जयपुर. राजस्थान के नागौर और बाड़मेर में दलित युवकों के साथ दिल दहलाने वाली ऐसी तस्वीरें सामने आई हैं, जो लोगों को सामाजिक व्यवस्था पर विचार करने के लिए मजबूर करती है. साथ ही प्रदेश की गहलोत सरकार पर को फिर से दलित सुरक्षा के मुद्दे पर कटघरे में खड़ा कर दिया है. सोशल मीडिया पर साझा किए गए इस वीडियो में दबंगता का नंगा नाच दिखता है. बाड़मेर जिले के इस वीडियो में जमीन पर बैठे हुए युवक को सिर्फ इसलिए पिटा जा रहा है, क्योंकि उस पर चोरी करने का शक है.
आंकड़ों में दलित अत्याचार का शर्मनाक सच इससे भी ज्यादा भयावह नागौर का वीडियो है, इसमें पीड़ित के प्राइवेट पार्ट को नुक्सान पहुंचाया गया. वीडियो सोशल मीडिया पर पहुंचा तो प्रदेश की सरकार भी पूरी तरीके से अपने आप को दलित हितेषी बताती हुई आरोपियों को तत्काल गिरफ्तार करने का दावा कर अपनी पीठ थपथपा रही है. लेकिन, इन दोनों मामलों ने एक बार फिर राजस्थान में दलितों पर हो रहे अत्याचार पर बहस छेड़ दी है. प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के साथ गहलोत सरकार के माथे पर अलवर के थाना गाजी की सामूहिक दुष्कर्म की घटना, चूरू जिले में दलित के किराया मांगने पर गंदा पानी पिलाना, बीकानेर में घोड़ी पर बैठने पर पथराव करना और चूरू में नाबालिग के दुष्कर्म कर गर्भवती बनाने जैसी वारदातों ने प्रदेश को दलित अत्याचार मामलों में सिरमौर बना दिया है.
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क्राइम ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि किस तरह से साल 2017 की तुलना में 2019 में 60 फीसदी से ज्यादा हिंसा दलितों के साथ हुई हैं. आंकड़ों को देखे तो 2017 में जहां दलितों पर अत्याचार के दर्ज मुकदमों की संख्या 4 हजार 236 थी. वहीं, प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद दिसंबर 2019 में ये आंकड़ा 6 हजार 794 पर पहुंच गया. इनमें महिलाओं और नाबालिग के साथ अत्याचार, दलित उत्पीड़न और जातीय भेदभाव जैसे मामले हैं. दलित सामाजिक संगठनों का कहना है कि प्रदेश की गहलोत सरकार में मुकदमें दर्ज होने लगे हैं, जिससे इन आंकड़ों में इजाफा हुआ है. लेकिन, तकलीफ ये है कि मुकदमा दर्ज होने पर करवाई नहीं होती. पुलिस मुकदमा दर्ज कर ठंडे बास्ते में डाल देती है. ना आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई होती है और ना ही पीड़ितों को एससी-एसटी एक्ट के तहत मुआवजा मिलता है.
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सामाजिक संगठनों की नाराजगी इस बात से भी ज्यादा है कि साल में दो बार सरकार के स्तर पर बैठक होनी चाहिए. पहली बैठक जनवरी में और दूसरी बैठक जुलाई में होनी चाहिए. लेकिन, सरकार बने हुए एक साल से ज्यादा का वक्त हो गया है. इसके बावजूद अभी भी एक भी बार दलित अत्याचार निवारण के लिए होने वाली बैठक नहीं हुई. यही हाल पिछली सरकार में भी था. पहले भी सरकार ने 5 साल निकाले. लेकिन, एक भी बार दलितों को लेकर बैठक नहीं की. ऐसे में सवाल है कि दलित के अधिकारों की बात करने वाली गहलोत सरकार अगर दलित अत्याचार रोकने और जिम्मेदारी निर्माण करने में नाकाम रहेगी तो फिर दलित किसके भरोसे अपना अधिकार मागेंगे.