जयपुर.लाख प्रयासों और दावों के बावजूद राजस्थान में सड़क दुर्घटना (road accident in rajasthan) के आंकड़े कम नहीं हो रहे हैं. बल्कि साल दर साल ये आंकड़े बढ़ रहे हैं. राजस्थान में सड़क सुरक्षा (road safety in rajasthan) बड़ी चुनौती है. आंकड़े बताते हैं कि कोरोना (corona) से भी ज्यादा खतरनाक सड़क दुर्घटनाएं (road accident)हैं.
कभी लापरवाही, कभी नशा तो कभी तेज स्पीड सड़क दुर्घटना का कारण बन जाती है. देश में औसतन 400 लोग हर दिन सड़क हादसे में जान गंवा देते हैं. राजस्थान में यह आंकड़ा 30 व्यक्ति प्रतिदिन है. सड़क हादसों में जान गंवाने वालों को याद करते हुए 40 से ज्यादा देश हर साल नवंबर के तीसरे रविवार को विश्व स्मरण दिवस (World Remembrance Day) मनाते हैं. इस दिन वर्षभर सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए लोगों को लेकर चर्चा होती है. तमाम चर्चाओं और प्रयासों के बावजूद सड़क दुर्घटओं में मरने वालों की संख्या कम नहीं हो रही है.
पिछले कई वर्षों से सड़क दुर्घटनाओं को लेकर काम कर रही मृदुला भसीन कहती हैं कि यह चिंता की बात है कि सरकार के लाख दावों और योजनाओं के बावजूद आंकड़े कम नहीं हो रहे है. हालातों की गंभीरता का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि जितने लोगों की कोरोना काल में मौत नहीं हुई, उससे ज्यादा लोगों की इस दौरान सड़क दुर्घटना में हुई है, जबकि उस वक्त तो ज्यादातर लोग घरों में ही थे. भसीन कहती (mridula bhasin) हैं कि वर्ष 2019 के संशोधित मोटर व्हीकल एक्ट (amended motor vehicle act ) को लागू कर सख्ती से उसकी पालना कराई जाए तो ये मामले काबू में आ सकते हैं.
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क्या कहता है इतिहास
सड़क यातायात पीड़ितों के लिए विश्व दिवस की शुरुआत 1993 में रोड पीस (road piece) की ओर से गई थी. यह दिन यूरोपियन फेडरेशन ऑफ रोड ट्रैफिक विक्टिम (European Federation of Road Traffic Victims) यानी एफईवीआर और इससे जुड़े संगठनों सहित कई गैर सरकारी संगठनों की ओर से मनाया जाता है. 26 अक्टूबर 2005 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने एक प्रस्ताव 60/5 पारित किया और प्रत्येक वर्ष नवंबर में प्रत्येक तीसरे रविवार को सड़क यातायात पीड़ितों के लिए विश्व दिवस के स्मरण दिवस के रूप में तय किया. डब्ल्यूएचओ और संयुक्त राष्ट्र सड़क सुरक्षा सहयोग दुनिया भर की सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों को इस दिवस को मनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.
राजस्थान में सड़क हादसे और मौतें
वर्ष 2020 में 9250 लोगों ने सड़क दुर्घटना में जान गंवाई जबकि इस वर्ष कोरोना काल और लॉक डाउन की वजह से करीब चार महीने तक सड़कों पर वाहन नहीं चले. वहीं वर्ष 2021 में सड़क दुर्घटना में अक्टूबर तक 8092 लोगों की मौत हो चुकी है. जबकि इस वर्ष भी कोरोना काल और लॉक डाउन की वजह से करीब ढाई महीने तक सड़कों पर वाहन नहीं चले थे.
राजस्थान में सड़क हादसे और मौतें अध्ययन पर नजर डालें तो प्रदेश में खराब रोड इंजीनियरिंग सड़क हादसों का बड़ा कारण बनकर सामने आया है. मुस्कान फाउंडेशन की डायरेक्टर प्रोजेक्ट्स नेहा खुल्लर बताती हैं कि ड्राइविंग में लापरवाही से हुए सड़क हादसे आमतौर पर उजागर हो जाते हैं लेकिन खराब रोड इंजीनियरिंग के कारण हुए हादसे पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज नहीं होने से सामने नहीं आ पाते. नेहा कहती हैं कि राजस्थान में 10 हजार से ज्यादा किलोमीटर लम्बे राष्ट्रीय राजमार्ग और 15 हजार से ज्यादा किलोमीटर राज्य राजमार्ग सहित हजारों किलोमीटर से अधिक लम्बी सड़कें हैं. इन सड़कों पर 825 के करीब ब्लैक स्पॉट चिन्हित हैं, जो हर वर्ष बड़ी संख्या में दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं.
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आंकड़ों को देखें तो सड़क दुर्घटना ग्रामीण क्षेत्र में ज्यादा है. रिपोर्ट के मुताबिक 77 फ़ीसदी ग्रामीण क्षेत्र में सड़क दुर्घटना से मौतें हुई हैं जबकि 23 शहरी इलाकों में. इसमें भी देखें तो 26 फीसदी मौतें बिना हेलमेट या गुणवत्तापूर्ण हेलमेट नहीं पहनने से हुई. जबकि 27 फीसदी मौतें सीट बेल्ट नहीं पहने से हुई हैं. खास बात यह है कि 18 से 45 वर्ष के लोगों की मृत्यु का आंकड़ा 84 फीसदी है. नेहा कहती हैं कि इन आंकड़ों से साफ़ समझ में आता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क और साधन तो पहुंच गए. लेकिन जागरूकता नहीं पहुंच सकी है. आज भी ग्रामीण क्षेत्रों एक बाइक पर तीन से चार लोग बिना हेलमेट के सफर करते हैं. यहां पर कानून की पालना नहीं होती हैं.
कुल मिलाकर यातायात नियमों और कानूनों का इम्प्लीमेंटेशन सही से नहीं हो रहा है. जिसकी वजह से सड़क दुर्घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. हालात ये हैं कि पिछले दिनों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी सड़क दुर्घटना के आंकड़ों पर चिंता जाहिर करते हुए इसे कम करने के लिए किए जा रहे प्रयासों पर सख्ती से काम करने के निर्देश दिए. इतना ही नहीं, सीएम गहलोत ने सड़क दुर्घटना में घायलों के उपचार में कोताही बरते जाने अस्पतालों की मान्यता रद्द करने के निर्देश भी दिए.
राजस्थान में सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़े में कोई कमी नहीं आ रही है. पिछले वर्ष 10 हजार से ज्यादा लोगों की जान सड़क दुर्घटनाओं में गई थी, हालात ये हैं कोरोना से जितनी मौतें नहीं हुई उससे ज्यादा सड़क दुर्घटना में हर साल हो जाती हैं. ऐसे में जरूरी है कि सरकार हो समाजिक संगठन सड़क सुरक्षा के दावे करने की बजाए धरातल पर काम करे और नया मोटर व्हीकल संशोधन कानून पर सख्ती से काम करे.