जयपुर:शिक्षा, सपनों को सच करने वाला वो अलादीन का चिराग है, जिसे सीखने का अधिकार अमीर-गरीब हर वर्ग के बच्चे को है. इसी अधिकार से उन्हें रूबरू कराता है शिक्षा का मंदिर. राजधानी के प्रताप नगर क्षेत्र में एक निजी विद्यालय परिसर में संचालित पाठशाला में कक्षा 7वीं से लेकर 12वीं तक छात्र-छात्राओं को निशुल्क शिक्षा (Free Education To Needy) दी जाती है. हर क्लास में 15 बच्चों का बैच बनाया गया है. यहां पढ़ने वाले छात्र वही हैं, जो महंगे कोचिंग सेंटर दाखिला नहीं ले सकते लेकिन आगे उनमें ललक है.
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अब राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा, राजा वही बनेगा जो हकदार होगा. बिहार के एक शिक्षक आनंद कुमार की बायोपिक फिल्म सुपर 30 का ये डायलॉग अब रियल लाइफ में भी लागू होता है. कारण साफ है, अब हर घर में शिक्षा को लेकर अलख जगी है. जिन छात्रों का परिवार आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है. जो छात्र बड़ी रकम अदा कर महंगे कोचिंग सेंटर में नहीं पढ़ सकते. उन्हें कई सामाजिक संस्था (NGO Helping In Education)और शिक्षक निशुल्क शिक्षा उपलब्ध करा उनके सपनों को उड़ान (Empowerment Through Education) दे रहे हैं.
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देश के विभिन्न राज्यों में साक्षरता दर बढ़ाने को लेकर अभियान (Literacy Campaign) चल रहे हैं. राजस्थान में इस अभियान को मूर्त रूप देने में राज्य सरकार के अलावा कई सामाजिक संस्था (NGO Helping In Education) और शिक्षण संस्थान जुटे हुए हैं. उन्हीं में से एक है स्माइल संस्था (Smile Sanstha). जिस से जुड़ी रिटायर्ड शिक्षिका डॉ लतीका 2003 से आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों के सपनों को नई उड़ान देने में जुटी हुई हैं. उन्होंने बताया कि मुफ्त में रोटी-कपड़ा उपलब्ध कराने से किसी का भला नहीं होता. असली सशक्तिकरण शिक्षा (Empowerment Through Education) से ही आएगा. जयपुर के ही 1 गांव किशनपुरा से इसकी पहल की गई थी, और आज राजधानी में ये केंद्र संचालित किया जा रहा है. जिसमें छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए गाइड भी किया जा रहा है. और यदि कोई छात्र श्रेष्ठता साबित करता है, तो हायर स्टडीज के लिए आवश्यकता पड़ने पर प्राइवेट कोचिंग की व्यवस्था की भी जिम्मेदारी उठाने को तैयार हैं.
कोरोना काल में छोटे बच्चों का स्कूल से नाता ही टूट गया है. उनकी ग्रोथ भी रुक सी गई है. जिसे ध्यान में रखते हुए इसी सेंटर के नजदीक छोटे बच्चों के लिए प्राइमरी एजुकेशन की व्यवस्था की गई है. यहां सेंटर में पढ़ने वाली छात्रा की बड़ी बहन लक्षिता दूसरे शिक्षकों से प्रेरणा लेकर अब छोटे बच्चों को पढ़ा रही है. वहीं दूसरों के घरों में साफ-सफाई और खाना बना कर घर का गुजारा करने वाली पुष्पा ने बताया कि उनके बच्चे यहां 3 साल से पढ़ रहे हैं. उनके पति मजदूर हैं, और प्राइवेट स्कूल, कोचिंग की फीस नहीं दे सकते. लेकिन यहां बच्चे निशुल्क पढ़ रहे हैं.
शिक्षा के इस मंदिर में तालीम ले रहे छात्रों में कोई आईएएस अधिकारी बनना चाहता है तो कोई शिक्षक. यहां पढ़ने वाली होनहार छात्राएं गौरी, शिवानी और संजीता ने बताया कि परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं है. ऐसे में वो महंगी कोचिंग सेंटर में दाखिला नहीं ले सकते. लेकिन यहां परिवार जैसे माहौल में पढ़कर उनके स्किल्स डेवलप हो रहे हैं और उनमें नई ऊर्जा का संचार भी हो रहा है.
इस पहल से कई और लोग जुड़े हैं. बतौर गेस्ट फेक्लिटी. ऐसी ही हैं डॉ मधु गुप्ता. जो यहां आकर छात्रों को मार्गदर्शन प्रदान करती है. कहता हैं- ये बच्चे देश का भविष्य हैं और शिक्षा एक इन्वेस्टमेंट (Its An Investment) है. चूंकि कई छात्रों के परिवार आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है. लेकिन उन्हें भी पढ़ने का अधिकार है, ऐसे छात्रों के सपनों को पूरा करने की जिम्मेदारी उनकी (डॉ गुप्ता) भी बनती है.
वर्ष 2011 जनसंख्या के अनुसार राजस्थान साक्षरता दर (Rajasthan Literacy Rate) 66.1 है. पुरूषों की 79.2 और महिलाओं की 52.1 साक्षरता दर है. हालांकि, एक दशक बीत जाने के बाद परिस्थितियां पहले से काफी बदल गई हैं. शिक्षा के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है. बच्चे अपने उज्ज्वल भविष्य को लेकर चिंतन करने लगे हैं. आवश्यकता है तो बस उचित मार्गदर्शन की.