जयपुर. केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लागू किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों में उबाल है. पंजाब और हरियाणा के साथ ही उत्तर प्रदेश के किसान पिछले कई दिनों से इन कानून का पुरजोर तरीके से विरोध कर रहे हैं. राजस्थान भी कृषि प्रधान प्रदेश है और पहले के कई किसान आंदोलनों में यहां के किसानों ने अपनी अहम भागीदारी निभाकर सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर किया है, लेकिन राजस्थान का किसान इन दिनों दिल्ली में हो रहे आंदोलन से दूर है.
राजस्थान में कृषि कानूनों का विरोध ईटीवी भारत ने इसके कारणों की पड़ताल की तो सामने आया कि राजस्थान में चल रहे पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव और रबी की फसलों की बुवाई का समय होने के कारण राजस्थान का किसान अब तक इस आंदोलन में मुखर नहीं हुआ है. हालांकि, प्रदेश में कुछ जगह इन कानूनों का विरोध हो रहा है, लेकिन यह महज सांकेतिक विरोध दिख रहा है. जानकर इसे महज राजनीतिक विरोध बता रहे हैं. आम किसान अभी भी इन कृषि कानूनों के खिलाफ खुलकर सड़क पर नहीं उतरा है. जबकि हरियाणा और पंजाब के किसान पुरजोर तरीके से इन कानूनों के खिलाफ मैदान में उतरे हुए हैं.
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हालांकि किसान संगठन अपने स्तर पर इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं. सीपीआईएम और वामपंथी विचारधारा के किसान संगठनों के बैनर तले बीते दिनों प्रदेश में कई जगह विरोध-प्रदर्शन किया गया, लेकिन इनमें से अधिकांश जगह यह प्रदर्शन सांकेतिक ही नजर आया. राजधानी जयपुर में भी दो घंटे के लिए जयपुर-दिल्ली हाइवे पर प्रदर्शन किया गया, लेकिन इस विरोध प्रदर्शन में भी आम किसान कहीं नजर नहीं आया.
मोदी सरकार के तीन कृषि बिलों के विरोध के मुद्दे पर राजस्थान का किसान खामोश क्यों हैं? इस सवाल के जवाब में किसान नेता तारा सिंह सिद्धू का कहना है कि अभी राजस्थान में पंचायती राज व्यवस्था के तहत पंचायत समिति और जिला परिषद के चुनाव चल रहे हैं. इसलिए चुनाव में व्यस्तता के चलते ग्रामीण परिवेश के लोग अभी तक इन कानूनों का खुलकर विरोध नहीं जता पाए हैं. उनका कहना है कि चुनाव खत्म होने के बाद किसान खुलकर कृषि कानूनों के विरोध में उतरेंगे और आंदोलन को गति देंगे.
इस सवाल पर सीपीआईएम के पूर्व महासचिव प्रो. वासुदेव का कहना है कि देश में मजदूरों और किसानों से जुड़े 500 से ज्यादा संगठन अभी इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं. राजस्थान में भी पंचायत चुनाव के बाद किसान खुलकर मैदान में उतरेंगे. गंगानगर किसान आंदोलन को याद करते हुए वे बताते हैं कि राजस्थान का किसान अपने हक की लड़ाई आरपार लड़ने वाला रहा है और आगे भी किसान अपने हक की आवाज बुलंद करता रहेगा. उन्होंने केंद्र सरकार के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पर इन कृषि कानूनों के माध्यम से किसानों के हितों की अनदेखी करने और उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया है.
वहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय किसान संघ की भी इन कृषि कानूनों को लेकर यही धारणा सामने आई है, लेकिन किसान संघ इन्हें वापस लेने की बजाए इनमें कुछ संशोधन के साथ लागू करने की बात कह रहा है. भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री बद्रीनारायण चौधरी का कहना है कि अध्ययन से दिख रहा है कि किसानों की बजाए यह तीन कानून उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने वाले हैं, लेकिन पहली बार किसी सरकार ने इस दिशा में रिफार्म करने की दिशा में कदम बढ़ाया है.
इसलिए यह तीन कानून आगे चलकर किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होने वाले हैं. उनका कहना है कि फिलहाल इनमें चार प्रमुख संशोधन कर लागू करने की दरकार है. इनमें उन्होंने एमएसपी की अनिवार्यता, व्यापारियों के पोर्टल पर पंजीयन, बैंक गारंटी के मार्फत किसानों को सुरक्षित भुगतान की व्यवस्था और विवादों के निपटारे के लिए अलग कृषि न्यायालय की व्यवस्था करने पर जोर दिया है. उन्होंने प्रदेश की कांग्रेस सरकार पर इस मामले में राजनीति करने का आरोप भी लगाया है.
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बता दें कि केंद्र सरकार 5 जून को कृषि संबंधी तीन अध्यादेश लाई थी। इसके बाद 17 सितंबर को लोकसभा में तीन बिल पेश किए गए थे, जो पास होकर कानून का रूप ले चुके हैं. हालांकि, राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने 02 नवंबर को राजस्थान विधानसभा में तीन संशोधित विधेयक पेश किए थे. कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार के ये तीन कृषि बिल किसानों के बजाय उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने वाले हैं. जबकि भाजपा लगातार यह दावा कर रही है कि ये बिल किसानों को उनका हक दिलाएंगे, जो 70 साल से कांग्रेस उन्हें नहीं दिलवा पाई है.