जयपुर.पिछले 3 महीने में ही नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क में बाघ शावक रुद्र, बब्बर शेर सिद्धार्थ और सफेद बाघ राजा की मौत हो गई. इनकी मौत का कारण गुर्दे और लीवर में संक्रमण होना पाया गया. जो कि वन्यजीव चिकित्सकों ने लेप्टोस्पायरोसिस बीमारी से होने की पुष्टि की. इसका कारण चूहे, नेवले और गिलहरी है.
बता दें कि बाघ- शेर के भोजन में इनके मल मूत्र के संपर्क में आने का दावा किया गया. क्योंकि इनकी तादाद जैविक उद्यान में देखी जा रही है. यहां बने पिंजरो में इन की आवाजाही भी खूब होती है. क्योंकि इनके पिंजरे के गेट मोटे लोहे के सरियों के बने होने से इनमें जगह होने से आराम से यह नेवले, गिलहरी और चूहे आवाजाही करते हैं. इनके बावजूद भी इनकी रोकथाम को लेकर नाहरगढ़ प्रशासन ने कोई ठोस इंतजाम नहीं किए. वन्यजीव विशेषज्ञ का कहना है कि यहां रेट प्रूफिंग प्लेट्स लगनी चाहिए, जिससे इनकी पिंजरे में आवाजाही नहीं हो. जब तक इसे नहीं लगाया जाएगा इन्हें रोकना मुश्किल है.
बाघ, बघेरे, शेर जब दूषित भोजन खा लेते हैं, तो अचानक उनकी भूख कम हो जाती है. कुछ दिनों में वह खाना पीना छोड़ देते हैं और देखते ही देखते ही उनकी मौत हो जाती है. इसमें उनके किडनी में संक्रमण होना पाया गया है. तमाम कोशिशों के बाद भी जान बचाना मुश्किल रहता है. नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क के तीन एंक्लोजरस में बाघ, शेर और बघेरा प्रवास कर रहे हैं. जिनमें 6 बघेरे, 5 शेर और 3 बाघ है.
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वहीं वन विभाग के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक अरिंदम तोमर का कहना है कि जैविक उद्यान में साफ-सफाई रखने की आवश्यकता है वहीं वन विभाग में सीमित संसाधन और स्टाफ व डॉक्टर्स की कमी के चलते वन विभाग की ओर से भी पूर्ण रूप से वन्यजीवों की देखभाल की जा रही है. जो प्राकृतिक जीव जंतु है इनसे पूर्णतया निजात पाना तो इनके संरक्षण के खिलाफ है. जैविक उद्यान भी इसलिए बनाए जाते हैं कि नेचर को नजदीक से देख सकें. वन विभाग के पास जितने संसाधन हैं उनके साथ इनकी सुरक्षा के प्रयास किए जा रहे हैं.