जयपुर. शहरी क्षेत्र में आबादी का बोझ कम करने के लिए बड़े कस्बों को ही छोटे शहर के रूप में विकसित करने के लिए (Satellite Town Concept) मास्टर प्लान 2025 में सैटेलाइट टाउन कंसेप्ट लाया गया. जिसमें 11 सैटलाइट टाउन और 4 ग्रोथ सेंटर के लिए छोटे शहर और कस्बे चिह्नित किए गए. प्लानिंग थी कि रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन और शॉपिंग मार्केट जैसी सुविधाओं के लिए स्थानीय लोगों को राजधानी तक ना आना पड़े. लेकिन 11 साल में भी ये प्लानिंग कागजों से बाहर नहीं निकल पाई. अब इस प्रोजेक्ट को मास्टर प्लान 2041 से जोड़कर इसे पूरा करने की मियाद को बढ़ाने की तैयारी की जा रही है.
राजधानी के आसपास बसे कस्बों को सैटेलाइट टाउन बनाने की योजना (Master Plan for Satellite Town) बनाकर राज्य सरकार और प्रशासन इसे इंप्लीमेंट करना भूल गया. 2011 में मास्टर प्लान 2025 लागू किया था, जिसमें जयपुर जिले के 11 कस्बों को सैटेलाइट टाउन और 4 गांव को ग्रोथ सेंटर के रूप में विकसित करने की योजना थी.
पूर्व चीफ टाउन प्लानर ने क्या कहा... मास्टर प्लान के अनुसार ये बनने थे सैटेलाइट टाउन :
- अचरोल
- भानपुर कलां
- जमवारामगढ़
- बस्सी
- कानोता
- वाटिका
- बगरू
- कालवाड़
- कूकस
- जाहोता
- चौमूं
मास्टर प्लान के अनुसार ये बनने थे ग्रोथ सेंटर :
- बगवाड़ा
- चौंप
- पचार
- शिवदासपुरा व चंदलाई
हालांकि, 11 साल बाद भी इन कस्बों को सैटेलाइट टाउन और ग्रोथ सेंटर के रूप में विकसित (JDA on Satellite Town) करने की दिशा कोई पहल नहीं की गई. जेडीए ने अपना क्षेत्र बढ़ाते हुए इन गांव और कस्बों को अपने क्षेत्र में तो ले लिया. लेकिन यहां संसाधन और विकास के पथ पर एक कदम नहीं बढ़ाया और न ही यहां से मदर सिटी (Main City) जयपुर तक पहुंचने के लिए ट्रांसपोर्टेशन के विशेष प्रयास किए गए.
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इस संबंध में पूर्व चीफ टाउन प्लानर और विशेषज्ञ एचएस संचेती ने बताया कि सैटेलाइट टाउन विकसित करने के पीछे उद्देश्य राजधानी जयपुर से दबाव कम करना था. सैटेलाइट टाउन पूरी तरह से विकसित हो जाएं और उनकी जयपुर से कनेक्टिविटी बेहतर हो जाए तो लोग मदर सिटी में रहने के बजाय यहां अपना काम करने के बाद होमटाउन लौट सकेंगे. प्लानिंग है कि इन सैटेलाइट कस्बों में रहने की सुविधा जैसे अच्छी सड़क, अच्छे पार्क, शॉपिंग सेंटर्स, मॉल, स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराई जाए. साथ ही इनकी जयपुर से कनेक्टिविटी बड़ा मुद्दा है. लोग इन टाउन से अपने वाहन से जयपुर आने के बजाए, मेट्रो या मोनो रेल से इन कस्बों को जोड़ा जाए, ताकि जयपुर से कनेक्टिविटी बेहतर हो और शहर में यातायात का दबाव भी ना पड़े.
जेडीए ने मास्टर प्लान 2025 को वर्ष 2011 में पेश करते समय इसके वॉल्यूम-3 में इन सभी कस्बों और गांवों के संसाधन, स्थिति, बिजली, पानी, परिवहन, वर्तमान भू-उपयोग का विस्तृत वर्णन करते हुए, इनके लिए भविष्य में भू-उपयोग, परिवहन, पर्यावरण और दूसरे मापदंडों के लिए नीति बनाई थी. लेकिन 11 साल में इस पर काम (Infrastructure Development Scheme for Satellite Towns) नहीं हुआ और अब 2025 को महज 3 वर्ष बचे हैं. ऐसे में ये प्रोजेक्ट अब मास्टर प्लान 2041 के ही भरोसे है.