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कृषि कानूनों के विरोध में सामने आए पायलट, कहा- सरकार ने किसानों के हितों पर किया प्रहार

पूर्व राजस्थान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने कृषि कानूनों का विरोध करते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि इन कानूनों के माध्यम से सरकार ने किसानों के हितों पर घातक प्रहार किया है. पायलट ने कहा कि इन कानूनों को लेकर केंद्र सरकार किसानों को कैसे समझाएगी, जबकि भाजपा के घटक दल ही इस कानून का विरोध कर रहे हैं और एनडीए से अलग हो रहे हैं.

statement of Sachin Pilot, opposition to agricultural laws
कृषि कानूनों के विरोध में सामने आए पायलट

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Published : Sep 28, 2020, 5:30 PM IST

जयपुर.कृषि कानूनों के विरोध में सोमवार को प्रदेश के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट भी सामने आए. उन्होंने कहा कि जो कानून सदन के अंदर पारित किए गए थे, राष्ट्रपति ने उन पर हस्ताक्षर कर दिए हैं और अब वह कानून बन गए हैं, लेकिन हकीकत यह है कि इन कानूनों के माध्यम से सरकार ने किसानों के हितों पर एक घातक प्रहार किया है.

कृषि कानूनों के विरोध में सामने आए पायलट

उन्होंने कहा कि जिस प्रक्रिया के माध्यम से राज्यसभा में इस बिल को पास कराया गया. हर किसी ने देखा कि केंद्र सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं था. उसके बावजूद मत विभाजन स्वीकार नहीं किया गया और जबरदस्ती यह बिल पारित करवाया गया. कांग्रेस पार्टी समेत पूरे विपक्ष की यह मांग थी कि इस बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेज दिया जाए, लेकिन केंद्र सरकार ने इस मांग को रिजेक्ट कर इन बिलों को जबरदस्ती अपने हित साधते हुए कोरोना संकटकाल में पास करवाया.

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उन्होंने कहा कि एक तरफ तो भाजपा बोल रही है कि किसानों की आमदनी दोगुनी करनी है और दूसरी ओर 86 प्रतिशत व किसान जिसके पास 2 एकड़ की खेती है वह कैसे अपनी फसल को बाहर ले जाकर बेच सकता है. उन्होंने कहा कि इस कानून से देश की अर्थव्यवस्था और किसान नष्ट हो जाएगा. पायलट ने कहा कि इन कानूनों को लेकर केंद्र सरकार किसानों को कैसे समझाएंगे, जब कि भाजपा के घटक दल ही इस कानून का विरोध कर रहे हैं और एनडीए से अलग हो रहे हैं.

उन्होंने कहा कि जब हम राजस्थान में भी इस कानून का विरोध कर रहे हैं, तो इसे लागू कैसे किया जा सकता है. वैसे भी कृषि राज्य का विषय है. किसी भी राज्य सरकार से केंद्र सरकार ने बात नहीं की और मनमाने तरीके से एकतरफा ऑर्डिनेंस लाकर पास करवाया गया. जबकि ऑर्डिनेंस इमरजेंसी में आते हैं. अगर सरकार को यह बिल पास ही करना होता तो फिर पहले किसानों से, राज्य सरकार से, किसान संगठनों से बात होती और यही परिपक्व लोकतंत्र की परिभाषा है कि बातचीत के जरिए ही लोकतंत्र में काम होता है.

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