जयपुर. राजस्थान की राजधानी जयपुर में भी महाकाल का स्वरूप मौजूद है. यहां कनक घाटी में जयपुर की बसावट से पहले सवाई जयसिंह द्वितीय ने मालवा से लाकर काला महादेव को विराजमान कराया था. खास बात ये है कि ये भारतवर्ष का एकमात्र ऐसा मंदिर है जो कसौटी पत्थर (सोना चांदी को तराशने वाला पत्थर) का बना है.
सावन के पूरे महीने छोटीकाशी जयपुर भगवान भोलेनाथ की जयकारों से गुंजायमान हो उठती है. कावड़ियों के रेले बोल बम के जयकारों के साथ शिवालयों में पहुंचते हैं. भक्त अपने भगवान का जलाभिषेक करने के लिए उत्सुक रहते हैं. भक्ति भाव की पावन छटा के बीच ईटीवी भारत आपको जयपुर के उस शिवालय के बारे में बता रहा है जो खुद महाकाल का स्वरूप कहलाता है. जहां महामृत्युंजय का पाठ करने से असाध्य बीमारियों से निजात मिल जाती है. हम बात कर रहे हैं जयपुर की बसावट से पहले स्थापित काला महादेव मंदिर (Kala Mahadev of Jaipur) के बारे में.
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इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि सवाई जयसिंह मालवा के सूबेदार थे. मालवा में जो नर्मदा नदी बहती है, वहां शिवलिंग की प्रधानता है. ऐसा माना जाता है कि नर्मदा में से शिवलिंग आ जाते हैं. ये शिवलिंग भी वहीं से मिला और उसे विधिवत रूप से बैलगाड़ी के जरिए जयपुर लाया गया. जयपुर के महाराजा को सपना आया कि इसे गोविंद देव जी मंदिर प्रांगण में विराजमान कराया जाए, यही वजह है कि कनक घाटी स्थित प्राचीन गोविंद देव जी मंदिर में ही काला महादेव शिवलिंग को विराजमान कराया गया.
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ऐसी मान्यता है कि ये महाकाल का ही प्रतिरूप है. या यूं कहें कि जयपुर में भी इन्हीं के रूप में महाकाल विद्यमान है. ये शिवलिंग एक ऐसे विशेष पत्थर का बना हुआ है जिसे कसौटी का पत्थर कहा जाता है. किसी भी महंगे धातु (चांदी-सोना) को तराशने के लिए इस पत्थर का उपयोग किया जाता है. इस पत्थर का शिवलिंग पूरे भारतवर्ष में कहीं नहीं है. सावन के महीने में यहां रुद्राभिषेक से लेकर कांवड़ यात्रा तक कई आयोजन होते हैं. बताया जाता है कि इस शिवलिंग के नीचे एक और शिवलिंग मौजूद है. ऐसा कहीं देखने को नहीं मिलता. उन्होंने बताया कि मंदिर को लेकर ऐसी भी मान्यता है कि यहां पर महामृत्युंजय के जाप करने से असाध्य बीमारियां ठीक हो जाती है.
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मंदिर पुजारी ने बताया कि जयपुर बसने से पहले का ये मंदिर शहर से दूर है. इसलिए लोगों की आवाजाही कम रहती है. यहां शिवलिंग के साथ पूरा शिव परिवार मौजूद है, जिनकी श्रद्धालु आराम से सेवा-पूजा कर पाते हैं. सावन के चारों सोमवार और दोनों प्रदोष पर भगवान का विशेष अभिषेक और सहस्त्र घट का आयोजन होता रहा है. इस बार भी यहां यजमान तय हो चुके हैं. इस सावन में 17 जुलाई को एक कांवड़ यात्रा निकल चुकी है, जबकि अगली कांवड़ यात्रा 7 अगस्त को निकलेगी. कनक घाटी में पहुंचने वाला व्यक्ति यहां भगवान के दर्शन जरूर करता है.