जयपुर. राजधानी में गुरुवार को आयोजित सेमिनार के शुभारंभ सत्र के संबोधन के दौरान स्पीकर जोशी की जुबां पर देश की सियासत में कांग्रेस में शिखर की स्थिति से लेकर मौजूदा स्थिति तक का जिक्र आ गया. इस दौरान उन्होंने कहा कि कभी देश में कांग्रेस का 31 प्रतिशत और भाजपा का 19 फीसदी वोट था, लेकिन आज स्थिति बदल चुकी है.
राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की सेमिनार में सीपी जोशी उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रमंडल संसदीय संघ राजस्थान शाखा के अध्यक्ष और विधानसभा स्पीकर डॉक्टर सीपी जोशी ने प्रणब मुखर्जी को राजनीति का युग पुरुष बताया और कहा कि भारत रत्न के लिए मुखर्जी को प्रदेशवासियों की ओर से शुभकामनाएं. जोशी ने कहा कि प्रणब दा देश की राजनीतिक पीढ़ियों का आईविटनेस है और इन्हें देश की राजनीति का इनसाइक्लोपीडिया भी कहा जा सकता है.
जोशी के अनुसार एक समय था जब देश की राजनीति में 1952 से लेकर कई सालों तक देश का 50 फीसदी वोट दो नेशनल पार्टियों में ही बंटा था. जिसमें कांग्रेस के पास 31 परसेंट और भाजपा के पास 19 पर्सेंट था. लेकिन साल 2014 में देश की राजनीति में परिवर्तन हुआ और देश का 31 फीसदी वोट भाजपा के खाते में और 19 फीसदी वोट कांग्रेस के खाते में चला गया.
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जोशी के अनुसार साल 2019 में देश की राजनीति एक कदम और आगे बढ़ी और तब से 37 फीसदी वोट बैंक भाजपा के खाते में गया तो 20वीं सदी कांग्रेस के खाते में. जोशी के अनुसार यह 7 फीसदी बढ़ा वह वोट बैंक रीजनल पार्टी को प्रभावित करता है. जोशी के अनुसार आज इस देश की राजनीति जिस चौराहे पर खड़ी है, उसमें बीजेपी का विचार और व्यक्ति कैसे देश की संसदीय लोकतंत्र को प्रभावित करेगा इस बात की चर्चा होने लगी है.
प्रणब दा राजनीति के भीष्म पितामह : कटारिया
वहीं, सेमिनार को संबोधित करते हुए नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि प्रणब मुखर्जी को देश की राजनीति में तीन पीढ़ियों का अनुभव है. उनके अनुसार देश के लोकतंत्र की यात्रा का यदि प्रणब दा को भीष्म पितामह कहा जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगा. कटारिया के अनुसार प्रणब दा ने देश में पूर्ण बहुमत की सरकार भी देखी है तो अल्प बहुमत की सरकारें भी देखी है और वह स्थिति भी देखी है जब देश में और राज्यों में एक ही पार्टी की सरकार हुआ करती थी.
उनके अनुसार देश के संसदीय लोकतंत्र को जिस नजरिए से प्रणब दा ने देखा है उसका आशीर्वाद आज प्रदेश के विधायक और पूर्व विधायकों को भी मिल रहा है. ये हम सबके लिए सौभाग्य की बात है. सेमिनार में विभिन्न सत्रों में चर्चा हुई जिसमें तुलनात्मक वैश्विक संदर्भ में संसदीय लोकतंत्र और भारत का योगदान विषय के साथ ही भारत ने बदलती दलीय व्यवस्था और संसदीय लोकतंत्र की समसामयिक चुनौतियों के विषय पर भी चर्चा हुई.