जयपुर. नगरीय विकास विभाग ने शिविरों में ऑनलाइन आवेदन प्राप्त कर, मांग पत्र जारी करते हुए राशि जमा कर पट्टे तैयार करने को लेकर आदेश जारी किए हैं.
प्रशासन शहरों के संग अभियान के तहत जिन निकाय की ओर से स्वीकृत योजना, स्वीकृत मास्टर प्लान, जोनल डवलपमेंट प्लान, सैक्टर प्लान, ले-ऑउट प्लान, आवेदन-पत्र, दर की जानकारी आमजन को दी जानी है, उन शिविरों में पट्टे देने की तैयारी की जानी है. ताकि 02 अक्टूबर को मुख्य अभियान के पहले ही दिन ज्यादा से ज्यादा पट्टे जारी किये जा सकें.
पट्टे जारी करने के आदेश
ऐसी कृषि भूमि जिनका पूर्व में ले-आउट प्लान स्वीकृत है उनके संबन्ध में : वर्ष 2011 की जन गणना अनुसार 1 लाख से अधिक आबादी के शहरों में अस्वीकृत कॉलोनियों के पट्टे जोनल प्लान स्वीकृत होने के बाद ही दिये जाने हैं. लेकिन जिन योजनाओं के ले-ऑउट प्लान पूर्व में ही स्वीकृत है, उन्हें कमिन्टमेन्ट मानते हुये जोनल प्लान में समायोजित किया जाना है. ऐसे में पूर्व स्वीकृत योजनाओं में पट्टे दिये जा सकते हैं.
कृषि भूमि पर बसी हुई 17 जून 1999 से पहले और बाद की स्वीकृत योजनाएं जिन में 90-बी की अनुज्ञा है, उनमें 90-बी की निर्धारित दरों से राशि ली जाए. इनमें पहले कैम्प से 15 प्रतिशत ब्याज देय नहीं होगा. यदि पूर्व में मांग पत्र जारी किया हुआ है, लेकिन राशि जमा नहीं हुई है, तो वर्तमान दर से दोबारा मांग पत्र जारी किया जाए.
17 जून 1999 से पहले की स्वीकृत योजनाओं में भूखण्डों का अपंजीकृत दस्तावेजों के आधार पर जितनी भी बार विक्रय हुआ है, अन्तिम क्रेता से प्रीमियम दर की 15 प्रतिशत राशि अतिरिक्त लेकर अन्तिम क्रेता को पट्टे दिये जाएं. 17 जून 1999 के बाद की स्वीकृत योजनाओं में भूखण्डों का पंजीकृत दस्तावेजों के आधार पर विक्रय होने पर प्रीमियम दर की 10 प्रतिशत राशि अतिरिक्त लेकर और अपंजीकृत दस्तावेजों के आधार पर कितनी ही बार विक्रय हुआ हो, प्रीमियम दर की 50 प्रतिशत राशि अतिरिक्त लेकर अन्तिम क्रेता को पट्टे दिये जाएं.
स्वीकृत योजनाएं जिन में खसरा सुपरइम्पोज किया हुआ है, उनमें आवेदक के स्वामित्व भूखण्ड के खसरा नम्बर और सुपर इम्पोज के खसरा नम्बर में भिन्नता होने पर दोनों खसरों की 90-बी/90-ए हो जाने से सुपर इम्पोज त्रुटि मानते हुये पट्टे दिये जाएं. स्वीकृत योजनाओं में आवेदक के स्वामित्व से ले-ऑउट प्लान के अनुसार भूखण्ड के क्षेत्रफल वृद्धि होने पर अधिक भूमि की राशि राजकीय भूमि की दर के अनुसार ली जाए.
स्वीकृत योजनाओं में 90-बी/90-ए की अनुज्ञा के बाद पट्टे दिये जा चुके, ऐसे भूखण्डों के क्षेत्रफल में वृद्धि होने पर निजी विकासकर्ता की योजना में आरक्षित दर का 50 प्रतिशत और अन्य बसी हुई कॉलोनियों/ गृह निर्माण सहकारी समिति की योजनाओं में आरक्षित दर का 25 प्रतिशत से राशि लेकर अधिक भूमि का आवंटन कर पूरक लीजडीड या पुराना पट्टा समर्पण कराकर नया पट्टा दिया जा सकेगा. स्वीकृत योजनाओं में अनुमोदित ले ऑउट के अनुसार मौके पर भूखण्डों का सृजन/ निर्माण नहीं होने पर सुविधा क्षेत्र का अनुपात स्वीकृत ले ऑउट प्लान के अनुसार रखते हुए संशोधित ले-ऑउट प्लान स्वीकृत कर पट्टे दिये जा सकते हैं.
