जयपुर. राजस्थान में साल 2020 में पायलट कैंप (pilot camp) ने गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत कर दी थी. कांग्रेस में राजनीतिक उठा-पटक का एक साल बीत चुका है. इस बार जुलाई शुरू होते ही राजस्थान में राजनीतिक हलचल फिर तेज हो गई है.
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपना सियासी क्वॉरेंटाइन 1 जुलाई को समाप्त कर दिया. सचिन पायलट भी 1 जुलाई को ही दिल्ली पहुंच गए. ऐसे में उम्मीद है कि पायलट कैंप की घर-वापसी पर जो वादे कांग्रेस आलाकमान ने किए थे, वे जुलाई में पूरे हो सकते हैं.
राजस्थान का राजनीतिक संकट और 'जुलाई' पायलट पहुंचे दिल्ली, प्रियंका से मुलाकात संभव
सचिन पायलट अक्सर शनिवार या रविवार को दिल्ली जाते हैं. इस बार वे गुरुवार को ही दिल्ली चले गए. गुरुवार को ही प्रदेश प्रभारी अजय माकन (Ajay Maken) से कांग्रेस के नाराज प्रत्याशियों के प्रतिनिधियों के तौर पर मनीष यादव और विधायक वीरेंद्र चौधरी ने मुलाकात की. अब संभावना है कि सचिन पायलट की मुलाकात जल्द ही प्रियंका गांधी से हो.
क्या जुलाई में दरार होगी खत्म पंजाब के मसले में भी प्रियंका गांधी की मुलाकात नवजोत सिंह सिद्धू से हो चुकी है. पंजाब का राजनीतिक संकट लगभग हल होने के कगार पर है. अब कांग्रेस आलाकमान के सामने राजस्थान के सियासी संकट को हल करने की चुनौती है. पायलट कैंप के विधायकों का तर्क है कि पंजाब के मसले पर कमेटी 10 दिन में सुनवाई कर सकती है तो राजस्थान के मामले में इतना समय क्यों लगा ? ऐसे में कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान टास्क पर काम शुरू कर दिया है. जुलाई महीने में यह साफ होने की संभावना है कि पायलट कैंप के हाथ क्या लगता है.
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गहलोत की इच्छा के बिना कोई फैसला संभव नहीं
कांग्रेस आलाकमान ने सचिन पायलट के मसले पर कमेटी बनाई, लेकिन यह साफ है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सहमति के बिना कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट को लेकर कोई फैसला नहीं करेगा. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अब भी पायलट कैंप पर भरोसा नहीं है. ऐसे में गहलोत पायलट कैंप के विधायकों को कैबिनेट में जगह नहीं देना चाहते. यही कारण है कि मंत्रिमंडल विस्तार लगातार टलता जा रहा है.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने दिक्कत यह भी है कि अगर वे पायलट कैंप के विधायकों को कैबिनेट में हिस्सेदारी देते हैं तो उन विधायकों का क्या होगा, जिन्हें पिछले साल जुलाई में सत्ता में हिस्सेदारी देने के वादे किए गए थे. एक मत यह भी है कि गहलोत कैंप के विधायक भी पायलट कैंप के विधायकों को सत्ता में हिस्सेदारी देने के पक्ष में नहीं हैं. इसके लिए वे कैबिनेट विस्तार के लिए इंतजार करने को भी तैयार हैं.
बड़े पदों पर हो सकती हैं राजनीतिक नियुक्तियां
राजस्थान में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर सुगबुगाहट है लेकिन राजनीतिक नियुक्तियां, खास तौर पर बड़े आयोग और बोर्ड में नियुक्तियां जल्द पूरी कर ली जाएंगी. दरअसल गहलोत सरकार में जिला स्तरीय और राज्य स्तरीय नियुक्तियां करने की कवायद शुरू हो चुकी है. लेकिन कई बड़े आयोग और बोर्ड में अभी पद खाली हैं. जिन पर जुलाई महीने में फैसला लिया जा सकता है.
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साल 2020 की जुलाई : महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम
11 जुलाई- राजस्थान के तीन निर्दलीय विधायकों सुरेश टांक, खुशवीर सिंह और ओमप्रकाश हुडला पर राजनीतिक खरीद-फरोख्त के आरोप लगे. एसीबी में राजद्रोह की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया. इसी केस में तत्कालीन उपमुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को भी नोटिस दिए गए. इससे नाराज होकर सचिन समेत पायलट कैंप के 19 विधायक और तीन निर्दलीय विधायक राजस्थान के बाहर चले गए.
12 जुलाई- मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सभी विधायकों को सीएम हाउस बुलाया. इस बैठक में कांग्रेस के 19 विधायक और 3 निर्दलीय विधायक नहीं पहुंचे. सचिन पायलट ने रात 8 बजे यह मैसेज डाल दिया कि अशोक गहलोत सरकार अल्पमत में है. ऐसे में वे विधायक दल की बैठक में शामिल नहीं होंगे.
