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Rajasthan High Court : 29 बीघा जमीन के स्वामित्व के मामले में जेडीए का पक्ष भी सुनेगा हाईकोर्ट

आगरा रोड पर बल्लूपुरा गांव के पास करोड़ों रुपए की 29 बीघा जमीन के 34 साल पुराने मालिकाना हक के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट ने जेडीए का पक्ष सुनने की सहमति दे दी (JDA in the matter of ownership of 29 bighas of land) है.

29 bigha land ownership case
राजस्थान हाईकोर्ट

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Published : Jul 26, 2022, 10:32 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने आगरा रोड पर बल्लूपुरा गांव के पास करोड़ों रुपए की 29 बीघा जमीन के 34 साल पुराने मालिकाना हक के मामले में जेडीए को राहत देते हुए उसका पक्ष सुनने की सहमति दी (JDA in the matter of ownership of 29 bighas of land) है. वहीं अदालत ने मामले के पक्षकारों को कहा है कि वे आगामी सुनवाई पर अंतिम बहस करें. जस्टिस अशोक गौड़ ने यह आदेश मामले में जेडीए की ओर से पेश प्रार्थना पत्र को मंजूर करते हुए दिए.

जेडीए की ओर से कहा गया कि मामले में जेडीए का पक्ष सुना ही नहीं गया है, इसलिए अदालत राज्य सरकार बनाम बहादुर सिंह व अन्य मामले में 2 दिसंबर 2014 को दिए आदेश को स्पष्ट करे और उनका पक्ष भी सुनें. मामले के अनुसार, 1944 में तत्कालीन जयपुर स्टेट ने बहादुर सिंह को 60 बीघा जमीन आवंटित की थी. वहीं वर्ष 1958 में इसमें से 31 बीघा जमीन ही पंजीकृत हुई और बाकी 29 बीघा जमीन सवाई चक होने के चलते पंजीकृत नहीं हुई.

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इस दौरान 12 नवंबर 1982 को जेडीए एक्ट लागू हुआ व धारा 54 के तहत जमीन जेडीए की हो गई. कलेक्टर के आदेश से नामांतरण भी जेडीए के नाम खुल गया, लेकिन बहादुर सिंह ने जेडीए को पक्षकार बनाए बिना ही इसके खिलाफ जिला कलेक्टर के यहां खातेदारी अधिकारों के लिए रेवेन्यू दावा किया. उसका दावा 29 दिसंबर 1998 को खारिज हो गया. मामला रेवेन्यू अपीलेट ट्रिब्यूनल में पहुंचने पर ट्रिब्यूनल ने खातेदारों की अपील मंजूर कर उनके नाम पर जमीन का नामांतरण खोलने का निर्देश दिया.

इसे चुनौती देने पर रेवेन्यू बोर्ड अजमेर ने 4 अक्टूबर 2002 को राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी. साथ ही हाईकोर्ट ने भी 2 दिसंबर 2014 को रेवेन्यू बोर्ड के फैसले को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी. इस याचिका में जेडीए पक्षकार नहीं था. जिस पर जेडीए ने खुद ही याचिका दायर कर रेवेन्यू बोर्ड व रेवेन्यू अपीलेट अथॉरिटी के आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी. लेकिन जेडीए की ओर से पैरवी के लिए किसी के उपस्थित नहीं होने पर अदालत ने 14 जुलाई 2006 को याचिका खारिज कर दी. जेडीए की अपील पर खंडपीठ ने 9 मार्च 2015 को मामला एकलपीठ को मेरिट पर सुनवाई के लिए वापस भेज दिया. बहादुर सिंह की ओर से कहा कि राज्य सरकार की याचिका खारिज हो चुकी है और उसमें जेडीए भी पक्षकार था, लेकिन जेडीए ने जानबूझकर अपना पक्ष नहीं रखा है. जेडीए ने अदालत से 2 दिसंबर 2014 के आदेश को स्पष्ट करने का प्रार्थना पत्र दायर किया.

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