जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने जेसीटीएसएल (High court on Jaipur city transport service limited) में वर्ष 2012 की कंडक्टर भर्ती में अदालती आदेश के बावजूद ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों को अधिक अंक के बावजूद सामान्य वर्ग के पदों पर नियुक्ति (Rajasthan High court on OBC Joining in JCTSL) नहीं देने पर नाराजगी जताई है. अदालत ने माना कि वर्ष 2017 में अवमानना याचिका दायर करने के समय से लेकर अब तक के जेसीटीएसएल एमडी के पद पर रहे अधिकारियों ने जानबूझकर अदालती आदेश की अवमानना की है. अदालत ने कहा कि वर्तमान एमडी इस संबंध में तीन सप्ताह के भीतर अपना स्पष्टीकरण दें, वो पूर्व में इस पद पर रहे अफसरों से भी जानकारी जुटा सकते हैं.
तो होगा दोषी अफसरों के खिलाफ आदेश पारित-अदालत ने कहा कि यदि अब पेश किए जाने वाले स्पष्टीकरण और शपथ पत्र में पूरी जानकारी नहीं दी गई तो दोषी अफसरों के खिलाफ आदेश (contempt action can be taken on JCTSL MD) पारित किया जाएगा. जस्टिस सुदेश बंसल ने यह आदेश इन्द्र कुमार योगी व अन्य की अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अदालत में बार-बार पेश किए गए शपथ पत्र में पर्याप्त जानकारी नहीं दी गई. यहां तक कि कोर्ट ने मामले में एमडी से शपथ पत्र के जरिए जानकारी पेश करने को कहा था, लेकिन एमडी के बजाए जेसीटीएसएल के सीएफओ का शपथ पत्र पेश किया गया, जबकि वे अवमानना याचिका में पक्षकार नहीं थे.
यह भी पढ़ें- Rajasthan High Court : अधिक अंक के बावजूद नियुक्ति नहीं देने पर मांगा जवाब, एक पद खाली रखने के आदेश
जानिए क्या है पूरा मामला-मामले के अनुसार जयपुर सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लि. ने वर्ष 2012 कंडक्टर भर्ती निकाली थी. परीक्षा परिणाम में ओबीसी के कुछ अभ्यर्थियों ने सामान्य वर्ग की कट ऑफ से अधिक अंक हासिल किए थे, लेकिन जेसीटीएसएल ने उन्हें सामान्य पदों पर नियुक्ति नहीं दी. इस पर प्रभावितों ने हाईकोर्ट में याचिका पेश की. इस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने 11 अप्रैल 2017 को जेसीटीएसएल को आदेश दिए कि सामान्य वर्ग से अधिक अंक प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों को सामान्य पदों पर नियुक्ति दी जाए और ओबीसी वर्ग की मेरिट लिस्ट में संशोधन किया जाए.
फिर भी नहीं हुई आदेश की पालना-जेसीटीएसएल ने आदेश की पालना नहीं की. इस पर इन्द्र कुमार योगी व अन्य ने अदालत में अवमानना याचिका पेश की. अवमानना याचिका के जवाब में जेसीटीएसएल ने 16 अप्रैल 2018 को अधूरा जवाब पेश किया. इस पर अदालत ने 22 जुलाई 2019 को आदेश जारी कर अवमानना कर्ता अफसर से अतिरिक्त शपथ पत्र के जरिए जानकारी देने को कहा, लेकिन एमडी के बजाए सीएफओ ने 24 जनवरी 2020 को शपथ पत्र पेश किया और उसमें भी पूरी जानकारी नहीं दी गई. इसके बाद गत 24 अगस्त को अदालत ने पूरी जानकारी के साथ फिर शपथ पत्र मांगा. इस पर 15 सितंबर को शपथ पत्र दिया, लेकिन उसमें भी पूरी जानकारी नहीं दी गई. वहीं यह शपथ पत्र अवमानना कर्ता के रूप में पक्षकार बनाए एमडी के बजाए सीएफओ ने पेश किया. इस पर अदालत ने चेतावनी देते हुए तीन सप्ताह में एमडी से स्पष्टीकरण मांगा है.