जयपुर. भारत की सदियों पुरानी कठपुतली कला आज अपने अस्तित्व को तरस रही है. कठपुतली कलाकारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया टॉय फेयर के दौरान राजस्थान के कठपुतली कलाकारों से बात की तो हमने जाने धरातल पर कठपुतली कलाकारों के हालात...
पहले जहां सरकार की ओर से इन कलाकारों को बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, नशा मुक्ति, पल्स पोलियो जैसे अभियान के प्रचार-प्रसार का जिम्मा मिलता था, वहीं अब सरकारें भी इन कलाओं से मुंह मोड़ती नजर आती हैं. इन कलाकारों का कहना है कि डिजिटल क्रांति ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. अब सरकारें भी सोशल मीडिया, फ्लैक्स-होर्डिंग्स और अन्य साधनों से योजनाओं का प्रचार कर लेती हैं. कठपुतली कलाकार पेट पर कांठ बांधकर राह ताकते रह जाते हैं. रोजी-रोटी का ये पड़ाव भी अब आखिरी दौर में है. कलाकार अपने बच्चों को कठपुतलियों के साये से दूर कर रहे हैं.
जयपुर में कठपुतलियां प्रमुख हस्तकलात्मक उत्पाद है. जहां बड़े पैमाने पर कठपुतलियों का निर्माण किया जाता है. कठपुतली कारीगर इन्हें लकड़ी और कपड़े से तैयार करते हैं. फिर इन्हें ठेठ राजस्थानी परिधान से सजाया जाता है. उसके बाद कलाकार कठपुतलियों को डोरियों से नचाकर लोगों का मनोरंजन करत हैं. यह यहां की सदियों पुरानी कला है.
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