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SPECIAL : कभी रोटी के लिए फैलाने पड़े थे हाथ...अब ये भिखारी नहीं, स्टूडेंट हैं, ट्रेनिंग के बाद मिलेगी नौकरी - Meadow Orientation and Rehabilitation Campaign

किसी के माता-पिता बचपन में गुजर गए और वह फुटपाथ पर पहुंच गया तो कोई नौकरी की तलाश में जयपुर आया था. काम-धंधा नहीं मिला तो सड़क पर रहकर ही गुजर-बसर करने लगा. किसी के लिए सब दरवाजे बंद हो गए तो भीख मांगकर जो मिला उसी से गुजारा करने लगा. दूसरे लोग इन्हें भिखारी कहकर बुलाते थे. अब इनकी जिंदगी में नई भोर ने दस्तक दी है.

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अब ये भिखारी नहीं, स्टूडेंट हैं, ट्रेनिंग के बाद मिलेगी नौकरी

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Published : Feb 10, 2021, 3:27 PM IST

जयपुर.देश के अलग-अलग कोनों से जयपुर आकर मजबूरी में फुटपाथ पर रहने और भीख मांगकर गुजारा करने को मजबूर 40 लोगों के जीवन में एक नई भोर आई है. राजस्थान कौशल एवं आजीविका विकास निगम के भोर यानी भिक्षुक ओरिएंटेशन एंड रिहैबिलिटेशन अभियान के पायलट प्रोजेक्ट के तहत जयपुर में रह रहे 40 भिखारियों के जीवन में कैसे एक नई उम्मीद का संचार हुआ है और इन लोगों को जीने की एक नई वजह मिल गई है. देखिए यह विशेष रिपोर्ट...

अब ये भिखारी नहीं, स्टूडेंट हैं, ट्रेनिंग के बाद मिलेगी नौकरी

किसी के माता-पिता बचपन में गुजर गए और वह फुटपाथ पर पहुंच गया तो कोई नौकरी की तलाश में जयपुर पहुंच गया. काम-धंधा नहीं मिला तो सड़क पर ही रहकर गुजर बसर करने लगा और भीख मांगकर जो मिला उसी से गुजारा करने लगा. दूसरे लोग इन्हें भिखारी कहकर बुलाते.

40 लोगों के जीवन में 'नई भोर'

राजस्थान सरकार का कौशल विकास एवं आजीविका विकास निगम ऐसे 40 लोगों के जीवन में एक नई भोर लेकर आया है. उन्हें न केवल साफ-सुथरे माहौल में रहने को मिल रहा है बल्कि तय समय पर चाय, नाश्ता और खाना भी मिल रहा है. इसके साथ ही उनकी दिनचर्या सुव्यवस्थित रखने के लिए उन्हें योग, खेल-कूद और सत्संग से भी जोड़ा जा रहा है.

सरकारी कार्यक्रम के तहत 40 लोगों को दी जा रही आजीविका ट्रेनिंग

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दरअसल, कौशल विकास एवं आजीविका विकास निगम ने भिक्षुक ओरिएंटेशन एंड रिहैबिलिटेशन या भोर नाम से एक अभियान शुरू किया है. जिसके तहत फुटपाथ पर गुजर बसर करने वाले भिखारियों के पुनर्वास के लिए उन्हें फूड सर्विस और केटरिंग के गुर सिखाए जाएंगे. इससे पहले उन्हें बुनियादी शिक्षा भी दी जा रही है.

सोपान इंस्टीट्यूट दे रहा बुनियादी शिक्षा

जगतपुरा के राजपूत सभा छात्रावास में सोपान इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट की ओर से इन भिखारियों को बुनियादी शिक्षा के साथ ही स्किल डवलपमेंट के गुर भी सिखाए जा रहे हैं ताकि ये आत्मनिर्भर बनकर आजीविका का स्थायी स्त्रोत विकसित कर सकें.

सरकारी प्रयास और संस्थाएं मिल कर बदल रही अभावग्रस्त लोगों की जिंदगी

आन्ध्रप्रदेश के तुलसीदास की जिंदगी में नया मोड़

अब से पहले फुटपाथ पर जीवन बसर कर रहे आंध्रप्रदेश के तुलसीदास का कहना है कि हाई स्कूल पास करने के बाद प्राइवेट नौकरी भी की. लेकिन हालात ऐसे बन गए कि सड़क पर आ गए और फुटपाथ ही घर हो गया. जो मिला वो खा लिया और नहीं मिला तो भूखे ही सो गया. लेकिन यहां न केवल अच्छा खाने-पीने और पहनने को मिल रहा है. बल्कि फूड सर्विस और केटरिंग की ट्रेनिंग भी दी जाएगी. उन्हें उम्मीद है कि तीन महीने का यह कोर्स करने के बाद उन्हें न केवल नौकरी बल्कि एक नई पहचान भी मिलेगी.

