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Child labour in Rajasthan: बिहार में गरीबी और बेरोजगारी के चलते राजस्थान में बाल श्रम के लिए बच्चों को भेजने को मजबूर हैं परिजन - संगीता बेनीवाल

राजस्थान बाल श्रम रोकने के लिए तमाम प्रयासों के बावजूद इसके आंकड़े कम नहीं हो रहे हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने कहा कि बिहार में गरीबी और बेरोजगारी ज्यादा (Sangeeta Beniwal said unemployment in Bihar) है . ऐसे में परिजन बच्चों को बाल श्रम के लिए भेजने को मजबूर हैं.

State Child Protection Commission Chairperson
बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल

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Published : May 25, 2022, 9:32 PM IST

जयपुर. राजस्थान में बाल श्रम (Child labour in Rajasthan ) रोकने के लिए किए जा रहे प्रयासों के बावजूद यह आंकड़ा कम नही हो रहा है . बाल श्रम और बाल तस्करी को रोकने के लिए राजस्थान राज्य बाल संरक्षण आयोग ( Rajasthan state Commission for Protection of Child Right ) ने पहल करते हुए उन राज्यों का दौरा शुरू कर दिया है. जहां से सबसे ज्यादा बच्चों को राजस्थान लाया जा रहा है . इसी कड़ी में बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ( Sangeeta Beniwal ) ने 4 दिन तक बिहार का दौरा किया और वहां की वस्तु स्थिति के बारे में जानकारी जुटाई. बिहार दौरे से वापस लौटी संगीता बेनीवाल ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि बिहार में गरीबी और बेरोजगारी ज्यादा (Sangeeta Beniwal said unemployment in Bihar) है. ऐसे में परिजन बच्चों को बाल श्रम के लिए भेजने को मजबूर हैं.

बाल आयोग करेगा एमओयूःराजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग अध्यक्ष संगीता बेनीवाल की अध्यक्षता में बुधवार को आयोग की फुल कमिशन की बैठक हुई . बैठक में विभिन्न बाल संरक्षण के विषयों को लेकर चर्चा हुई . बाल आयोग अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने बताया कि उनकी 4 दिवसीय बिहार दौरे के दौरान कई महत्वपूर्ण निर्णय हुए . बाल श्रम और बाल तस्करी में लिप्त बच्चों और उनके पुनर्वास को लेकर अहम चर्चा की गई . बाल श्रम तस्करी और पुनर्वास को लेकर राजस्थान और बिहार बाल आयोग एक एमओयू ( Memorandum of Understanding ) साइन करने जा रहा है. जिससे कि दोनों राज्य मिलकर बाल श्रम के इस अभिशाप को खत्म कर सकें.

बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल

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सामाजिक और आर्थिक बड़ा कारणः संगीता बेनीवाल ने बताया कि अकसर देखा गया है कि सामाजिक और आर्थिक समस्या के चलते बिहार से बाल श्रमिकों का राजस्थान में आगमन होता है. आंकड़ों के विश्लेषण से सामने आया कि राजस्थान में अन्य राज्यों से मुक्त करवाए गए बच्चों में अधिकांश बिहार राज्य के निवासी हैं. संगीता बेनीवाल ने कहा कि वह बिहार के उस गांव तक पहुंची जहां से सबसे ज्यादा बाल श्रम के लिए बच्चों को राजस्थान लाया जाता है. उन्होंने कहा कि गांव और उसके आसपास के क्षेत्र की स्थिति को देखने पर यह समझ में आता है कि बिहार में बेरोजगारी और गरीबी एक बड़ा कारण है. जिसकी वजह से बच्चों को बाल श्रम के लिए भेजा जा रहा है.

चाइल्ड लेबर ट्रैकिंग सिस्टमः संगीता बेनीवाल ने कहा कि आयोग की तरफ से बिहार की बाल समितियों को निर्देश दिए गए कि वह यह सुनिश्चित करें कि बच्चे बाल श्रम के लिए राजस्थान ना भेजे जाएं . साथ ही उन बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर भी बिहार सरकार के स्तर पर काम किया जाए. जिससे इन बच्चों को बाल श्रम जैसी कालकोठरी में नहीं ढकेला जाए. साथ ही नोडल ऑफिस और नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाएगा, जिससे सीधा संपर्क किया जा सके. बिहार आयोग की ओर से चाइल्ड लेबर ट्रैकिंग सिस्टम से राजस्थान को भी जोड़ने की बात कही गई. जिससे सही समय पर जानकारी मिल सके.

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रेस्क्यू किये बच्चे वापस आना बड़ी चुनोतीः संगीता बेनीवाल ने कहा कि रेस्क्यू किए हुए बच्चे फिर से वापस बाल श्रम में लिप्त पाए जाते हैं. यह एक बड़ी चुनौती है. राज्य सरकार के अलग-अलग माध्यमों से बच्चों को चाइल्ड लेबर से रेस्क्यू किया जाता है. लेकिन फिर कुछ दिनों बाद वही बच्चे बाल श्रम में लिप्त पाए जाते हैं. रेस्क्यू किए हुए बच्चे बिहार से वापस राजस्थान नहीं आए. इसको लेकर बिहार बाल संरक्षण आयोग और वहां की चाइल्ड लेबर कमिशन को कहा गया है कि वह इन बच्चों को चिह्नित करके नियमित ट्रेक करें. साथ इन बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के पुख्ता इंतजाम करें.

समन्वय में कमीःसंगीता बेनीवाल ने यह भी माना कि बिहार सरकार के स्तर पर समन्वय की कमी हमेशा रही है. राज्य सरकार की ओर से बाल श्रम से बच्चों को रेस्क्यू कर लिया जाता है. लेकिन जब उन बच्चों को बिहारलौट आने की बात आती है तो वहां की सरकार या जो बाल श्रम पर काम करने वाली संस्था है. वह इसे गंभीरता से नहीं लेती है. कई बार कई महीनों तक बच्चों को राज्य सरकार के स्तर पर ही यहां आश्रय गृह में रखा जाता है. बेनीवाल ने कहा कि इस तरह से बच्चों को समय पर बिहार सरकार की ओर से नहीं भेजने से बच्चों के शिक्षा और स्वास्थ्य के अधिकारों पर हनन हो रहा है.

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