जयपुर. 8 मार्च को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर देश-विदेश में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. ईटीवी भारत राजस्थान ने इस मौके पर महिला सशक्तिकरण और उनके अधिकारों को लेकर एक चर्चा का आयोजन किया. इस चर्चा में जयपुर ग्रेटर की महापौर डॉक्टर सौम्या, महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर लाडकुमारी जैन, फोर्टी वीमेन्स विंग की प्रेसिडेन्ट नेहा गुप्ता, सामाजिक कार्यकर्ता और दलित वीमेन फाइट की प्रतिनिधि सुमन देवठिया और नर्सिंग वीमेन्स वेलफेयर एसोसिएशन की अध्यक्ष विनिता शेखावत ने भाग लिया. इस दौरान महिलाओं की समाज में मौजूदा स्थिति, उन्हें लेकर समाज के नजरिये और उनके खिलाफ बढ़ रहे अपराध पर बात की गई.
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष चर्चा ईटीवी भारत की विशेष चर्चा के दौरान महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष लाडकुमारी जैन ने कहा कि शिक्षा समाज के लिये खासा अहम है. हमें महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिये सबसे पहले शारीरिक रूप से आने वाले बदलावों के साथ ही सेक्स एज्यूकेशन को अनिवार्य करने पर विचार करना चाहिए. उन्होंने कहा कि समाज का नजरिया महिला के लिबास तक सिमट कर रह गया है, जो की साफ तौर पर लैंगिक भेदभाव का सूचक है. लाडकुमारी जैन ने कहा कि दहेज हत्या, कन्या भ्रूण हत्या जैसे मामले आज भी बदस्तूर जारी हैं. ऐसे हालात में सामूहिक दुष्कर्म की बढ़ती वारदातें ये बताती हैं कि महिला दमन के लिये इस समाज में लगातार विकृतियां आ रही हैं. उन्होंने इस महिला दिवस पर ये संदेश दिया कि 'नो फीयर, नो टीयर' के फॉर्मूले पर ही महिलाओं को आगे आना चाहिए, तब ही सशक्तिकरण के मायने साकार होंगे. लाडकुमारी जैन ने कहा कि महिला को खैरात नहीं चाहिए, वह खुद के संघर्ष से आगे बढ़ना चाहती है. उन्होंने राइट टू लीव और लीव विद डिग्निटी को प्राथमिकता देने पर जोर दिया.
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष चर्चा यह भी पढ़ेंःस्पेशल: राजस्थान में पहली बार बांधों की रोबोटिक वीडियोग्राफी, रोबोट जांच रहा कितनी है मजबूती
इस दौरान नर्सिंग वीमेन्स वेलफेयर एसोसिएशन की अध्यक्ष विनिता शेखावत ईटीवी भारत का आभार जताते हुए कहा कि समाज में सभी वर्गों को बराबर की भागीदारी के साथ महिलाओं के उत्थान के लिये काम करना चाहिए. आज 21वीं सदी में महिला सशक्तिकरण की बात कार्यस्थल पर ही शोषण का शिकार हो रही है. यहां तक की महिलाओं के अधिकारों की बात करने के लिये कर्मचारी संगठनों में महिलाओं की भागीदारी 10 फीसदी से भी कम है, जिसके कारण उनके अधिकारों की बात हाशिये पर चली जाती है. अगर कोई महिला आगे आने की कोशिश भी करती है, तो किसी ना किसी तरीके से महिला के दमन की कोशिशों को तेज कर दिया जाता है.
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष चर्चा सामाजिक कार्यकर्ता और दलित वीमेन फाइट की प्रतिनिधि सुमन देवठिया ने कहा कि प्रदेश और देश की महिलाओं को अपने हक के लिये लड़ना चाहिए. अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर उन्होंने कहा कि ये जश्न का मौका है, जब महिलाएं अपनी आजादी का जश्न मनाकर समाज को ये संदेश दे सकती हैं कि वे भी इस समाज के विकास की बराबर की हकदार हैं. उन्होंने कहा कि जब महिलाओं के अधिकारों की बात होती है, तो दलित और वंचित वर्ग की स्थिति बेहद खराब है. ऐसे में उनके लिए न्याय की बात की जानी बड़ी मुश्किल है.
यह भी पढ़ेंःस्पेशल: राजस्थान में पहली बार बांधों की रोबोटिक वीडियोग्राफी, रोबोट जांच रहा कितनी है मजबूती
फोर्टी वीमेन्स विंग की प्रेसिडेन्ट नेहा गुप्ता ने कहा कि अपने कदमों में अगर काबिलियत होती है, तो राह दूर नहीं होती है. उन्होंने कहा कि महिलाओं के सशक्तिकरण का मुद्दा जयपुर या राजस्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि ये दुनियाभर के लिये चुनौतीपूर्ण मुद्दा है. उन्होंने महिलाओं से जुड़े मुद्दों और परेशानियों का जिक्र करते हुए ये कहा कि दुनियाभर की कंपनियों में अगर सीईओ के पद पर गौर करें, तो महिलाओं की संख्या सीमित है और ये बात किसी से छिपी हुई नहीं है. महिलाओं के साथ जुड़ी परेशानियों को जब तक समाज नहीं समझेंगा, महिलाओं की भागीदारी बराबरी पर नहीं लाई जा सकती है. उन्होंने इंदिरा नूरी का उदाहरण देकर बताया कि कैसे महिलाओं के हक के लिए उन्हें बचपन से ही काम करना चाहिए. समाज की प्राथमिकता में फिलहाल महिलाएं नहीं है और यहीं कारण है कि इन्हें बराबर की भागीदारी नहीं मिल पाई है. नेहा गुप्ता ने अपील की कि महिलाओं को खुद की मानसिकता से बाहर आकर स्वंय को मजबूत साबित करना होगा.
यह भी पढ़ेंःस्पेशलः उतरन के फूल माथे पर...सात समंदर पार महक रही सुनीता के गुलाल की महक
जयपुर ग्रेटर की महापौर डॉक्टर सौम्या ने कहा कि महिला को समान अधिकार नहीं मिल रहे हैं. हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि महिला खुद को साबित करके ये जता रही है कि वह सशक्त है और हर चुनौती का सामना करने के लिये तैयार है. उन्होंने समाज में व्याप्त कुरुतियों को महिलाओं की बेड़ियों के रूप में बताया. उन्होंने कहा कि हर क्षेत्र में महिला को आगे बढ़ने से रोकने का प्रयास किया जाता है, क्योंकि पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता रखने वाले लोग अपने समानांतर पदों पर महिलाओं को नहीं देखना चाहते हैं. क्योंकि, उन्हें महिलाओं का आगे बढ़ना अपने वर्चस्व को चुनौती के रूप में देखने की आदत हो गई है. उन्होंने कहा कि समाज के विचारों में संकीर्णता और रूढ़िवादिता हावी है, इसमें सुधार के लिए महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों को भी बुनियादी शिक्षा दिए जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि महिला दिवस यानि 8 मार्च के जरिए महिलाओं को मजबूत नहीं बनाया जा सकता है. महिलाओं के हक की बात सालभर की जानी चाहिए.