हरियाणा के सुरेंद्र मजबूरी में रहे फुटपाथ पर

हरियाणा से जयपुर आए सुरेंद्र सिंह का कहना है कि वह काम की तलाश में जयपुर आए थे. लेकिन यहां भी कभी काम मिलता तो कभी नहीं मिलता. इसलिए मजबूरी में फुटपाथ पर ही रहना पड़ा. जहां कभी-कभार तो खाने-पीने को भी नहीं मिलता था. अब यहां आकर ट्रेनिंग ले रहे हैं.

जो हाथ भीख के लिए आगे बढ़े, उनके हाथ में कलम

यहां लाने से पहले कोरोना टेस्ट करवाया गया और काउंसलिंग भी की गई. यहां न केवल खाने-पीने को समय पर मिलता है बल्कि ट्रेनिंग भी मिल रही है. अभी तो शुरुआत है. लेकिन यह कोर्स पूरा करने के बाद सुरेंद्र को उम्मीद है कि कोई नौकरी मिल जाएगी या वे अपना खुद का कोई काम शुरू कर पाएंगे.

मध्यप्रदेश के मुकेश ने कोरोना काल में देखा बुरा दौर

मध्यप्रदेश से आए मुकेश विश्वकर्मा की भी कमोबेश यही कहानी है. उनका कहना है कि कोरोना काल से पहले तक तो जैसे-तैसे छोटा मोटा काम मिल जाता था. लेकिन इस दौर में काम-धाम मिलना बंद हो गया. मकान का किराया देने के पैसे नहीं थे, तो फुटपाथ पर ही बसेरा कर लिया. इसके बाद सरकार और संस्था से जुड़े लोग उन्हें अपने साथ लाए.

मुकेश ने बताया कि दूधमंडी में कुछ दिन रखने के बाद कोरोना जांच करवाई और अब यहां रख रहे हैं. यहां हर चीज की सुविधा है. यहां खेल-कूद और योग भी करवाया जाता है. तीन महीने की यह ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उन्हें नौकरी मिलने की उम्मीद है. खुद का काम करके सम्मानपूर्वक जीवनयापन करने की बात भी वे अब सोचने लगे हैं.

जिंदगी ने ली विदिशा के ओमप्रकाश की परीक्षा

मध्यप्रदेश के विदिशा से आए ओमप्रकाश का कहना है कि बचपन में माता-पिता का देहांत हुआ तो दादा-दादी ने पाला. कुछ समय बाद उनका भी देहांत हो गया. पीछे कोई देख-भाल करने वाला नहीं था तो जयपुर आ गये. यहां करीब 18-20 साल से कभी जयपुर में तो कभी जोधपुर में छोटा-मोटा काम करता रहा. कभी काम मिलता तो कभी नहीं मिलता.

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ओमप्रकाश ने बताया कि एक दिन पार्क में बैठे थे तो कुछ लोग आए और इस योजना के बारे में बताया. तो मन में आया कि जब इतने साल सड़क पर बिता दिए तो यहां भी चलकर देख लेते हैं. यहां आने के बाद लगा जैसे हमारा जीवन ही बदल गया. बाकी लोगों की तरह ओमप्रकाश को भी पूरा भरोसा है कि यहां ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उन्हें नौकरी मिल जाएगी और वे सम्मानपूर्वक जीवनयापन कर सकेंगे.

राजस्थान कौशल एवं आजीविका मिशन के तहत भोर

भिखारी नहीं, अब ये स्टूडेंट हैं

इन लोगों को ट्रेनिंग देने वाले सोपान इंस्टीट्यूट के निदेशक अंकित बताते हैं कि यहां आने से पहले इन लोगों को भिखारी कहकर बुलाया जाता था. लेकिन यहां आने के बाद ये स्टूडेंट हैं. यहां इन्हें बुनियादी शिक्षा के साथ ही इनकी काउंसलिंग की जा रही है.

अंकित ने बताया कि यहां आकर इन्हें भी लग रहा है जैसे इन्हें नया जीवन मिला है. उन्हें फूड सर्विस और केटरिंग की ट्रेनिंग दी जाएगी. इसके बाद कई लोगों से बात की हुई है जो ट्रेनिंग पूरी होने पर इन्हें नौकरी भी देंगे. इसके अलावा इनमें से कुछ का अपना काम शुरू करने का भी मन है. उसके लिए भी इन लोगों की मदद की जाएगी.

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