जयपुर. प्रदेश में सत्ता के साथ-साथ पाठ्यक्रम भी बदलता रहता है. इसका ताजा उदाहरण है, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की 10वीं और 12वीं की वो किताबें जिनमें मेवाड़ राजवंश और हल्दीघाटी युद्ध के बारे में लिखा गया है. इन किताबों में दिए गए तथ्यों में आपस में ही विरोधाभास है. वहीं 10वीं की किताब राजस्थान का इतिहास और संस्कृति में तो उदय सिंह को हत्यारा और हल्दीघाटी में नवविवाहिताओं के लड़ने का जिक्र किया गया है. जिस पर फिलहाल प्रदेश में विवाद गहराता जा रहा है.
पहले भी विवाद हुआ था शुरू
प्रदेश में पहले एक लंबे अरसे तक अकबर महान और महाराणा प्रताप महान पर विवाद चलता रहा. ये विवाद माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की किताबों से शुरू हुआ था. वहीं, अब इन्हीं किताबों ने एक बार फिर विवाद को जन्म दिया है. 10वीं और 12वीं की किताबों में मेवाड़ राजवंश और हल्दीघाटी से जुड़े जिन तथ्यों को पेश किया गया है, उसे लेकर प्रदेश की सियासत के दिग्गजों ने सवाल खड़े किए हैं. उन्हीं सवालों का जवाब खोजने के लिए ईटीवी भारत ने इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत से खास बातचीत की.
इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत से खास बातचीत इस दौरान देवेंद्र कुमार भगत ने सबसे पहले महाराणा प्रताप को प्रातः स्मरणीय बताते हुए कहा कि महाराणा प्रताप पूरे विश्व में शौर्य के उदाहरण हैं. उन्होंने साम्राज्यवाद के खिलाफ युद्ध लड़ा. प्रदेश में शौर्य, वीरता और महानता का परिचायक अगर कोई है, तो वो महाराणा प्रताप है.
हालांकि पिछले साल माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की दसवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान किताब में हल्दीघाटी युद्ध में प्रताप की हार बताते हुए, कारणों का उल्लेख किया गया था. कारण में प्रताप में धैर्य, संयम और योजना का अभाव बताया गया. इसे लेकर देवेंद्र कुमार भगत ने कहा कि हल्दीघाटी युद्ध का तो कोई नतीजा ही नहीं निकला था. इस युद्ध में ना तो राजा मानसिंह जीते, ना महाराणा प्रताप और उनके बारे में जितनी भी किताबें पढ़ी हैं, उसमें उनके धैर्य, संयम, योजना के अभाव या नेतृत्व में कमी जैसे व्यक्तित्व का कभी जिक्र नहीं हुआ और यदि नेतृत्व की कमी होती तो वो इतने साल अकबर से कैसे लड़े होते.
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वहीं, दसवीं कक्षा की राजस्थान का इतिहास और संस्कृति किताब में हल्दीघाटी के नामकरण को लेकर हल्दी चढ़ी नवविवाहिता पुरुष वेश में लड़कर मरने का संदर्भ दिया गया है. जिसे देवेंद्र कुमार भगत ने सरासर गलत बताया. उन्होंने कहा कि हल्दीघाटी एक जंगली इलाका है, वहां नवविवाहिता लड़ी, ये कपोल कल्पित बातें हैं. दिल्ली और राजस्थान विश्वविद्यालय के कई ऐसे बड़े नाम जिन्होंने इस क्षेत्र में काम किया है, उन्होंने भी ऐसा कोई वर्णन अपनी किताबों में नहीं किया.
दरअसल, हल्दीघाटी की मिट्टी का रंग लालिमा लिए हुए, हल्दिया रंग सा है. यही वजह है कि उस क्षेत्र को हल्दीघाटी नाम दिया गया. वहीं, इसी किताब में उदय सिंह की ओर से बनवीर की हत्या का भी जिक्र किया गया है. जिस पर देवेंद्र कुमार भगत ने कहा कि किसी के पिता की हत्या कर उनके साम्राज्य को हड़पने का काम तो बनवीर ने किया था. ऐसे में बनवीर हत्यारा हुआ, ना की महाराणा उदय सिंह.
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राजा मानसिंह ने किया था हल्दीघाटी युद्ध का नेतृत्व
साथ ही दसवीं बोर्ड की किताब में लिखा है कि हल्दीघाटी का युद्ध मुगलों ने जगन्नाथ कच्छावाह के नेतृत्व में लड़ा और 12वीं की किताब में मुगलों का नेतृत्व करने वाला राजा मानसिंह को बताया गया है. इन किताबों में दिए दो अलग-अलग तथ्यों को लेकर इतिहासकार देवेंद्र कुमार ने बताया कि देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के पुत्र आरएन प्रसाद की लिखी पुस्तक में भी ये स्पष्ट किया गया है कि राजा मानसिंह ने मुगलों की तरफ से हल्दीघाटी युद्ध का नेतृत्व किया था और खुद अकबर से इस युद्ध का नेतृत्व करने की डिमांड की थी. उन्होंने कहा कि जगन्नाथ कच्छावाह एक सेना नायक तो था, लेकिन उन्होंने हल्दीघाटी युद्ध का नेतृत्व नहीं किया था.
बहरहाल, प्रदेश में मेवाड़ राजवंश और हल्दीघाटी से जुड़े पाठ्यक्रम को लेकर विवाद छिड़ गया है. कारण साफ है कि एक ही बोर्ड की दो अलग-अलग किताबों में अलग-अलग वृतांत लिखा गया है और जो तथ्य और तर्क दिए गए हैं, वो भी विवादास्पद है. जिस पर फिलहाल प्रदेश की राजनीति भी गर्म हो चली है.