जयपुर. 484 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले जयपुर शहर की आबादी 40 लाख के करीब पहुंच चुकी है. लेकिन राजधानी जयपुर में अभी भी सीवरेज मैनेजमेंट को लेकर पुख्ता नीति तैयार नहीं की गई. कहने को तो जयपुर शहर स्मार्ट सिटी में शुमार हो रहा है. लेकिन आज भी मानसून के दौरान शहर के सीवरेज मेनहोल उफन पड़ते हैं, और सड़कें नदियों में तब्दील हो जाती हैं.
आसमान से हुई मेघ मल्हार लोगों को जहां गर्मी और उमस से राहत देती है. वहीं नगरीय व्यवस्था की पोल भी खोल देती है. राजधानी में नगर निगम प्रशासन भले ही मानसून से पहले सीवरेज मेनहोल और नालों की सफाई के दावे करता है. लेकिन ये दावे बारिश में हवा हो जाते हैं.
बारिश के साथ ही सीवर चैंबर भी उफन पड़ते हैं, और सड़कें नदियों में तब्दील हो जाती हैं. राजधानी के परकोटा क्षेत्र में तो ये समस्या आम है. लेकिन शहर के पॉश एरिया सिविल लाइन, सी स्कीम भी इससे अछूते नहीं. सीवरेज का गंदा पानी सड़कों पर बहने से आम जनता को भी खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है. वर्तमान में नगर निगम में 117 शिकायतें तो अकेले सीवरेज की पेंडिंग चल रही है.
उधर, ग्रेटर नगर निगम कमिश्नर दिनेश यादव ने इस समस्या को वृहद और तात्कालिक दो भागों में बांटते हुए कहा कि शहर में जो भी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं. समय के साथ और जनसंख्या की दृष्टि से अब आउटडेटेड हो गए हैं. ऐसे में अब बड़े सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की कवायद शुरू की जा रही हैं. राज्य सरकार की बजट घोषणा के अनुसार डेहलावास में नया प्लांट बनाया जा रहा है. इसमें एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार नवीनतम तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. इसके निर्माण के बाद शहर की सीवरेज से जुड़ी समस्याओं का निराकरण हो जाएगा.