जयपुर. राजस्थान विवाहों का अनिवार्य पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2021 को लेकर चक रहे विवाद के बीच राज्य बाल संरक्षण आयोग ने इस बिल को क्लीनचिट दे दी है. बाल आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने कहा कि बिल बाल विवाह को प्रोत्साहित नहीं करता, इसके बारे में भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं. बिल को लेकर सामाजिक संगठनों और अध्ययन करने के बाद आयोग ने अपना पक्ष जारी किया है.
संगीता बेनीवाल ने कहा कि नया संशोधन बाल विवाह को प्रोत्साहित नहीं करता, बल्कि विवाह पंजीयन होने से सरकारी लाभ और कानूनी अधिकार प्रदान करता है. विधेयक को लेकर विभिन्न भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं. बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 केन्द्र सरकार ने लागू किया गया था, इसमें संशोधन भी केंद्र सरकार ही कर सकती है, न कि राज्य सरकार.
पेश किया गया विधेयक नाबालिग बच्चियों और कम उम्र में विधवा होने वाली लड़कियों को कानूनी अधिकार दिलाता है. संगीता बेनीवाल ने कहा कि हमें अक्सर ऐसे मामले देखने को मिलते हैं जहां बच्ची बाल विधवा है लेकिन पंजीकरण नहीं होने की स्थिति में उसे न तो संपत्ति में अधिकार मिल पाता और समाज में स्वीकार्यता नहीं हो पाती, जिससे उसका पूरा जीवन बर्बाद हो जाता है.
वहीं उन्होंने कही कि किसी भी अपराध की स्थिति में बच्चों को अन्य न्यायोचित हकों से वंचित नहीं रखा जा सकता है. ऐसी ही स्थिति उन बच्चों के साथ भी होती है जो बाल विवाह से हुए हैं, उनके माता-पिता की मृत्यु की स्थिति में उनका मानसिक, सामाजिक विकास पर गहरा प्रभाव पड़ता है. यह संशोधन बाल विधवाओं और बच्चों को समाज में उनका हक दिलवाने में सफल रहेगा. विवाह पंजीयन पीड़ित-प्रभावित बच्चों के अधिकारों जैसे बाल विवाह शून्यकरण, संरक्षण सेवाओं, भरण-पोषण, बाल विवाह से जन्मे बच्चों की कस्टडी और अन्य विभिन्न प्रकार के परिलाभों के संरक्षण में और अधिक सहायक होगा.