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स्वीकृत योजनाओं में सुविधा क्षेत्र के बराबर भूमि उसी योजना या भूमि उपलब्ध नहीं होने पर समीपवर्ती क्षेत्र में चिन्हिकरण की जा सकती है. सुविधा क्षेत्र में कमी की पूर्ति के लिए भूखण्डधारियों से आनुपातिक फेसिलिटि सेस आरक्षित दर या डीएलसी दर की 25 प्रतिशत जो भी कम हो लिया जाएगा. स्वीकृत ले ऑउट प्लान के भूखण्ड और आवदेक द्वारा पट्टे के लिए प्रस्तुत किये गये भूखण्ड के अनुसार यदि उप-विभाजन / पुर्नगठन है तो 10/- रूपये प्रति वर्गमीटर की दर से राशि लेकर पट्टा दिया जाए. साथ ही इस प्रकार के ले-ऑउट प्लान के उप-विभाजन / पुर्नगठन का अंकन भी प्लान में कर लिया जाए.
कृषि भूमि पर बसी कॉलोनियों के बारे में
ऐसी कृषि भूमियों पर बसी कॉलोनियां जिनके सैक्टर ले-ऑउट प्लान स्वीकृत किये जाने हैं उनके लिए 17 जून 1999 के बाद गृह निर्माण सरकारी समितियों द्वारा जारी पट्टे/ आवंटन पत्र कानूनन मान्य नहीं हैं. निकाय में पेश हुए ले-आउट प्लान या स्वप्रेरणा से करवाये गये सर्व की योजनाओं में योजना में 70:30 का अनुपात रखते हुए धारा 90-ए (8) के अन्तर्गत कार्यवाही करते हुए और 17 जून 1999 बाद की योजना में 60:40 का अनुपात रखते हुए धारा 90–ए (5) और 91 के अन्तर्गत कार्यवाही करते हुए 1 लाख से अधिक आबादी के शहरों में जोनल प्लान के अनुसार और 1 लाख तक आबादी के शहर में मास्टर प्लान के अनुसार स्थानीय एम्पावर्ड समिति द्वारा ले ऑउट प्लान स्वीकृत कर पट्टे दिये जा सकेंगे.
कॉलोनियों में 25 प्रतिशत से कम भूखण्डों पर निर्माण (एक ईकाई और चारदिवारी) होने, सुविधा क्षेत्र 30/40 प्रतिशत से कम होने पर प्रस्तुत प्लान और सर्वे में सृजित भूखण्डों का क्षेत्रफल कम कर सुविधा क्षेत्र बढ़ाया जा सकता है. यदि निर्मित भूखण्डों जिनका क्षेत्रफल कम नहीं हो सकता आरक्षित दर या डीएलसी दर की 25 प्रतिशत जो भी कम हो, उस दर से फेसेलिटि सेस राशि लेकर पट्टे दिये जा सकेंगे. इस राशि को उसी कॉलोनी में सुविधाएं विकसित करने के लिये खर्च किया जाएगा.
कॉलोनियों में 25 प्रतिशत से अधिक भूखण्डों पर निर्माण होने पर सुविधा क्षेत्र 17 जून 1999 से पहले की कॉलोनी में 30 प्रतिशत और बाद की कॉलोनियों में 40 प्रतिशत से कम होने पर कम सुविधा क्षेत्रफल का 'फेसेलिटि सेस' सभी भूखण्डों से लेकर पट्टे दिये जाए. एक और एक से अधिक कॉलोनियों को सम्मिलित करते हुए सैक्टर ले ऑउट प्लान तैयार किया जा सकता है. यदि बाहरी सीमाओं का मिलान हो जाता है तो खसरा सुपर इम्पोज करने की आवश्यकता नहीं होगी. स्वीकृत किये जाने वाले क्षेत्र की चारों ओर की सीमाएं निर्धारित किया जाना आवश्यक होगा.
ले ऑउट प्लान में सरकारी भूमि सम्मिलित होने पर उसका चिन्हीकरण कर राजकीय भूमि में स्थित भूखण्डों की राशि राजकीय भूमि की दर से लेकर पट्टे दिये जाए, चिन्हीकरण नहीं होने पर सभी भूखण्डधारियों से राजकीय भूमि की अतिरिक्त राशि लेकर पट्टे दिये जाएं. आनुपातिक तौर पर ले ऑउट प्लान की चारों ओर की सीमाओं में स्थित खसरों का जमाबन्दी के अनुसार कुल क्षेत्रफल से खसरा ट्रेस या मौके पर अधिक भूमि होने की स्थति में अधिक भूमि की राशि राजकीय भूमि की दर से लेकर ले ऑउट स्वीकृत कर पट्टे दिये जाएं.