जयपुर.प्रदेश में आरक्षण की आग फिर भड़कने लगी है. इस बार ओबीसी के 21 प्रतिशत आरक्षण में सैनी, माली, मौर्य, कुशवाहा और सूर्यवंशी समाज अलग से 12 प्रतिशत आरक्षण की मांग पर भरतपुर में सड़कों पर आन्दोलनरत है. ये मांग तभी पूरी हो सकती है जब सरकार इन समाजों की आबादी का सर्वे कराए या जातिगत आधारित जनगणना हो. पूर्व में जस्टिस इसरानी आयोग ने नवंबर 2012 में विशेष पिछड़ा वर्ग आरक्षण को लेकर (Caste Based Census in India) जो रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी, उसमें भी इन समाजों की आबादी से जुड़े आंकड़े नहीं थे और उसे सार्वजनिक भी नहीं किया गया.
92 समाज ले रहे हैं 21 प्रतिशत आरक्षण का लाभ, ये समाज होंगे नाराज : वर्तमान में प्रदेश में ओबीसी में 92 जातियां शामिल है जो 21 प्रतिशत आरक्षण का लाभ ले रही हैं. अब तक यही बहस चलती आई है कि इसमें सबसे ज्यादा आरक्षण का लाभ कौन सी जाति ले रही है. यह बहस होना लाजमी भी है, क्योंकि पूर्व में गुर्जर सहित पांच समाज जो ओबीसी में आते थे, उन्होंने भी अलग से आरक्षण के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और सरकार ने 5 प्रतिशत एमबीसी आरक्षण दिया. हालांकि, यह आरक्षण दिए जाने से प्रदेश में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक हो गई और इसे कोर्ट में चुनोती भी दी गई जो अब भी विचाराधीन है. अब यदि माली, सैनी, मौर्य, कुशवाहा और सूर्यवंशी समाज जो ओबीसी में ही आते हैं, उन्हें 12 प्रतिशत आरक्षण दे दिया गया तो ओबीसी आरक्षण कोटे में शामिल जाट सहित अन्य समाज इससे नाराज हो सकते हैं.
समता आंदोलन समिति ने कहा- आंदोलन सरकार द्वारा प्रायोजित, रोहणी आयोग की सिफारिश हो लागू : भरतपुर में चल रहे माली और सैनी समाज के इस आंदोलन को समता आंदोलन समिति अध्यक्ष पाराशर नारायण शर्मा ने सरकार द्वारा प्रायोजित आंदोलन बताया. उन्होंने कहा कि 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा से अधिक आरक्षण पूरी तरह गैरकानूनी और संविधान के खिलाफ है. उनके अनुसार पूर्व में रोहणी आयोग ने ओबीसी आरक्षण के वर्गीकरण की सिफारिश की थी, लेकिन ना केंद्र ने उस पर अमल किया और ना ही राज्य सरकारें इस पर अमल कर रही है. उनके अनुसार आज ओबीसी में शामिल कुछ जातियां ऐसी हैं जो आरक्षण का अधिकतर लाभ उठा रही हैं. ऐसे में सरकार ओबीसी आरक्षण का वर्गीकरण करे, लेकिन आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक ना करे, क्योंकि पूर्व में भी ऐसा हुआ और उसके खिलाफ न्यायालय में वाद चल रहे हैं.