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स्पेशल स्टोरी: जयपुर के कोटपूतली में फैक्ट्रियां छीन रहीं जिंदगी...

किसी इलाके में जब कोई इंडस्ट्रियल एरिया बनता है तो लोगों को उम्मीद होती है, कि विकास को पंख लगेंगे. लेकिन, जयपुर के कोटपूतली में बने केशवाना इंडस्ट्रियल एरिया ने 10-12 साल में ही विकास नहीं, बल्कि विनाश की तस्वीर बना दी है. एक विशेष रिपोर्ट.

Special Report, जयपुर में प्रदूषण
जयपुर के कोटपूतली में प्रदूषण पर स्पेशल स्टोरी

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Published : Feb 23, 2020, 7:11 PM IST

जयपुर. दिल्ली-जयपुर हाईवे से जैसे ही केशवाना की तरफ मुड़ते हैं तो यहां ऊंची चिमनियों से धुआं निकलता दिखाई देता है. इस दौरान जैसे ही नजर जमीन पर जाती है तो चारों ओर खुले में पड़ा खतरनाक वेस्ट दिखाई देता है. यहां गौचर भूमि को खराब करता खतरनाक लिक्विड दिखाई देता है और आगे गांव में जाने पर वो लोग मिलते हैं, जिनके शरीर 40 साल की उम्र में जर्जर हो चुके हैं.

जयपुर के कोटपूतली में प्रदूषण पर स्पेशल स्टोरी

कोटपूतली के केशवाना इंडस्ट्रियल एरिया के गांवों में हालात ये है कि यहां के लोगों में तेजी से दिल, त्वचा और कैंसर जैसी बीमारियां बेहद तेजी से बढ़ रही हैं. इतना कि पिछले 2-3 साल में 80 से ज्यादा मौतें इन नए कारणों से हो चुकी हैं. गांव में ना पीने का पानी सही बचा है और ना ही यहां की फसल ही खाने लायक रह गई है. यहां की मिट्टी में उगे पेड़-पौधे जलने लगे हैं. हालात तो ये है कि दूध भी ऐसे पानी से फट जाता है.

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प्रदूषण के खतरे की तस्दीक खुद पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड की जांच रिपोर्ट्स करती हैं. दरअसल, यहां करीब 15 फैक्टरियां हैं. इनमें से ज्यादातर फैक्टरियां रेड जोन में आती हैं, यानी खतरनाक केमिकल्स वाली. कुछ फैक्टरियां पेस्टिसाइड्स की हैं तो कुछ शीशा बनाती हैं. कुछ टेक्सटाइल की हैं तो कुछ बेवरेजेज की. लगभग इन सभी से ऐसा वेस्ट निकलता है, जो किसी भी हालत में खुले में नहीं डाला जाना चाहिए. नियम भी यही है. लेकिन, यहां लोग रुपये बचाने के लिए खतरनाक केमिकल युक्त सॉलिड और लिक्विड वेस्ट को खुले में डाल देते हैं. आरोप तो ये भी है कि कुछ फैक्ट्रियों में तो बड़ी-बड़ी ड्रिल करके इसे सीधे जमीन के अंदर डाला जा रहा है. इस तरह कुछ फैक्ट्रियां सीधे अंडर ग्राउंड वाटर के जरिए जिंदगियां छीन रही हैं.

इस इलाके में सबसे बड़े राजकीय बीडीएम अस्पताल के डॉक्टर भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि फैक्टरियों का जहर इंसान के लिए कितना खतरनाक है. कुओं से निकलने वाला पानी इतना खराब हो चुका है कि आप उससे कुल्ला नहीं कर सकते. ग्रामीण कई बार प्रदर्शन कर चुके हैं. खुद सरपंच भी प्रशासन को शिकायतें दे चुके हैं, लेकिन किसी के कान पर जूं नहीं रेंग रही.

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प्रदूषण फैलाने वाली ये फैक्टरियां सिर्फ लोगों की जिंदगी से ही नहीं खेल रही हैं, अंडर ग्राउंड वाटर खराब हो जाने से कई बेवरेजेस कंपनियां भी बंद होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं. प्रदूषण फैला रही फैक्टरियों को अगर कोई रोकने कि कोशिश करता है तो उसके साथ मारपीट शुरू हो जाती है. पिछले दिनों इस संबंध में पनियाला थाने में मुकदमा भी दर्ज हो चुका है. यहां के निवासी पीने का पानी खरीद कर पी रहे हैं. हालात ये हैं कि फैक्टरियों में ट्रीटमेंट प्लांट नहीं लगाये गए तो इनके पास पलायन के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं रहेगा.

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