जयपुर. कहते हैं मां का दर्ज भगवान से भी ऊपर होता है और गुरु का उससे भी ऊपर ऐसे में एक मां शिक्षिका की भूमिका में भी हो तो क्या कहने. आज मदर्स डे पर हम एक ऐसी मां की बात कर रहे हैं, जिसने ना सिर्फ अपने बच्चों को अच्छी तालीम दी, बल्कि घर के नजदीक कच्ची बस्ती के सैकड़ों बच्चों को शिक्षा की नई राह (women educating slum children in Jaipur) दिखाई. वह अपने घर के कामकाज के साथ ही सैकड़ों बच्चों को शिक्षा भी दे रही है. यही कारण है कि स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थी उन्हें 'टीचर मां' कहकर बुलाते हैं.
जयपुर के मानसरोवर में रहने वाली सीमा वार्ष्णेय बीते 11 साल से मानसरोवर द्रव्यवती नदी के पास बसी कच्ची बस्ती के सैकड़ों बच्चों को तालीम दे रही हैं. अपने सफर को साझा करते हुए सीमा वार्ष्णेय ने बताया कि शुरुआत से वह कुछ अलग करना चाहती थीं. उन्होंने अपने पति से वृद्धा आश्रम और अनाथ आश्रम में सेवाएं देने की भी इच्छा प्रकट की. बताती हैं कि एक बार किसी सामाजिक कार्यकर्ता के साथ उनका बेटा मानसरोवर के स्लम एरिया में गया और लौटकर बताया कि उन कच्ची बस्तियों में बच्चे किन परिस्थितियों में रह रहे हैं. उनका बच्चों के प्रति लगाव रहा है, ऐसे में जब वह पहली बार उस कच्ची बस्ती में गई तो वहीं रम गई. उन्होंने एक पेड़ के नीचे बैठकर 'संस्कार की पाठशाला' नाम से कक्षाएं शुरू कर दीं.
कच्ची बस्ती के सैकड़ों बच्चों को शिक्षा की राह दिखा रही 'मां' सीमा वार्ष्णेय ने बताया कि बच्चों में शिक्षा के प्रति रुचि पैदा करने के लिए उन्होंने क्राफ्ट वर्क और ड्राइंग करवाना शुरू किया. पहले उन्होंने 15 बच्चों से शुरुआत की फिर धीरे-धीरे बच्चे बढ़ते गए. कच्ची बस्ती में पानी की समस्या होने की वजह से बच्चे नहाते भी नहीं थे. सीमा ने इस समस्या का तोड़ भी अपने पीएचईडी में कार्यरत पति के माध्यम से निकाल लिया. वार्ष्णेय ने कच्ची बस्ती के 25 बच्चों को तालीम देने के लिए सरकारी स्कूलों में भेजना शुरू किया.
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अब तक 74 बच्चों की निजी स्कूल में कराया दाखिला
सरकारी स्कूल की व्यवस्थाओं से संतुष्ट नहीं होने पर उन्होंने निजी खर्चे पर 6 बच्चों का प्राइवेट स्कूल में दाखिला कराया जिसका नतीजा रहा कि आज वहां रहने वाले लोगों में भी बच्चों को शिक्षा देने के प्रति जागृति आई है. अब स्थानीय बच्चे स्कूल जाकर हायर एजुकेशन ले रहे हैं. इनमें से एक ने तो लास्ट ईयर दसवीं बोर्ड में टॉप भी किया. खास बात तो ये है कि सीमा अब तक करीब 74 बच्चों का एडमिशन प्राइवेट स्कूल में करा चुकी है. और कई छात्र तो इस बार 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं देंगे. उनका मानना है कि हर बच्चे में कोई ना कोई टैलेंट है जिसे वो उजागर करने का प्रयास कर रहीं हैं.
'टीचर मां' का मिला दर्जा
स्लम एरिया में रहने वाले बच्चों में से सीमा वार्ष्णेय को सबसे पहले 'टीचर मां' का दर्जा देने वाली आरती ने बताया कि करीब 10 साल पहले वो सीमा वार्ष्णेय की कॉलोनी में ही सफाई का काम करती थीं. एक बार उन्होंने सीमा वार्ष्णेय से चाय मांगी, तो उन्होंने बिना संकोच किए चाय बना कर दे दी. उन्होंने छुआछूत की दुर्भावना नहीं रखते हुए चाय का गिलास वापस लेकर खुद ने ही साफ कर लिया. तभी से आरती ने उनको मां का दर्जा देते हुए उनसे पढ़ना शुरू किया. आज उनकी एक अच्छे परिवार में शादी भी हो गई है. यही नहीं जो कुछ बुराइयां उनमें थी उन्हें भी उसी मां ने दूर कर दिया.
मां की पर्णकुटी के नाम प्रचलित
सीमा वार्ष्णेय की ओर से शुरू की गई ये मुहिम अब मां की पर्णकुटी के नाम से जानी जाती है. जिससे जुड़ी 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली काजल ने बताया कि 2012 में पहली बार वो उनसे से मिली. उसने शुरुआत में एक पेड़ के नीचे क्राफ्ट वर्क सीखने से शुरुआत की. धीरे-धीरे सीमा वार्ष्णेय ने नोटबुक में होमवर्क और वर्कशीट बनाकर उसे पढ़ाई के प्रति प्रेरित किया. काजल ने बताया कि वो पहली बच्ची है जो मां के जरिए प्राइवेट स्कूल की दहलीज पर पहुंची. जिसका नतीजा है कि उन्होंने (women educating slum children in Jaipur) पहले 10वीं टॉप की और इस साल 12वीं की परीक्षा देंगी. काजल भविष्य में आईएएस का एग्जाम देकर कलेक्टर बनना चाहती है. एक अन्य छात्र विष्णु ने बताया कि मां की पर्णकुटी में ही वो भारतीय संस्कृति से जुड़कर आगे बढ़ रहे हैं.
मां के इन बच्चों में से ही एक काजल ने मां के लिए कुछ ऐसी पंक्तियां लिखी, जिससे ईटीवी भारत भी इत्तेफाक रखता है कि 'मां ईश्वर का दिया सुंदर उपहार है, मेरी मां मेरा संसार है.' वाकई इन बच्चों के लिए सीमा वार्ष्णेय भगवान के किसी उपहार से कम नहीं, क्योंकि इसी उपहार ने उनकी जिंदगी बदल दी है.