जयपुर. देश में रेलवे ने 1853 में स्टीम इंजन से लेकर अब तक हाई स्पीड इलेक्ट्रिक इंजन तक का सफर तय किया है. यात्रियों और सामान को देश के एक कोने से दूसरे कोने में ले जाने के लिए देश में पटरियों का मजबूत जाल फैला है. भारत में कई यूनीक ट्रेनें (Unique Trains of India) हैं. आज बात करते हैं राजस्थान की अनूठी साल्ट ट्रेन की. यह ट्रेन राजस्थान के सांभर में है.
सड़क नहीं बन सकती थी, अंग्रेजों ने पटरियां बिछाई
दरअसल सांभर झील की क्यारियों में बनने वाले नमक को स्टोरेज बैंक तक पहुंचाने के लिए अंग्रेजों ने आजादी से पहले सांभर झील में मीटर गेज और नैरो गेज की पटरियां बिछाई थी. रिसर्च स्कॉलर रामकिशन सैनी बताते हैं कि साल 1835 में सांभर झील और यहां से नमक उत्पादन के काम को तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथ में ले लिया था. इसके बाद साल 1876 में सांभर झील की क्यारियों में बनने वाले नमक को स्टोरेज बैंक तक पहुंचाने के लिए यह पटरियां बिछाई गई थी. पहले स्टीम इंजन से और अब डीजल इंजन से लकड़ी और लोहे से बने डिब्बों में नमक का परिवहन किया जाता है. वर्तमान में जिन दो इंजन का प्रयोग नमक की ट्रेन में किया जाता है. वह भी करीब 57 साल पुराने हैं.
फिल्मों में सांभर साल्ट ट्रेन
सांभर में नमक रेल (salt train in rajasthan) करीब 145 साल पुरानी है. इस ट्रेन का दीदार आपको राजस्थान की राजधानी जयपुर के पास नमक की सबसे बड़ी सांभर झील में होगा. ब्रिटिशकालीन पटरियों पर यह ट्रेन आज भी सरपट दौड़ रही है. खास बात ये है कि बॉलीवुड भी इस ट्रेन का दीवाना है. सांभर राजस्थान की महत्वपूर्ण शूटिंग लोकेशन (rajasthan shooting location sambar) भी है.
मशहूर फिल्म पीके में यह ट्रेन दिखाई दी है. इसके साथ ही गुलाल फिल्म के कुछ शॉट्स भी सांभर झील और यहां स्थित रेलवे ट्रैक पर फिल्माए गए हैं. गायक कलाकार हंसराज हंस के एक एलबम में भी यह ट्रेन नजर आ चुकी है. इस ट्रेन के कोच लकड़ी और लोहे से बने हैं. नमक ढोने के लिए सांभर झील में नमक की क्यारियों के बीच बिछाई गई नैरो गेज और मीटर गेज की पटरियों पर यह ट्रेन दौड़ती है.
सांभर साल्ट लिमिटेड कर रहा देखभाल
वर्तमान में सांभर झील में नमक उत्पादन और विक्रय का काम सांभर साल्ट लिमिटेड कर रहा है. सांभर साल्ट लिमिटेड के मुख्य प्रबंधक विंग कमांडर (रिटायर्ड) गणेश येवड़े का कहना है कि ब्रिटिशकाल में सांभर झील में विस्तृत भौगोलिक सर्वे किया गया. उस समय यह सामने आया कि सांभर झील की भौगोलिक परिस्थितियों और खास तौर पर यहां की सॉफ्ट काली मिट्टी के कारण नमक की क्यारियों में जमने वाले नमक को स्टोरेज बैंक तक पहुंचाना आसान नहीं था.