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Rajasthan High Court : अधिक अंक के बावजूद नियुक्ति नहीं देने पर मांगा जवाब, एक पद खाली रखने के आदेश

राजस्थान हाईकोर्ट ने कृषि अन्वेषक भर्ती-2020 में दिव्यांग वर्ग में कट ऑफ से अधिक अंक आने के बावजूद अभ्यर्थी को नियुक्ति नहीं देने पर राज्य सरकार और राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

Rajasthan High Court
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Published : Jan 15, 2022, 5:18 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने कृषि अन्वेषक भर्ती-2020 में दिव्यांग वर्ग में कट ऑफ से अधिक अंक आने के बावजूद अभ्यर्थी को नियुक्ति नहीं देने पर राज्य सरकार और राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. इसके साथ ही अदालत ने एक पद याचिकाकर्ता के लिए रिक्त रखने को कहा है. जस्टिस महेन्द्र कुमार गोयल की एकलपीठ ने यह आदेश शोभित सिंघल की याचिका पर दिए.

याचिका में अधिवक्ता रामप्रताप सैनी ने अदालत को बताया कि कर्मचारी चयन बोर्ड ने 8 जनवरी 2020 को कृषि अन्वेषक के पदों पर भर्ती निकाली थी, जिसमें याचिकाकर्ता ने एनआई कैटेगरी के तहत दिव्यांग कोटे में आवेदन किया था. लिखित परीक्षा के बाद चयन बोर्ड ने दिव्यांग कोटे की कट ऑफ 40.70 तय की. वहीं, याचिकाकर्ता ने लिखित परीक्षा में 60.76 अंक प्राप्त किए. चयन बोर्ड की ओर से उसके दस्तावेजों का सत्यापन भी कर लिया गया.

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इसके बावजूद भी बोर्ड की ओर से जारी की गई अंतिम चयन सूची में याचिकाकर्ता को शामिल नहीं किया गया. बोर्ड की ओर से याचिकाकर्ता से कम अंक और मेरिट रखने वाले दूसरे दिव्यांग अभ्यर्थियों का अंतिम चयन कर उन्हें नियुक्ति दी जा रही है. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब करते हुए एक पद याचिकाकर्ता के लिए रिक्त रखने को कहा है.

निर्माण और राजस्व रिकॉर्ड की जानकारी पेश करने के आदेश

राजस्थान हाईकोर्ट ने सीकर के चेलासी गांव की विवादित जमीन पर दी गई यथा-स्थिति के बाद उस पर हुई निर्माण और भूमि के राजस्व रिकॉर्ड को लेकर जिला प्रशासन को जानकारी अदालत में पेश करने को कहा है. जस्टिस सुदेश बंसल ने यह आदेश मोहन राम की अवमानना याचिका पर दिए.

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता धर्मवीर ठोलिया और अधिवक्ता हिमांशु ठोलिया ने अदालत को बताया कि विवादित जमीन पर हाईकोर्ट ने 21 अगस्त 2006 को आदेश जारी कर यथा-स्थिति बनाए रखने के आदेश दिए थे. इसके बाद हाईकोर्ट ने 23 मार्च 2018 को मौके से निर्माण तोड़ने के आदेश दिए. मामला सुप्रीम कोर्ट जाने पर उच्चतम न्यायालय ने हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका पेश करने को कहा. हाईकोर्ट ने 11 अप्रैल 2018 को पुनर्विचार याचिका को भी खारिज कर दिया.

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याचिका में कहा गया कि हाईकोर्ट का अगस्त 2006 का आदेश होने के बाद तहसीलदार और पटवारी ने विवादित जमीन का वर्ष 2011 और 2015 में नामांतरण भी खोल दिया. इसके अलावा वर्ष 2015 की एसडीएम की रिपोर्ट के यथा-स्थिति के बावजूद अनुसार मौके पर निर्माण भी किए जा चुके हैं. अदालत ने वर्ष 2020 में स्थानीय जिला प्रशासन से स्टेटस रिपोर्ट भी मांगी थी, लेकिन अब तक अदालत में रिपोर्ट भी पेश नहीं की गई है. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों से रिपोर्ट तलब करते हुए मामले की सुनवाई 20 जनवरी को तय की है.

जोहड़ भूमि में बने आवासीय परिसरों को तोड़ने पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक

राजस्थान हाईकोर्ट ने झुंझुनू के छापडा गांव के जोहड़ में अतिक्रमियों की ओर से बनाए गए आवासीय परिसरों को तोड़ने के लिए कलेक्टर की ओर से दिए आदेश की क्रियान्विति पर रोक लगा दी है. इसके साथ ही अदालत ने मामले में कलेक्टर सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. जस्टिस इन्द्रजीत सिंह की एकलपीठ ने यह आदेश ब्रह्मानंद और अन्य की ओर से दायर याचिका पर दिए.

याचिका में अधिवक्ता मोहित बलवदा ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ताओं के परिवार पिछले पांच दशक से इस भूमि पर आवासीय परिसर बनाकर निवास कर रहे हैं. अधिकांश निवासियों के पास बिजली विभाग की ओर से जारी किए गए बिजली कनेक्शन और जलदाय विभाग के पानी के कनेक्शन भी हैं. इसके अलावा इस इलाके में सरकारी स्कूल और सरकार की ओर से रोड भी बनाई गई है. अधिकतर लोगों के पास रहने की कोई दूसरी जगह भी नहीं है. इसके बावजूद भी स्थानीय कलक्टर ने गत 8 सितंबर को आदेश जारी कर याचिकाकर्ताओं के निर्माण हटाने के निर्देश जारी कर दिए.

याचिका में कहा गया कि इसी गांव के कुछ अन्य लोगों के समान मामले में हाईकोर्ट उनके निर्माण हटाने पर पाबंदी लगा चुका है. ऐसे में याचिकाकर्ताओं के निर्माणों का भी बचाव किया जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने कलेक्टर के निर्माण तोड़ने के आदेश की क्रियान्विति पर रोक लगाते हुए संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी जवाब तलब किया है.

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