जयपुर. दरअसल वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री रहते हुए साल 2017 में विधानसभा में एक विधेयक पारित कराया था. जिसमें लगातार 5 साल तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेताओं को सरकारी आवास, मोटर गैराज की एक कार, एक पायलट गाड़ी, टेलीफोन, 9 लोगों का स्टाफ, उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया था. उस समय अशोक गहलोत और जगन्नाथ पहाड़िया को इन सुविधाओं का लाभ मिला. 1 साल बाद विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता से बाहर हुई तो जगन्नाथ पहाड़िया के अलावा वसुंधरा राजे को यह सुविधाएं मुहैया कराई गईं.
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पूर्व मुख्यमंत्री को आजीवन सुविधा मुहैया कराने संबंधी कानून के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट में मिलापचंद डांडिया और विजय भंडारी ने एक जनहित याचिका दायर की थी. हाईकोर्ट ने 4 दिसंबर 2019 को याचिका को मंजूर कर सरकार द्वारा बनाए गए कानून को रद्द कर दिया था. हाईकोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका यानि एसएलपी दायर की. सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी की सुनवाई करते हुए इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्य सरकार की एसएलपी रद्द होने के बाद अब अशोक गहलोत सरकार दोनों पूर्व मुख्यमंत्री को दी जाने वाली सुविधाओं को जारी रखने के लिए बीच का मार्ग तलाशने में जुटी है.
मुख्य मंत्री सचिव और मुख्यमंत्री सचिवालय के प्रमुख सचिव , सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव और विधि विभाग के अधिकारी इस संबंध में बैठक कर मंथन में जुट गए हैं. सूत्रों की मानें तो कोर्ट के सख्त रुख को देखते हुए सरकार अब दोनों पूर्व मुख्यमंत्री से गाड़ी, पायलट और स्टाफ जैसी सुविधाएं वापस ले सकती है. लेकिन इन्हें आवास उपलब्ध कराना चाहती है. इसमें वसुंधरा राजे के वरिष्ठ विधायक के नाते सिविल लाइन स्थित उनके 13 नंबर आवास के आवंटन को बरकरार रखा जा सकता है.
वहीं जगन्नाथ पहाड़िया यदि आवास अपने पास रखना चाहते हैं , तो उन्हें किराया देना होगा. यह किराया राज्य सरकार अपने स्तर पर बिल्कुल नाम मात्र का तय करेगी. इससे हाईकोर्ट के निर्णय की पालना भी हो जाएगी और दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास सुविधा भी रहेगी. बता दें, कि सीएम अशोक गहलोत ये बात पहले ही कह चुके हैं, कि विरिष्ठ विधायक के नाते उन्हें बड़ा बंगला दिया जा सकता है. हालांकि अन्य सुविधाओं को लेकर देखना होगा, कि अब कौन सा बीच का रास्ता निकाला जाता है.