरकार के किए सारे वादे धरातल पर कहीं पूरे होते नजर नहीं आते हैं. मजदूरों के लिए ट्रेन छोड़िए सरकार की तरफ से तो खाना भी नसीब नहीं हो रहा है.