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राजस्थान हाईकोर्ट ने पूछा- अदालती आदेश के बावजूद क्यों नहीं किया गया पैरा मेडिकल डिप्लोमाधारियों का पंजीकरण

राजस्थान हाईकोर्ट ने अदालती आदेश के बावजूद निजी विश्वविद्यालय के पैरा मेडिकल डिप्लोमाधारियों का पैरा मेडिकल काउंसिल की ओर से पंजीकरण नहीं करने पर प्रमुख स्वास्थ्य सचिव, प्रमुख चिकित्सा शिक्षा सचिव और काउंसिल रजिस्ट्रार सहित अन्य को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

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Published : Jan 11, 2021, 7:45 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने अदालती आदेश के बावजूद निजी विश्वविद्यालय के पैरा मेडिकल डिप्लोमाधारियों का पैरा मेडिकल काउंसिल की ओर से पंजीकरण नहीं करने पर प्रमुख स्वास्थ्य सचिव, प्रमुख चिकित्सा शिक्षा सचिव और काउंसिल रजिस्ट्रार सहित अन्य को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. न्यायाधीश अशोक कुमार गौड़ ने यह आदेश मोहम्मद सरफराज व अन्य की अवमानना याचिका पर दिया.

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याचिका में अधिवक्ता लक्ष्मीकांत शर्मा ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ताओं ने जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी से दो साल का पैरा मेडिकल कोर्स किया है, लेकिन काउंसिल ने उनका पंजीकरण करने से इनकार कर दिया. इसके खिलाफ याचिका दायर करने पर हाईकोर्ट की एकलपीठ ने गत 23 अक्टूबर को आदेश जारी कर पन्द्रह दिन में याचिकाकर्ताओं का पंजीकरण करने को कहा. इसके बावजूद भी काउंसिल ने याचिकाकर्ताओं का पंजीकरण नहीं किया.

अवमानना याचिका में कहा गया कि पंजीकरण नहीं करने वाले दोषी अधिकारियों को अवमानना के लिए दंडित किया जाना चाहिए. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

वृद्ध महिला को जान का खतरा होने पर सुरक्षा देने के निर्देश दिए

राजस्थान हाईकोर्ट ने नागौर पुलिस अधीक्षक और जयपुर के संबंधित डीसीपी को निर्देश दिए हैं कि वह याचिकाकर्ता वृद्ध महिला के जीवन को खतरा होने की स्थिति में उसे उचित सुरक्षा मुहैया कराए. इसके साथ ही उसकी ओर से वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण एवं निर्वहन अधिनियम के तहत प्रार्थना पत्र पेश करने पर संबंधित अधिकारी पर प्रभावी कार्रवाई करें. न्यायाधीश एसके शर्मा ने यह आदेश गुलाब देवी की याचिका को निस्तारित करते हुए दिए.

याचिका में अधिवक्ता योगेश टेलर ने बताया कि कुछ लोगों ने वृद्धा को पेंशन दिलाने के नाम पर उसकी संपत्ति हड़प ली. जिसको लेकर नावां थाने में मामला दर्ज कराया गया. कई माह बीतने के बाद भी अब तक पुलिस ने प्रभावी कार्रवाई नहीं की है. जिसके जवाब में सरकारी वकील ने कहा कि मामले को सिविल प्रकृति का मानते हुए एफआर पेश की जा चुकी है. इस पर अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता चाहे तो एफआर के खिलाफ प्रोटेस्ट पिटीशन दायर कर सकती है. इसके साथ ही अदालत ने संबंधित पुलिस अधिकारियों को याचिकाकर्ता के जीवन को खतरा होने पर उचित सुरक्षा देने को कहा है.

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