13 जुलाई- कांग्रेस विधायक दल की बैठक हुई. इसमें सचिन पायलट समेत 22 विधायक शामिल नहीं हुए. विधायक दल की बैठक के दौरान ही कांग्रेस नेता राजीव अरोड़ा और धर्मेंद्र राठौड़ के घर ईडी और इनकम टैक्स की कार्रवाई हुई. इसके बाद गहलोत कैंप के विधायकों को मुख्यमंत्री आवास से सीधे जयपुर के दिल्ली रोड स्थित होटल फेयरमाउंट में ले जाकर बाड़ेबंदी कर दी गई. ये विधायक 33 दिन तक यानी 14 अगस्त तक बाड़ेबंदी में रहे.
14 जुलाई- कांग्रेस विधायक दल की बैठक फिर से हुई. जिसमें उपस्थित नहीं रहने और बगावती तेवर के चलते सचिन पायलट को उप-मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष पद से बर्खास्त कर दिया गया. कैबिनेट मंत्री विश्वेंद्र सिंह, रमेश मीणा को भी मंत्री पद गंवाना पड़ा. पायलट कैंप में मौजूद तत्कालीन यूथ कांग्रेस अध्यक्ष मुकेश भाकर और राजस्थान सेवा दल के अध्यक्ष राकेश पारीक को भी पदों से हटा दिया गया. इसी दिन गोविंद सिंह डोटासरा को पीसीसी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया. हेम सिंह शेखावत को सेवादल का और गणेश घोघरा को राजस्थान युवा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया.
15 जुलाई- तीन ऑडियो सामने आए जिन पर जमकर बवाल हुआ. इन ऑडियो में कथित तौर पर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, विधायक भंवरलाल शर्मा और विश्वेंद्र सिंह की बातचीत थी. आरोप लगे कि लेन-देन के जरिए सरकार गिराने की बातें की जा रही थी. उधर, मानेसर पहुंचे पायलट कैंप के विधायकों को नोटिस जारी कर 17 जुलाई को विधानसभा में तलब किया गया.
16 जुलाई- पायलट कैंप विधानसभा के नोटिस के खिलाफ कोर्ट चला गया. जिसके बाद स्पीकर ने पायलट कैंप के विधायकों को 18 जुलाई तक का समय दिया.
17 जुलाई- कथित ऑडियो सामने आने के बाद भंवरलाल शर्मा और विश्वेंद्र सिंह को कांग्रेस पार्टी से 6 साल के लिए निलंबित कर दिया गया.
18 जुलाई- ऑडियो के आधार पर महेश जोशी ने गजेंद्र सिंह शेखावत, विश्वेंद्र सिंह और भंवर लाल शर्मा के खिलाफ एसीबी में एफआईआर दर्ज करवा दी.
21 जुलाई- मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के भाई अग्रसेन गहलोत के घर ईडी की रेड हुई. विधायक कृष्णा पूनिया को सीबीआई ने पूछताछ के लिए बुलाया.
24 जुलाई- गहलोत सरकार ने विधानसभा सत्र बुलाने के लिए राज्यपाल कलराज मिश्र से आग्रह किया. लेकिन राज्यपाल ने आग्रह ठुकरा दिया. इसके बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, मंत्रिमंडल, कांग्रेस विधायक और गहलोत समर्थित निर्दलीय विधायकों ने राजभवन पहुंचकर नारेबाजी और धरना प्रदर्शन किया.
29 जुलाई- राज्यपाल ने मंत्रिमंडल का विधानसभा सत्र बुलाने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. 14 अगस्त को विधानसभा सत्र बुलाने की अनुमति दी.
31 जुलाई- गहलोत कैंप सभी विधायकों को जयपुर के फेयरमाउंट होटल से जैसलमेर के सूर्यागढ़ होटल में शिफ्ट कर दिया गया.
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इस तरह पिछले साल जुलाई के पूरे महीने में राजस्थान में सियासी संकट उफान पर रहा. 10 अगस्त को नाराज पायलट कैंप की दिल्ली में प्रियंका गांधी से मुलाकात हुई और सचिन समेत तमाम नाराज विधायकों की बात सुनने के लिए 3 सदस्यीय कमेटी बना दी गई.
घर वापसी हुई लेकिन संकट हल नहीं हुआ फिलहाल राजस्थान में राजनीतिक संकट अभी हल नहीं हुआ है. सवाल यही है कि पंजाब के मसले पर कांग्रेस आलाकमान ने तुरंत एक्शन लिया लेकिन राजस्थान के राजनीतिक संकट को हल करने की दिशा में खास रूचि नहीं ली. सवाल यह भी है कि राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के बीच पड़ी दरार क्या इस बार जुलाई में भर पाएगी. अगर नहीं तो क्या राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर पाएगी.